भीमताल : कभी भीमताल की शान रहा निगाल (एक प्रकार का बांस) का उत्पाद अब अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है। भीमताल और आस पास के शहरों की बाजार से लगभग नदारद हो चुके निगाल का उत्पादन करने वाले ग्राम सभा चक बहेड़ी के तोक बैड़ी के अधिकांश कारीगर सडक़ों और निर्माण हो रहे भवनों में मजदूरी करने को मजबूर हो गए हैं।
भीमताल, धारी, ओखलकांडा, भवाली, हल्द्वानी समेत पूरे तराई में टोकरी और बांस के अन्य उत्पाद की आपूर्ति करने वाला तोक बैड़ी बेरोजगारी का दंश झेल रहा है। उत्पादों की मांग न होने के कारण तोक के अधिकांश कारीगरों ने उत्पाद बनाने बंद कर दिए हैं। जो उत्पाद बना भी रहे हैं उनको खरीददार नहीं मिल रहे हैं। ऐसे में अधिकांश कारीगरों के सामने रोजी रोटी का संकट खड़ा हो गया है। उत्पादन नहीं होने के कारण टोकरी, टूपरे ( अनाज रखने के बड़े बर्तन जिसको मिट्टी से लीपा जाता था), चवरा (बच्चों का झूला) डाला (गोबर की सफाई करने वाला बर्तन) समेत करीब दो दर्जन से अधिक उत्पाद अब विलुप्त हो चुके हैं।
पूर्व ग्राम प्रधान चक बहेड़ी मनोज कुमार बताते हैं कि की चालीस परिवारों के कारीगरों के गांव में अब दस लोग भी यह कार्य नहीं कर रहे हैं। अधिकांश लोग आस पास क्षेत्रों में मजदूरी करने को बाध्य हैं। बताते हैं कि उत्पाद के लिए कच्चा माल नहीं मिलने तथा मार्केटिंग की कमी के कारण उत्पाद के ग्राहक नहीं मिल रहे हैं और दो वक्त की रोटी जुटाना मुश्किल है। क्षेत्र के सामाजिक कार्यकर्ता और विनायक के पूर्व सभासद लवेन्द्र रौतेला बताते हैं कि वन विभाग को ग्रामीणों को निगाल काटने का परमिट देना चाहिए और कारीगरों उत्पादों के लिए बाजार उपलब्ध कराना चाहिए।