मंज़िलें उन्हें नहीं मिलती जिनके ख़्वाब बड़े होते हैं, मंज़िलें तो उन्हें मिलती हैं जिनमें ख़्वाब पूरे करना का जूनून होता है.
इस कथन को सच कर दिखाया है 12 साल की जिया राय ने. ऑटिज़्म स्पेक्ट्रम डिस्ऑर्डर पीड़ित जिया ने मुंबई के वर्ली सीलिंक से गेटवे ऑफ़ इंडिया तक 36 किलोमीटर की दूरी 8 घंटा 40 मिनट में तैरकर पूरी की.
- जिया राय का यह रिकॉर्ड इसलिए चर्चा में है क्योंकि उन्हें ऑटिज़्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर है.
36 किलोमीटर की दूरी तय करने वाली जिया राय नौसेना में नाविक मदन राय की बेटी हैं. सोशल मीडिया पर जहाँ उनकी तारीफ़ हो रही है, वहीं कुछ लोग ये कहकर आलोचना भी कर रहे हैं कि “ऑटिज़्म से जूझ रही बच्ची को खुले समुद्र में तैरने की मंज़ूरी क्यों दी गई? कुछ हो जाता तो?.”
जिया के पिता मदन राय कहते हैं कि मैं ऐसी सोच वाले लोगों को ये संदेश देना चाहता हूं और पूछना चाहता हूं कि किसी पर इस तरह की टिप्पणी करने से पहले मुझे ये बताए कि “ऑटिज़्म की वजह क्या है? समाज को ऑटिज़्म की वजह का ही नहीं पता. अगर आपके पास इसका जवाब ही नहीं है तो आपको हक़ भी नहीं है कुछ बोलने का.”
बाल रोग चिकित्सक डॉक्टर महेश कुमार मेटे, बीबीसी हिंदी से कहते हैं “ऑटिज़्म एक तरह का बिहेवियर डिस्ऑर्डर है, जिसमें बच्चों की सोशल स्किल, कम्युनिकेशन और बिहेवियर स्किल (समाज में एक दूसरे से मिलनेजुलने, बातचीत करने और व्यवहारिक कुशलता) दूसरे बच्चों से अलग होते हैं.”
- महेश के मुताबिक़, ऑटिज़्म होने का कोई एक कारण नहीं हैं और इसकी पूरी जानकारी आज तक नहीं मिली है.
अगर ऑटिज़्म के लक्षणों की बात करें तो जब बच्चों की उम्र दो साल होती है, तब ठीक से पता चलना शुरू होता है. इसका पहला लक्षण है बच्चे अपने नाम पर किसी भी तरह की प्रतिकिया नहीं देते. अपने माँ-बाप या किसी बाहरी व्यक्ति से भी आंखें नहीं मिलाते. उन्हें बाकी बच्चों की तरह खुशी और दुख ज़ाहिर करना नहीं आता.
डॉक्टर कहते हैं कि ऐसे बच्चों की सबसे सकारात्मक बात ये है कि वो बहुत फोकस होते हैं. उन्हें एक ही काम करना बेहद पसंद होता है. ऐसे बच्चे किसी एक हुनर में बड़े माहिर होते हैं.
‘महान तैराक माइकल फ़ेलप्स को भी ऐडीएचडी’
जिया राय के पिता मदन राय बीबीसी हिंदी से कहते हैं कि सोशल मीडिया पर टिप्पणी कर देना आसान है, लेकिन क्या कभी किसी ने ऑटिज़्म को समझने की कोशिश की है, सवाल उठाने से अच्छा है कि ऑटिज़्म को समझने की कोशिश की जाए.
