15 जून 2022 | इंसान अपने जीवन में जिन-जिन बातों या चीजों के साथ जीता है, उसमें एक है चिंता। उसकी आधी से ज्यादा जिंदगी चिंता के साथ बीतती है। दरअसल जब हम बाहर की दृष्टि से दुनिया में रहते हैं तो दुनिया जीत सकते हैं, सफलता हासिल कर सकते हैं, पर चिंताएं नहीं मिटेंगी। चिंता मिटाना हो तो अंतरदृष्टि जगाना पड़ती है। यह दृष्टि सबसे अच्छी जागती है भक्त की। भक्त होना हिम्मत का काम है। केवल पूजा-पाठ करना दिखावा है।
अपने भीतर उतरकर आत्मा के आसपास ईश्वर को ढूंढना सच्ची भक्ति है। एक भक्त जानता है चिंता से तीन बड़े नुकसान होते हैं- स्वास्थ्य का, एकाग्रता का और निर्णय क्षमता का। अपने तीन गुणों से वह इन सबका निदान निकालता है। पहला, निर्भयता। चूंकि वह भक्त है, तो उसे मालूम है कि मेरी पीठ पर ऊपर वाले का हाथ है, इसलिए निर्भय होगा ही। दूसरी बात, भक्त हर समस्या का हल जरूर ढूंढता है। उससे विचलित नहीं होता।
और, तीसरी बात यह कि वह बुरे से बुरे परिणाम के लिए भी तैयार रहता है। ‘अब इससे ज्यादा और क्या खोएंगे’ यह खयाल ही उसे हल्का कर देता है। स्वीकार कर लेने से दुर्भाग्य पर विजय पाई जा सकती है। इसलिए अच्छी-बुरी हर बात को, हर स्थिति को स्वीकार कर लेना भक्त का स्वभाव बन जाता है। ‘हम तो जीएंगे परमात्मा के भरोसे’ यह भाव जागते ही चिंता की विदाई होती है और जीवन एकदम हल्का, आनंदमय हो जाता है।
सोर्स;- ‘’दैनिकभास्कर’’