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(छ.ग.) वन विभाग में नियम विरुद्धअनुकंपा और दैनिक वेतन भोगी का दोहरा लाभ उठा रहे कई लोग

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Jan 23, 2021
(छ.ग.) वन विभाग में नियम विरुद्धअनुकंपा और दैनिक वेतन भोगी का दोहरा लाभ उठा रहे कई लोग

रायपुर/-23-01-2021- वन विभाग में वैसे तो कर्मचारियों का बड़ा टोटा है लेकिन दैनिक वेतन भोगियों के असंख्य कर्मचारी होने के कारण भर्ती प्रक्रिया भी ठीक से नही हो पाती एक प्रकार से भर्ती के नाम पर केवल खाना पूर्ति होती है साथ ही दैनिक वेतनभोगी कर्मचारियों के अतिरिक्त वेतन संबंधि विसंगतियां उत्पन्न होती है और विभागीय बजट भी गड़बड़ा जाता है क्षमता से कई गुना अधिक दैनिक वेतन भोगी कर्मचारियों के कारण समस्त प्रशासकीय व्यवस्था भी ध्वस्त होती है आधुनिक उपकरण व्यवस्था के चलते न चाहते हुए भी कई कर्मचारियों को निकालने के बजाए उनका पालनहार विभाग बना हुआ है प्रारंभ से ही छंटनी न कर वर्षों से उन्हें विभाग में पदस्थी बनाए रखने के कारण वर्तमान में अब उन्हें कार्यभार से मुक्त करना भी एक बहुत बड़ी चुनौती बनी हुई है यही नही हजारों लाखों की संख्या में कार्यरत दैनिक वेतन भोगी कर्मचारियों के लिए बजट के अभाव में उनके वेतन विसंगति भी समय समय पर खुलकर सामने आती रही है अब यदि पन्द्रह बीस वर्षों के पश्चात उन्हे कार्य भार से पृथक किया जाता है तो यह उनके जीवन के साथ साथ उनके परिवार के भविष्य के साथ भी खिलवाड़ करना होगा उक्त सन्दर्भ में वन विभाग के उच्च अधिकारी करें भी तो क्या करें ?क्योंकि पूर्व में किए गए गड़बड़ी अब सामने आ रही है इस संदर्भ बताया जा रहा है जब किसी कार्यालयीन कर्मचारियों के ड्यूटी के दौरान होने वाली घटना,दुर्घटना के एवज में उनके परिवार के किसी एक सदस्य को अनुकंपा नियुक्ति का प्रावधान दिया जाता है जिसकी वजह से परिवार के एक सदस्य को विभाग अनुकंपा नियुक्ति के तौर पर नौकरी प्रदान करता है इससे यहां हमारा लिखने का उद्देश्य कतई यह नही कि अनुकंपा नौकरी,अथवा दैनिक वेतन भोगी कार्य किसी भी पीड़ित परिवार,व्यक्ति को न मिले जहां तक वन विभाग अपने कर्मचारियों के प्रति सहानुभूति रखते हुए अपने सामाजिक और नैतिक दायित्वों का निर्वहन बखूबी करता है वही कुछ ऐसे भी परिवार के सदस्य जो वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग में एक नही बल्कि दो सदस्य दैनिक वेतन भोगी, अनुकंपा नियुक्ति पर नौकरी कर रहे है इसके पीछे की वजह यह बताई जा रही है कि जब किसी दुर्घटना में कोई कर्मचारी की मृत्यु हो जाती है तब उसके वारिसान के रूप में उसकी पत्नी पुत्र अथवा परिवारिक सदस्य को अनुकंपा नियुक्ति देने का प्रावधान है क्योंकि अनुकंपा नियुक्ति देने में अनेक कार्यालयीन लिखित कार्यवाही से गुजरना पड़ता है इसमे काफी समय लग जाता है तब वैकल्पिक व्यवस्था के चलते विभाग पारिवारिक किसी अनामांकित सदस्य को दैनिक वेतन भोगी कर्मचारी के रूप में इस शर्त पर रख लेता है कि यह नियुक्ति केवल परिवार के