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हिंद महासागर में चीन का दबदबा और भारतीय नौसेना की तैयारी

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Apr 1, 2021
हिंद महासागर में चीन का दबदबा और भारतीय नौसेना की तैयारी

हिंद महासागर में चीन का बढ़ता प्रभाव भारत के लिए एक मुश्किल सवाल बन कर उभरा है और इसी बढ़ते प्रभाव का मुक़ाबला करने के उद्देश्य से पिछले कुछ वर्षों में हिंद महासागर में भारतीय नौसेना ने कई मित्र देशों की नौसेनाओं के साथ युद्धाभ्यास किए हैं.

इसी कड़ी का सबसे ताज़ा उदाहरण हालिया दो-दिवसीय पेसेक्स नौसैनिक युद्धाभ्यास है, जिसमें भारतीय और अमेरिकी नौसेनाओं ने पूर्वी हिंद महासागर क्षेत्र में अपनी क्षमताओं को परखा.

इस पेसेक्स एक्सरसाइज़ में भारतीय नौसेना के युद्धपोत शिवालिक के साथ हेलिकॉप्टर और लंबी दूरी के समुद्री गश्ती विमान पी8आई ने अमेरिकी नौसेना के जहाज़ यूएसएस थियोडोर रूज़वेल्ट कैरियर स्ट्राइक ग्रुप के साथ हिस्सा लिया.

कैरियर स्ट्राइक ग्रुप एक मेगा नौसैनिक बेड़ा होता है, जिसमें एक विमान-वाहक और बड़ी संख्या में विध्वंसक, युद्धपोत और अन्य जहाज़ शामिल होते हैं.

बीते मंगलवार को हिंद महासागर में फ़्रांसीसी संयुक्त सेना कमांडर रियर एडमिरल जैक फेयार्ड की अगुआई में एक फ़्रांसीसी नौसैनिक प्रतिनिधिमंडल मुंबई में पश्चिमी नौसेना कमान के फ्लैग ऑफ़िसर कमांडिंग-इन-चीफ़ वाइस एडमिरल हरि कुमार से मिला.

दोनों पक्षों के बीच समुद्री सुरक्षा से जुड़े मुद्दों पर नौसेनाओं के बीच अधिक सहयोग और हिंद महासागर क्षेत्र में समुद्री सुरक्षा पर बातचीत हुई. यह बातचीत इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि दोनों नौसेनाओं के बीच होने वाला वार्षिक द्विपक्षीय अभ्यास ‘वरुण’ अप्रैल 2021 के दौरान होने वाला है. इस अभ्यास में फ्रांसीसी नेवी का कैरियर स्ट्राइक ग्रुप शामिल होगा.

अप्रैल में ही भारतीय नौसेना बंगाल की खाड़ी में पहली बार फ्रांसीसी नौसेना के नेतृत्व में होने वाले “ला पेरोस” अभ्यास का हिस्सा बनेगी.

इस अभ्यास में भाग लेने वाले देशों में क्वाड के अन्य सदस्य देश – ऑस्ट्रेलिया, जापान और अमेरिका शामिल होंगे. फ्रांस के नेतृत्व वाली संयुक्त नौसेना ड्रिल में भारत का शामिल होना एक महत्वपूर्ण क़दम माना जा रहा है.

इसी वर्ष जनवरी और फरवरी में भारतीय नौसेना ने अपने सबसे बड़े युद्धाभ्यास “ट्रोपेक्स” का आयोजन किया, जिसमें परिचालन तत्परता को परखा गया.

इसमें जहाज़ों, पनडुब्बियों और विमानों के साथ-साथ भारतीय सेना, भारतीय वायु सेना और तटरक्षक बलों ने भी हिस्सा लिया.

भारतीय नौसेना के बढ़ते युद्धाभ्यास
साल 2020 पर ही नज़र डालें, तो स्पष्ट है कि विदेशी नौसेनाओं के साथ भारतीय नौसेना के अभ्यास निरंतर बढ़े हैं.

