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200 साल से मोरिद गांव के लिए वरदान बना हुआ है विशाल वटवृक्ष

ByPrompt Times

Jun 10, 2021
  • यह सिर्फ वृक्ष ही नहीं है, अलबत्ता मोरिद गांव के लिए वरदान है। बीते दो सौ साल से यह विशाल वटवृक्ष आस्था का केंद्र बना हुआ है।

10-जून-2021 | भिलाई। यह सिर्फ वृक्ष ही नहीं है, अलबत्ता मोरिद गांव के लिए वरदान है। बीते दो सौ साल से यह विशाल वटवृक्ष आस्था का केंद्र बना हुआ है। यह आक्सीजन की जरुरत को पूरा तो करता ही साथ ही गांव के सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक आयोजनों का भी केंद्र है। यहां आज भी चौपाल सा माहौल रहता है।

हमारे बुजुर्ग कितने वैज्ञानिक सोच वाले थे, इसका उदाहरण है उनके द्वारा लगाए गए बरगद व पीपल के वृक्ष। हमारे बुजुर्गों द्वारा किए गए ताल तलैया का निर्माण। आज हमें कृत्रिम आक्सीजन की जरुरत पड़ने लगी है जबकि हमारे बुजुर्गों ने हमें इसका ज्ञान बरसों पहले ही दे दिया था।

1980 के दशक के बाद आधुुनिकता की दौड़ में लोग इतने सुविधाभोगी व भौतिक सुख के आदि हो गए कि पेड़ों के महत्व को ही भुला दिया।

भिलाई-चरोदा नगर निगम का वार्ड है मोरिद। राजस्व रिकार्ड के मुताबिक गांव ब्रिटिश कालीन है। तब से यह वटवृक्ष भी है। इस विशाल बरगद के वृक्ष को गांव के ही यादव परिवार ने लगाया था। सोच भविष्य की थी, कि कलांतर में यह पौधा विशाल वृक्ष बनकर लोगों को छांव व हवा देगा। सोच फलीभूत हुई। यह विशाल वटवृक्ष गांव के बीच में है। लोग इसे गांव का ह्दय स्थल कहते हैं। यहीं गांव का गोठान भी है, बाजार भी इसी वट वृक्ष के चारों तरफ लगता है।

पहले रूका करती थी बारात

यह वटवृक्ष इतना विशाल है कि इसकी छांव तले पहले बारात रुका करती थी। गांव का हर प्रमुख आयोजन चाहे वह धार्मिक, हो सामाजिक हो या सांस्कृतिक हो इसी बरगद की छांव के नीचे हुआ करते थे। आयोजन इस मैदान में अब भी होता है, पर अब बरगद के पास एक सांस्कृतिक मंच भी बन चुका है।

कोरोना काल में वरदान बना यह वृक्ष

गांव निवासी बलदाऊ वर्मा, सुनील ठाकुर, नीलकंठ वर्मा, कृष्ण कुमार वर्मा, जागेश्वर निषाद बताते हैं कि 1992 में मध्यप्रदेश सरकार में तत्कालीन शिक्षा मंत्री प्रेम प्रकाश पांडेय ने भाजपा के श्रम अनुभव अभियान के तहत इस वृक्ष के चारों तरफ चबुतरा बनवाया था। अब इस चबुतरे में बरगद के नीचे सुबह शाम गांव की चौपाल लगती है। बच्चे इसी पेड़ की छांव में खेलते हैं। गांव के मवेशी भी इस वटवृक्ष की छांव में बैठते हैं। कोरोना काल में गांव के लोगों को वटवृक्ष की अहमियत समक्ष में आई। भरपूर आक्सीजन के लिए अप्रैल व मई के महीने में गांव के लोग इस बरगद के नीचे ही बैठा करते थे.

Source : “नईदुनिया”

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