आर्थिक सुदृढ़ता को ध्यान में रख कर दैनिक वेतन भोगी के रूप में अस्थायी,अनियमित नौकरी किसी एक सदस्य को दिया जा रहा है उक्त प्रक्रिया विभागीय स्तर पर अनुकंपा नियुक्ति में देर होने के कारण अपनाई जाती है परंतु देखा यह जा रहा है कि दुर्घटना में मृत कर्मचारी के पारिवारिक सदस्य जिसे अस्थायी रूप से दैनिक वेतन भोगी कर्मचारी के रूप में रखा जाता है उसे तो तत्काल प्रभाव से तो नही हटाया जाता अलबत्ता ऐसे परिवार के दूसरे नामांकित सदस्य को अनुकंपा नियुक्ति दे दी जाती है जिसकी वजह से एक ही परिवार से दो सदस्य शासकीय नौकरी का दोहरा लाभ वर्षों से उठाते आ रहे है इसके विरुद्ध अब अंदर खाने से विरोध के स्वर मुखर हो रहे है बताया जाता है कि रायपुर डिवीजन में ही कम से कम चार,से पांच ऐसे ही परिवार के दो सदस्यों द्वारा दैनिक वेतन भोगी एवं अनुकंपा नियुक्ति में सरकारी नौकरी कर वन विभाग का दोहरा लाभ उठा रहे है यह लाभ केवल वन विभाग ही नही अपितु प्रदेश भर के अन्य विभाग में भी देखा जा सकता है वही दूसरी ओर प्रदेश भर में दैमिक वेतनभोगी कर्मचारियों की संख्या में अप्रत्याशित वृद्धि बताई जा रही है और वेतन के नाम पर विभाग का बजट भी गड़बड़ा गया है जिसके कारण वर्षों से कार्यरत दैनिक वेतन भोगी कर्मचारियों की एक बहुत बड़ी जमात खड़ी हो गई है जो विभाग के लिए किसी चुनौती के साथ साथ बड़ी समस्या से कम नही है कि अब प्रदेश भर में वृहद स्तर पर कार्यरत दैनिक वेतन भोगी कर्मचारियों का क्या करें ?
दैनिक वेतन भोगी कर्मचारी जो लगभग अपना आधा जीवन स्थायित्व,एवं नियमित्ताओं के आशा दीप में व्यतीत कर दिए है उनके समक्ष भी अब कोई दूसरा विकल्प भी नही रह गया कि उम्र के ढलते पड़ाव में नौकरी देखे या कुछ और कार्य करें छग शासन ने अपने चुनावी एजेंडे में ऐसे वर्षों से कार्यरत दैनिक वेतन भोगी कर्मचारियों के नियमितीकरण करने की घोषणा की थी जो इनके बोझिल होते जीवन के अंधेरे में आशा की दीप जला दी है यदि छग शासन अपने कथनी करनी में खरी उतरती है तो हजारों की संख्या में कार्यरत दैनिक वेतन भोगी कर्मचारियों के लिए यह एक बहुत बड़ा सौगात होगा वही अधिकारियों कर्मचारियों के होने वाली पदोन्नति में भी बड़ा खेल खेले जाने की जानकारी आम हो रही है वह भी छोटे स्तर पर नही बल्कि बहुत बड़े पैमाने पर यह खेल चल रहा है एक तरह से पदोन्नति प्राप्त करने वाले ऐसे पीड़ित कर्मचारी अब शासन द्वारा किए जाने वाले पदोन्नति प्रक्रिया को प्रशासकीय जिहाद के नाम से बुलाने लगे है इसके अतंर्गत पात्र अपात्र और जूनियर सीनियर के समस्त मापदंड समाप्त हो गए है यहां केवल पैसा बोलता है कि तर्ज़ पर खेल होना बताया जा रहा है तथा दागी और खराब सी आर वाले कर्मचारी भी पैसे के बलबूते पर अपने सीनियर के सिर पर बैठ कर तांडव कर रहे है और ईमानदार,कर्तव्यनिष्ठ अधिकारी अपनी सीनियरिटी के आधार पर अपनी बारी आने की राह देखते देखते सेवानिवृत्त हो जाते है नाम न छापने की शर्त पर अनेक कर्मचारी अधिकारी यह कहने से नही थक रहे कि विभाग में यह कैसे उल्टी गंगा बहने लग गई जहां सारा