शुरुआत पिछले साल जनवरी में ही हो गई थी, जब नसीम-अल-बहर नामक अभ्यास में भारतीय नौसेना ने रॉयल नेवी ऑफ ओमान के साथ युद्धाभ्यास किया. यह युद्धाभ्यास गोवा में किया गया.

ओमान के अल रसिख़ और अल ख़ास्सब जहाज़ों ने भारतीय नौसेना के ब्यास और सुभद्रा जहाज़ों के साथ इसमें हिस्सा लिया.

उसके बाद कोविड-19 महामारी के चलते अभ्यासों पर विराम-सा लगा, लेकिन सितंबर का महीना आते-आते नौसैनिक अभ्यास फिर से होने लगे.

सितंबर 2020 में भारतीय नौसेना और रशियन फेडरेशन नेवी के बीच द्विपक्षीय अभ्यास इंद्रा नेवी बंगाल की खाड़ी में आयोजित किया गया. रूसी जहाजों एडमिरल ट्रिब्यूट्स, एडमिरल विनोग्रोडोव, और बोरिस बुटोमा और भारतीय नौसेना के जहाज़ रणविजय, किल्टन और शक्ति ने इस अभ्यास में भाग लिया.

सितंबर के ही महीने में भारतीय नौसेना और जापान मैरीटाइम सेल्फ डिफेंस फ़ोर्स ने अरब सागर में द्विपक्षीय अभ्यास जाइमेक्स में हिस्सा लिया. जापानी जहाज़ कागा और इकाजुची के साथ भारतीय जहाज़ चेन्नई, तरकश, और दीपक, विमान पी8आई, मिग 29के और दोनों नौसेनाओं के हेलिकाप्टरों ने इस द्विवार्षिक युद्धाभ्यास में भाग लिया.

भारतीय नौसेना ने अक्तूबर 2020 में बांग्लादेशी नौसेना के साथ युद्धाभ्यास ‘बोंगोसागर 2020’ का आयोजन बंगाल की खाड़ी के उत्तरी हिस्से में किया. बांग्लादेशी जहाजों प्रोत्तोय और अबू बकर के साथ समुद्री पेट्रोल विमान और भारतीय जहाज़ खत्री और किल्टन ने डॉर्नियर एयरक्राफ्ट हेलिकॉप्टर के साथ इस अभ्यास में भाग लिया.

अक्तूबर 2020 में ही भारतीय नौसेना ने श्रीलंका की नौसेना के साथ बंगाल की खाड़ी में स्लाइनेक्स नामक युद्धाभ्यास में हिस्सा लिया. श्रीलंकाई जहाजों सयुरा और गजबाहु और भारतीय जहाज़ किल्टन और कामोर्ता के साथ-साथ डॉर्नियर विमान और हेलिकाप्टरों ने इसमें भाग लिया.

इस अभ्यास के दौरान ही भारत के एडवांस्ड लैंडिंग हेलिकॉप्टर की पहली लैंडिंग श्रीलंकाई शिप गजबाहु पर की गई.

अक्तूबर 2020 में भारत ने रिपब्लिक ऑफ़ सिंगापुर की नौसेना के साथ पूर्वी हिंद महासागर क्षेत्र में द्विपक्षीय युद्धाभ्यास सिम्बेक्स किया.
वहीं नवंबर 2020 में भारतीय नौसेना ने बहुपक्षीय युद्धाभ्यास मालाबार का आयोजन हिंद महासागर में किया. इस अभ्यास में अमेरिकी नौसेना, जापानी मैरीटाइम सेल्फ़ डिफेंस फ़ोर्स और रॉयल ऑस्ट्रेलियन नेवी ने हिस्सा लिया.

नवंबर में ही भारत ने रिपब्लिक ऑफ़ सिंगापुर नेवी और रॉयल थाईलैंड नेवी के साथ पूर्वी हिंद महासागर में बहुपक्षीय सिट्मॅक्स नामक युद्धाभ्यास आयोजित किया.

