15 नवंबर 2022 |
गाड़ी की आवाज सुनकर भागता हिरणों का झुंड, पानी से मुंह ऊपर निकाले मगरमच्छ और थोड़ी दूर पर बाघ की गुर्राहट। ये नजारा है बहराइच की कतर्नियाघाट वाइल्ड लाइफ सेंचुरी का। 1 साल बाद आज से फिर से इस सेंचुरी को पर्यटकों के लिए खोल दिया गया है। अब यह 15 जून तक खुला रहेगा। चलिए…आपको इसकी सैर करवाते हैं।
551 वर्ग किमी. में फैला, हजारों जानवर
551 वर्ग किलोमीटर में फैले इस कतर्नियाघाट में आपको कदम-कदम पर जानवरों की टोलियां दिख जाएंगी। इसके अंदर 30 बाघ, 8 हजार चीतल, 89 तेंदुए, 55 सांभर, 2800 नीलगाय, 300 काकड़, 12 गैंडे, 9 हजार लंगूर, 110 डाल्फिन, 600 घड़ियाल, 2 पालतू हाथी, 85 बारहसिंहा, 80 जंगली हाथी 80, घड़ियाल, मगरमच्छ, मोर, बंदर और 6 हजार जंगली सुअर हैं।
यहां गेरुआ नदी में उछाल मारने वाली गैंजाइटिक डाल्फिन, मगरमच्छों और घड़ियालों के परिवार जाड़े में गेरुआ नदी के रेतीले टीलों पर धूप सेंकते नजर आएंगे। हिरन, सांभर, पाढ़ा, बारहसिंहा, नीलगाय, कांकड़ और लंगूरी बंदरों के झुंड खेलते नजर आ जाएंगे।
ऑनलाइन करवा सकते हैं बुकिंग, रुकने के लिए जंगल में घर भी
कतर्नियाघाट पर सैर करने के लिए आप ऑनलाइन बुकिंग कर सकते हैं। यहां पर मोतीपुर और ककरहा के बने थारू हट में पर्यटकों के रुकने का इंतजाम है। बस इसके लिए ऑनलाइन बुकिंग करानी पड़ेगी। यहां पर एक व्यक्ति का 24 घंटे का किराया 700 रुपए है। अतिथि गृहों में आरक्षण के लिए बहराइच स्थित वन विभाग के डिवीजन कार्यालय पर एप्लीकेशन देनी होती है। ऑनलाइन बुकिंग कराने के लिए वेबसाइट www.upecotourism.in पर भी जा सकते हैं।
बंद जीप में पूरे जंगल की सैर
यहां पर्यटकों को बंद जीप में जंगल की सैर कराई जाती है। 200 से 300 रुपए तक किराया एक व्यक्ति का होता है। 3 से 4 घंटे की सैर के बाद उन्हें वापस मेन गेट पर छोड़ दिया जाता है। वहीं, जो लोग यहां रुकने के लिए आते हैं। उन्हें जंगल की सैर के बाद बुकिंग हाउस में छोड़ दिया जाता है।
जंगल के बीच बने इन घरों में अंधेरा होते ही बोन फायर और लाइट म्यूजिक का इंतजाम होता है। ऑर्डर पर स्पेशल फूड भी सर्व किया जाता है। उनकी सुरक्षा के लिए गार्ड भी तैनात रहते हैं। सुबह-शाम बोटिंग के लिए मोटरबोट सर्विस भी है। बच्चों के मनोरंजन के लिए पालतू हाथी भी यहां पर हैं। वन विभाग ने सैलानियों के लिए यहां टाइगर कैंप और घड़ियाल सेंटर भी बना रखा है।
जंगल के अंदर कर सकते हैं शॉपिंग
यहां घूमने आने वाले पर्यटक खरीददारी भी कर सकते हैं। घाट की सीमा से लगे गांवों में 40-45 परिवार रहते हैं। इन घरों के पुरुष या तो खेती या मजदूरी करते हैं। वहीं, घर की महिलाएं हाथ से सामान बनाकर यहां बेचती हैं। इसका मुख्य कारण गांव के लोगों को रोजगार से जोड़ना है। गांव की महिलाएं यहां पर हाथ से बने शेर, हाथी, मोर, बंदर बेचती हैं।
थारू व्यंजन देखकर आ जाता है मुंह में पानी
जंगल के अंदर कैंटीन है। जहां आपको चाइनीज, साउथ इंडियन से लेकर नार्थ इंडियन फूड मिलेगा। जंगल के अंदर पर्यटकों के लिए कई सारे स्पेशल इंतजाम हैं। उनमें से एक है थारू व्यंजन। इस व्यंजन का नाम एक जनजातीय प्रजाति के नाम पर पड़ा है। उसी प्रजाति की महिलाएं ऑर्डर देने पर खाना लेकर आती हैं। थाल में परोसती हैं। इस थाल में दाल, चावल, सूखी सब्जी, तीन तरह के चावल, गेंहू, चावल और बेसन की रोटी के साथ ही मेवा मिश्रित दूध भी दिया जाता है। थाल की कीमत 200 से 250 रुपए होती है। जबकि कैंटीन में सामान्य खाना 350 रुपए तक का है।
जंगल के सन्नाटे में आज भी महसूस होती है रेल की छुक-छुक
कतर्निया घाट कभी रेलवे स्टेशन था। गोंडा की ओर से छोटी लाइन की गाड़ी का आखिरी स्टेशन था। लेकिन गिरिजापुरी के पास नदी पर सड़क और रेलपुल बन जाने से नक्शा बदल गया। जंगल में पटरी रहित स्टेशन की उजड़ी इमारत आज भी ट्रेन के गुजरने का एहसास करा जाती हैं।
सोर्स :- “दैनिक भास्कर”