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कोरोना वैक्सीन: एक अरब से ज़्यादा की आबादी तक कैसे पहुँचाएगा भारत?

ByPrompt Times

Dec 3, 2020
कोरोना वैक्सीन: एक अरब से ज़्यादा की आबादी तक कैसे पहुँचाएगा भारत?
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जब वैक्सीन बनाने और देने की बात होती है, तो भारत उसके लिए बड़े एक पावरहाउस की तरह है.

भारत में बड़े स्तर पर टीकाकरण अभियान चलाए जाते हैं, यहां दुनिया भर की 60 प्रतिशत वैक्सीन बनती हैं और यहां आधे दर्जन वैक्सीन निर्माता मौजूद हैं, जिनमें दुनिया की सबसे बड़ी वैक्सीन बनाने वाली कंपनी सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया प्राइवेट लिमिटेड शामिल है.

इसमें हैरानी की बात नहीं कि भारत सरकार अरबों लोगों तक कोविड-19 की वैक्सीन पहुंचाने की इच्छा रखती है.

भारत की अगले साल जुलाई तक वैक्सीन की 50 करोड़ डोज़ बनाने और 25 करोड़ लोगों का टीकाकरण करने की योजना है.

भारत का ये आत्मविश्वास तब और बढ़ जाता है जब वो हर साल बड़ी संख्या में टीकाकरण के अपने पिछले रिकॉर्ड को देखता है.

देश का 42 साल पुराना टीकाकरण अभियान दुनिया के सबसे बड़े स्वास्थ्य अभियानों में से एक है जिसे 55 करोड़ लोगों तक पहुंचाया जाता है. इनमें खासतौर पर नवजात शिशु और गर्भवती महिलाएं शामिल हैं जिन्हें हर साल कई बीमारियों से बचाव के लिए वैक्सीन की करीब 39 करोड़ मुफ्त खुराकें मिलती हैं.

भारत के पास इन वैक्सीन को संग्रहित करने और उन पर नज़र रखने का एक बेहतरीन इलैक्ट्रॉनिक सिस्टम भी है.

इन सबके बावजूद विशेषज्ञों का कहना है कि पहली बार लाखों वयस्कों सहित अरबों लोगों तक कोरोना की वैक्सीन पहुंचाना सरकार के सामने एक असाधारण चुनौती होगी.

भारत में विकसित की जा रहीं 30 वैक्सीन में से पांच का क्लीनिकल ट्रायल चल रहा है. इनमें से एक है ऑक्सफ़र्ड और एस्ट्राज़ेनिका की वैक्सीन जिस पर फिलहाल भारत के सीरम इंस्टीट्यूट में ट्रायल चल रहा है. भारत बायोटेक एक स्वदेशी कोरोना वैक्सीन विकसित कर रही है.

भारत के जैव प्रौद्योगिकी विभाग की सचिव डॉक्टर रेणु स्वरूप बताती हैं, “एक स्वदेशी वैक्सीन का होना हमारी सर्वोच्च प्राथमिकता है.”

वहीं माइक्रोबायोलॉजिस्ट डॉक्टर गगनदीप कांग कहती हैं, “कई वैक्सीन में से एक को चुनना और फिर उसे चुने गए समूहों तक पहुंचाना, ये सब बड़ी चुनौतियां हैं.”

गगनदीप कांग रॉयल सोसाइटी ऑफ़ लंदन की फेलो चुनी जाने वालीं पहली भारतीय महिला हैं. वह कहती हैं, “हम इस काम की जटिलता को समझते हैं. भारत की आधी आबादी का टीकाकरण करने में ही कुछ साल लग जाएंगे.”

ऐसे में ये समझने की कोशिश करते हैं कि टीकाकरण के बेहतरीन अनुभव के बावजूद भारत सरकार के सामने कोविड-19 की वैक्सीन लोगों तक पहुंचाने में क्या चुनौतियां हैं.

वैक्सीन की आपूर्ति और संग्रहण

वैक्सीन प्रभावी रहे इसके लिए ज़रूरी है कि उसे उचित तापमान पर स्टोर किया जाए. भारत में 27,000 कोल्ड स्टोर्स हैं जहां से संग्रहित की गईं वैक्सीन को 80 लाख स्थानों पर पहुंचाया जा सकता है. लेकिन, क्या ये पर्याप्त होगा?

देश में जितनी संख्या में वैक्सीन की ज़रूरत होगी, उतनी ही संख्या में अपने आप नष्ट हो वाली सीरिंज (इंजेक्शन) की भी ज़रूरत होगी ताकि उनके दोबारा इस्तेमाल और किसी तरह के संभावित संक्रमण को रोका जा सके.

दुनिया के सबसे बड़े सीरिंज निर्माता का कहना है कि वो वैक्सीन की मांग को पूरा करने के लिए अगले साल तक एक अरब सीरिंज बनाएगा. इसके अलावा कांच की उन शीशियों की आपूर्ति को लेकर भी सवाल हैं जिनमें वैक्सीन की खुराक रखी जाएगी.

वहीं, उस मेडिकल कचरे के निपटारे को लेकर क्या किया जाएगा जो इस टीकाकरण अभियान से बड़े स्तर पर निकलेगा?

