बिलासपुर। Conservation of seeds: जिले के रिस्दा गांव का एक किसान परिवार औषधीय गुणों से भरपूर कोचई(अरबी) व जिमीकांदा (जिमीकंद या सुरन) के साथ देसी बैंगन की प्रजाति को संरक्षित रखने में सफल रहा है। किसान राघवेंद्र सिंह के दादा ने इसकी शुरुआत की थी, जिसे पिता के बाद वे स्वयं आगे बढ़ा रहे हैं। बैंगन की खासियत यह है कि एक बार लगाने के बाद पौधों से पांच साल तक उत्पादन लिया जा सकता है।
वे इन सब्जियों के प्रसार के लिए अन्य किसानों को निश्शुल्क वितरण भी करते हैं। उनके पास संरक्षित सभी प्रजातियों के बीजों को नेशनल इंस्टीट्यूट आफ प्लांट जीनोम रिसर्च दिल्ली की ओर से प्रमाणित किया जा चुका है। प्रगतिशील किसान के रूप में ख्याति प्राप्त राघवेंद्र सिंह परंपरागत खेती में भरोसा रखते हैं। जिमीकांदा और कोचई की ऐसी ऐसी प्रजातियां उनके पास हंै जो औषधीय गुणों से भरपूर हैं। उत्पादन क्षमता भी कम नहीं है। वे बताते हैं कि जिमीकांदा का उत्पादन एक एकड़ में 60 क्विंटल होता है।
जबकि सामान्य बीजों से प्रति एकड़ 40-42 क्विंटल का उत्पादन होता है। 60 साल पुरानी सब्जियों की प्रजाति को संरक्षित और सुरक्षित रखने के लिए वे गंभीरता के साथ जतन कर रहे हैं। वे दूसरे किसानों को पुरानी प्रजाति के कंद को मुफ्त में इस शर्त में देते हैं कि इसकी फसल लेंगे और नई पीढ़ी के लिए सुरक्षित रखेंगे। राघवेंद्र तीसरी पीढ़ी के सदस्य हैं जिनकी कोठी में आज भी छह दशक पुरानी सब्ज्यिों की बेहतरीन प्रजाति सुरक्षित है।
पेटेंट की तैयारी
राघवेंद्र सिंह बताते हैं कि नेशनल इंस्टीट्यूट आफ प्लांट जीनोम रिसर्च दिल्ली में इंदिरा गांधी कृषि विवि के जरिए जिमीकांदा व कोचई की पुरानी प्रजातियों का पेटेंट कराने के लिए सैंपल भेजा गया था। सैंपल की जांच के बाद रिसर्च सेंटर ने आगे की प्रक्रिया शुरू करने की जानकारी दी है। इसके अलावा तोरई के बीजों का सैंपल भी रिसर्च सेंटर भेजा गया है। बैगन की एक देसी प्रजाति है जिसका पौधा तैयार होने के बाद पांच वर्ष तक फसल देता है।
जिमीकांदा में ये हैं औषधीय गुण
फाइबर, विटामिन सी, विटामिन बी-6 और विटामिन बी-12, फोलिक एसिड होता है। इसके अलावा पोटेशियम, आयरन, मैग्नीशियम, कैल्यिशम और फास्फोरस भी पाया जाता है।