इंटर-ऑपरेबिलिटी और बेस्ट प्रेक्टिस को साझा करने के उद्देश्य से भारतीय नौसेना ने 2020 में कई विदेशी नौसेनाओं के साथ पेसेक्स एक्सरसाइज़ भी आयोजित किए.

फ्रांसीसी नौसेना, जापानी समुद्री आत्मरक्षा बल, अमेरिकी नौसेना, और ऑस्ट्रेलियन नेवी के साथ पेसेक्स युद्धाभ्यास किए गए. यह युद्धाभ्यास बंगाल की खाड़ी, पूर्वी हिंद महासागर क्षेत्र, और अदन की खाड़ी में किए गए.

मेज़बान सरकारों के अनुरोध पर भारतीय नौसेना नियमित रूप से एक महीने में एक बार मालदीव के विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र की निगरानी करता रही है और सेशेल्स और मॉरीशस में दो बार जहाजों और विमानों को तैनात करके उनकी निगरानी भी करती रही है.

हिंद महासागर क्षेत्र में चीन का बढ़ता प्रभाव
चीन ने पिछले दशक में हिंद महासागर क्षेत्र में अपनी उपस्थिति कई गुना बढ़ाई है.

भारतीय नौसेना के सेवानिवृत कोमोडोर, सी उदय भास्कर आजकल सोसाइटी फ़ॉर पब्लिक स्टडीज़ के निदेशक हैं. उनका मानना है कि हिंद महासागर के संदर्भ में चीन एक ख़तरे से ज़्यादा चुनौती के तौर पर उभरा है.

भास्कर कहते हैं, “मैं इस समय हिंद महासागर में चीन की मौजूदगी को एक चुनौती के रूप में वर्णित करूंगा. नौसैना के अर्थ में, इसने अब तक ख़तरे की रूपरेखा हासिल नहीं की है. लेकिन साथ ही, भारत को बहुत सावधान रहना होगा और यह देखना होगा कि हिंद महासागर क्षेत्र में क्या हो रहा है.”

चीनी नौसेना ने पहली बार साल 2008-09 में पायरेसी रोकने के अभियानों के रूप में हिंद महासागर में प्रवेश किया और वहीं डट गए. बीते वर्षों में चीन ने यह सुनिश्चित किया कि हिंद महासागर के उन क्षेत्रों में उसकी उपस्थिति बनी रहे, जो उसके लिए रणनीतिक रूप से प्रासंगिक हैं.

उदय भास्कर के अनुसार इस प्रकरण का भारत के लिए आशय यह है कि जिसे हाल तक केवल ऐसा पड़ोसी माना जाता था जिसकी सीमा आपकी सीमा से लगती है और अब उस पड़ोसी ने एक समुद्री निकटता हासिल कर ली है.

वो कहते हैं, “यह एक चुनौती है क्योंकि यह एक तरह से भारत की अपनी प्रोफ़ाइल और क्षेत्र में भारत के हितों को कम करता है.”

उदय भास्कर कहते हैं, “चिंता की बात यह है कि चीन के हिंद महासागर में पदचिन्ह अब जिबूती से लेकर अफ्रीका तक पहुँच गए हैं. चीन और ईरान ने हाल में एक बड़ा समझौता किया है. ईरान में चीनी उपस्थिति का भी एक गंभीर मतलब है क्योंकि ईरान भारत के लिए अहम है और तेल आपूर्ति मार्गों के भौगोलिक संदर्भ में ईरान की एक निश्चित प्रासंगिकता है.”

वो यह भी कहते हैं कि चीन हिंद महासागर क्षेत्र में नौसेना सूची के एक प्रमुख आपूर्तिकर्ता के रूप में उभर रहा है और वो पहले से ही म्यांमार, श्रीलंका और पाकिस्तान को सैन्य उपकरणों का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता रहा है.

हाल ही में बांग्लादेश ने चीन से कुछ पनडुब्बियों का अधिग्रहण किया, जिसकी वजह से भारत के हिंद महासागर क्षेत्र में प्रभाव पड़ने वाला है.