का सारा सिस्टम ही भ्रष्टाचार की राह में निकल पड़ा इस संदर्भ में यह ज्ञात हुआ है कि समय समय पर होने वाली विभागीय डीपीसी में पात्र और सीनियर अधिकारी जो पूरी तरह से पदोन्नति पाने का अधिकारी है उसके कम अंक वाले जूनियर अधिकारी द्वारा एक बड़ी राशि देकर अपना विगत दो वर्षों का सीआर में क की जगह क प्लस करवा कर अपनी पदोन्नति करवा लेता है जबकि बताया यह भी गया है कि यह अधिकार डीपीसी में बैठे अध्यक्ष अधिकारी को भी नही कि वह प्रथम स्थान प्राप्त वाले व्यक्ति को उसकी वरिष्ठता,वरीयता को घटाना बढ़ाना सुनिश्चित करे क्योंकि साठ अथवा पचहत्तर अंक वाला व्यक्ति प्रथम ही रहेगा उसे पदोन्नत करना विभाग की प्राथमिकता होनी चाहिए परन्तु यहां खराब सीआर और जूनियर अधिकारियों से बड़ा लेनदेन कर अपात्र अधिकारी को वरीयता सूची में डाल कर पात्र एवं सीनियर अधिकारी के अधिकारों का खुलेआम हनन किया जा रहा है ऐसे प्रदेश भर में पीड़ित अधिकारी है जो आज भी पदोन्नति के लिए लड़ाई लड़ रहे है इससे भी एक बहुत बड़ा तबका प्रभावित होता है साथ ही शासकीय गति में भी बाधा उत्पन्न हो रहा है ज्ञात हुआ है कि डीपीसी में होने वाली उक्त प्रक्रिया के विरुद्ध विभाग के कई अधिकारी,कर्मचारी न्यायलय का दरवाजा खटखटा चूके है परन्तु डीपीसी में होने वाले ऐसे भ्रष्टाचार,अराजकता की नाक में कोई नकेल डाले भी तो कैसे ? क्योंकि विभाग का सारा सिस्टम ही भ्रष्टाचार के नींव पर खड़ा है यदि कोई ईमानदार कर्तव्यनिष्ठ अधिकारी की क्रमोन्नति,पदोन्नति होती है तो सारा विभागीय सिस्टम ही डगमगा जाएगा,क्योंकि ऐसे भ्रष्ट अधिकारियों,कर्मचारियों को भ्रष्टाचार करने का अवसर नही मिलेगा इस स्थिति में दुधारू गाय किसे प्यारी नही ऊपर बैठे अधिकारी खूंटे से बंधी गाय नही बल्कि दूध देने वाली दुधारू गाय चाहते है जो इन्हें दूध,मलाई,छाज, सब कुछ दे सके यही कारण पात्र सीनियर अधिकारी के पदोन्नति का सबसे बड़ा रोड़ा माना जा रहा है वही सेवानिवृत्त होने के पूर्व ही संविदा नियुक्ति को लेकर भी बड़े बड़े खेल हो रहे है पदोन्नत होने वाले अधिकारी,कर्मचारी अपने पदोन्नति का इंतज़ार करते रहता है और बाला-बाला ऐसे भ्रष्ट अधिकारी बड़ी राशि लेनदेन कर अपने सेवाकाल दो से तीन वर्ष बढ़वा लेते है तथा एक पात्र अधिकारी अपनी पदोन्नति के बाट जोहते जोहते ही सेवानिवृत्त हो जाता है ऐसे भी अधिकारियों के नाम सामने आ रहे है जिन्हें अभी सेवानिवृत्त होने में दो से तीन माह शेष है परन्तु उनके संविदा की मुहर पूर्व से ही लग गई है जो पीछे बैठे अधिकारियों कर्मचारियों के लिए मानसिक,शारीरिक,और आर्थिक क्षति का सबब बनता जा रहा है और प्रशासन पर बैठे ऊंचे पद के अधिकारी है कि इस ओर कोई सार्थक कदम उठाने की बजाए केवल मूक दर्शक बने बैठे है और अपनी मूक सहमति प्रदान किए हुए है समस्त पीड़ित अधिकारी कर्मचारियों की ओर से यह सवाल उठाया जा रहा है कि क्या पीड़ितों को कभी न्याय मिलेगा या भ्रष्टचारियों के भरोसे ही सारा विभाग यूं ही चलता रहेगा ?

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