वो कहते हैं, “जितना मैंने समझा है ऑटिज़्म का एक फ़ीचर होता है, जिसे ‘ऐडीडी’ यानी अटेंशन डेफ़िसिट डिस्ऑर्डर कहा जाता है और दुनिया में तैराकी के इतिहास के महान खिलाड़ी माइकल फ़ेलप्स को भी ‘ऐडीएचडी’ ही था, मतलब अटेंशन डेफ़िसिट हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर. इस दुनिया को एक तैराक मिल गया है, लेकिन अब हम एक और तैराक बनाने की कोशिश कर रहे हैं. और माइकल ही जिया के रोल मॉडल हैं.”
वो कहते हैं, “जो हमने महसूस किया है, वो ये है कि दोनों में कुछ समानताएं हैं जैसे माइकल स्विमिंग से पहले कभी जश्न नहीं मनाते, दूसरा जब वो स्विमिंग करते हैं तो पहले टॉवल से अपनी उस जगह को, जहाँ से वो कूदते हैं उसे साफ़ करते हैं. उन्हें गीली जगह पसंद नहीं है क्योंकि जगह गीली होने से उनका ध्यान भटकता है और तीसरी बात ये कि ऑटिज़्म पीड़ित हर बच्चा एक कॉमन पॉइंट ढूंढता है. जैसे जिया अपनी माँ को देखकर ही पानी में कूदती हैं और माइकल भी अपनी माँ को ही देखकर पानी में कूदते हैं.”
- जिया के दूसरे जन्मदिन पर ऑटिज़्म का पता चला
जिया के ऑटिज़्म का ज़िक्र करते हुए मदन कहते हैं, “मुझे और मेरी पत्नी को पहले नहीं पता था कि हमारी बेटी बाक़ी बच्चों से अलग है. इस बात का एहसास हमें तब हुआ, जब हमारी बेटी दो साल की हुई और हमने उसका जन्मदिन बनाया. घर पर मेरे कई मित्र आए और उनके बच्चे मेरी बेटी की उम्र के थे. तब मैंने और मेरी पत्नी ने महसूस किया कि इस उम्र में हमारी बेटी बोल भी नहीं पा रही है.”
मदन राय बताते हैं, “उसका स्वभाव भी अलग था. जब हम उसे अस्पताल ले गए, तब हमें डॉक्टर ने कहा कि बच्ची को ऑटिज़्म है और ये बाक़ा बच्चों की तरह सामान्य नहीं रहेगी और ये ज़िन्दगी भर तुम लोगों पर निर्भर रहेगी.”
मदन राय बताते हैं कि उन्होंने अपनी बेटी को समझने की कोशिश की और जब जिया ढाई साल की थी, तब पता चला कि उसे पानी से बहुत प्यार है. इसके बाद जिया को नेवल स्विमिंग अकादमी में लेकर गए जहां नेवी से बहुत मदद मिली और धीरे-धीरे जिया अच्छी स्विमिंग करने लगी.
टीचर की नौकरी छोड़ मां ने सीखी तैराकी
जिया की चुनौतियों का ज़िक्र करते हुए मदन राय कहते हैं कि उसे तैराकी सिखाना बहुत चुनौतीपूर्ण था क्योंकि कोच को भी बड़ी दिक्कतें आ रही थीं. कोच कहते थे कि ऐसे बच्चे को क्या सिखाएं जिससे बात करना ही मुश्किल है.
तब ये तय किया गया कि जिया की मां ही उसके लिए कोच की भूमिका अदा करेंगी. लेकिन जिया की मां को तैरना नहीं आता था. मदन राय बताते हैं कि तैराकी सीखने के लिए जिया की मां ने अपनी नौकरी छोड़ी और तैराकी सीखकर कोच की भूमिका में आ गईं.
इसके बाद मदन का तबादला गोवा से मुंबई हुआ जहां जिया को स्वीमिंग के लिए बेहतरीन कोच मिले. इसके बाद जिया ने पीछे मुड़कर नहीं देखा और तैराकी में कई मेडल अपने नाम किए.
जिया के माता-पिता अब उसे और आगे बढ़ता हुए देखना चाहते हैं और चाहते हैं कि वो ओलंपिक में जीतकर भारत के लिए गोल्ड मेडल लाए.
BBC