क्या ये युद्धाभ्यास मददगार साबित हो सकते हैं?
कोमोडोर उदय भास्कर कहते हैं कि ये युद्धाभ्यास नौसेनाओं के बीच बेहतर आदान-प्रदान और काम में सहजता के स्तर को बढ़ाने में मदद करते हैं. ये उपयोगी हैं, लेकिन साथ ही हमें लागत और असर को भी देखना होगा कि अगर कोई नौसेना अभ्यास के लिए निरंतर तैनाती पर रहता है, तो यह जहाज़ या पनडुब्बी की भौतिक स्थिति पर असर डालता है.

वो कहते हैं, “नौसेना का पहला काम है चौबीसों घंटे युद्ध के लिए तैयार रहना. आपको युद्ध लड़ने के लिए अपने कौशल को बेहतर बनाना होगा. साथ ही आपको नौसेना की अन्य ज़रूरतों के साथ संतुलन बनाना होता है. कभी आपकी आवश्यकता अन्य नौसेनाओं के साथ मिलकर काम करने की होती है.”

“कभी-कभी हिंद महासागर क्षेत्र में भारतीय नौसेना की विश्वसनीयता को प्रदर्शित करने के लिए उसे ध्वजवाहक बनना होता है तो कभी-कभी नौसेना को मानवीय सहायता और आपदा राहत के लिए काम में लगाया जाता है.”

“हमने देखा है कि भारतीय नौसेना आवश्यकता होने पर भोजन और पानी और अन्य प्रकार के राहत कार्य भी करती है. इसलिए नौसेना की भूमिका बहुआयामी है. हमें यह सब सुनिश्चित करने के लिए पर्याप्त जहाज़ों की ज़रूरत है जिससे उन जहाज़ों का जीवन ना समाप्त हो जो अभ्यासों में संलग्न हैं.”

उदय भास्कर का यह मानना है कि अत्यधिक नौसैनिक अभ्यासों की वजह से जहाज़ों और युद्धपोतों के जीवन पर असर पड़ता है.
वो कहते हैं, “हर नौसेना इस चुनौती से गुजरती है. एक ओर आपको जो कार्य सौंपे जाते हैं उन्हें पूरा करने की आवश्यकता होती है, लेकिन साथ ही आपको लागत-प्रभाव शीलता या लागत-लाभ विश्लेषण देखना होता है.”

चीन की चुनौती का क्या जवाब है?
कोमोडोर उदय भास्कर कहते हैं कि भारतीय नौसेना के फंडिंग पैटर्न की तुरंत समीक्षा करनी होगी और उसे बढ़ाना होगा.

वो कहते हैं, “यह बहस पिछले 20-30 सालों से चल रही है कि आप वास्तव में यह उम्मीद नहीं कर सकते हैं कि रक्षा बजट का लगभग 14 प्रतिशत आबंटित करने से आप एक नौसेना को बनाए रखने में सक्षम होंगे, जिसे अब इतनी सारी ज़िम्मेदारियाँ सौंपी जा रही हैं.”

उनका यह भी मानना है कि भारत को अब राजनीतिक स्तर पर अन्य विकल्पों की तलाश करनी चाहिए. चूँकि भारत अब क्वाड का सदस्य बन चुका है, तो उसे अमेरिका से लंबी अवधि के लिए जहाज़ और युद्धपोत पट्टे पर लेने की कोशिश करनी चाहिए.

वो कहते हैं कि अमेरिका को भी इस निष्कर्ष पर आना होगा कि भारत या ऑस्ट्रेलिया या कुछ छोटे राष्ट्रों को संपत्ति प्रदान करना उसके बड़े हितों में होगा.

लेकिन चूँकि यह एक ऐसा निर्णय है, जिसे अमेरिका या उसके नीति नियोजकों को लेना होगा, सी उदय भास्कर कहते हैं कि भारत को उन्हें प्रोत्साहित करने के लिए कोशिश करनी चाहिए.

BBC

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