इन सबके अलावा भारत में आम तौर पर होने वाले टीकाकरण कार्यक्रम को पूरा करने के लिए क़रीब 40 लाख डॉक्टर और नर्सों की ज़रूरत होती है. लेकिन, कोविड-19 के टीकाकरण के लिए और ज़्यादा लोगों की ज़रूरत पड़ेगी.

देश की प्रमुख बायोटेक्नोलॉजी कंपनी बायोकॉन की संस्थापक किरन मजूमदार शॉ कहती हैं, “मुझे चिंता है कि ग्रामीण भारत तक इन संसाधनों का विस्तार हम कैसे करेंगे.”

किसे पहले मिलेगी वैक्सीन

सरकार के लिए ये फ़ैसला लेना भी चुनौतीपूर्ण होगा कि सबसे पहले किसे वैक्सीन दी जाए.

स्वास्थ्य मंत्री हर्ष वर्धन का कहना है कि निजी और सरकारी स्वास्थ्यकर्मियों और अन्य विभागों के फ्रंटलाइन वर्कर्स को पहले वैक्सीन दी जाएगी. हालांकि विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसा करना आसान नहीं होगा.

एपिडेमियोलॉजिस्ट डॉक्टर चंद्रकांत लहरिया कहते हैं, “हमारे पास वैक्सीन की पर्याप्त आपूर्ति कभी नहीं होगी. ऐसे में किसे पहले वैक्सीन दी जाए ये तय करना अपने आप में बड़ी चुनौती बनने वाला है.”

एक और बात का ध्यान रखा जाना ज़रूरी है. भारत एक ऐसा देश है जहां बड़ी संख्या में स्वास्थ्यकर्मी निजी क्षेत्र से जुड़े हैं. तो क्या एक निजी क्षेत्र के स्वास्थ्यकर्मी को सरकारी स्वास्थ्यकर्मी के मुक़ाबले प्राथमिकता दी जाएगी? क्या स्थानीय कर्मियों को अनुबंध पर काम करने वालों के मुक़ाबले प्राथमिकता दी जाएगी?

अगर पहले से दूसरी बीमारियों से जूझ रहे बुज़ुर्गों को पहले वैक्सीन दी जाएगी तो उसमें अलग-अलग बीमारियों के हिसाब से किन्हें प्राथमिकता मिलेगी?

जैसे भारत में सात करोड़ लोगों को डायबिटीज है, ये आंकड़ा पूरी दुनिया में दूसरे नंबर है. तो क्या इन सभी लोगों को पहले वैक्सीन दी जाएगी.

वहीं सभी 30 राज्यों में कोरोना की वैक्सीन पहुंचाना संभव नहीं है. तो क्या उन राज्यों में वैक्सीन पहले दी जाएगी जहां कोरोना वायरस के ज़्यादा मामले हैं?

लाखों खुराकों की निगरानी

वॉशिंगटन स्थित सेंटर फ़ॉर ग्लोबल डेवलपमेंट में स्वास्थ्य देखभाल आपूर्ति श्रृंखला का अध्ययन करने वाले डॉक्टर प्रशांत यादव के मुताबिक़ वैक्सीन के अच्छे पोर्टफोलियो वाले वैक्सीन निर्माताओं से विनिर्माण अनुबंध करने से भारत को लोगों तक जल्दी पर्याप्त वैक्सीन पहुंचाने में मदद मिलनी चाहिए.

लेकिन वो कहते हैं कि नियमित टीकाकरण में सफलता मिलना कोविड-19 वैक्सीन के मामले में सफलता की गारंटी नहीं देता.

डॉक्टर प्रशांत यादव का कहना है, “नियमित टीकाकरण में सरकार के पास पहले से बनी हुई व्यवस्था है लेकिन ये ज़्यादातर सरकारी क्लीनिक्स के लिए है. फिलहाल वयस्कों के लिए बड़े स्तर पर कोई टीकाकरण कार्यक्रम नहीं है और वयस्क सरकारी स्वास्थ्य देखभाल केंद्रों में नियमित तौर पर नहीं जाते.”

किरण मजूमदार शॉ और इंफोसिस के सह-संस्थापक नंदन नीलेकणि सुझाव देते हैं कि भारत को वैक्सीन की हर खुराक का रिकॉर्ड रखने और निगरानी के लिए आधार कार्ड का इस्तेमाल करना चाहिए.

नंदन नीलेकणि ने एक अख़बार से कहा, “हमें एक ऐसी प्रणाली बनाने की ज़रूरत है जिससे देशभर में एक दिन में एक करोड़ लोगों को वैक्सीन दी जा सके लेकिन ये सब एक डिजिटल आधार द्वारा एकीकृत हो.”

धोखाधड़ी की आशंका

इस बात को लेकर भी चिंता जताई जा रही है कि वैक्सीन पहुंचाने में भ्रष्टाचार भी हो सकता है.

प्रशासन उन लोगों की पहचान कैसे करेगा जो नकली दस्तावेजों के आधार पर उन लोगों में शामिल होने की कोशिश करेंगे जिन्हें शुरुआती टीकाकरण के लिए चुनाव गया है. वहीं, दूर-दराज के बाज़ारों में बेची जा रही नकली वैक्सीन को कैसे रोका जाएगा?

दुष्प्रभावों की निगरानी

कुछ लोगों में वैक्सीन के दुष्प्रभाव भी सामने आ सकते हैं. भारत के पास टीकाकरण के दौरान सामने आने वाले प्रतिकूल प्रभावों की जांच करने के लिए 34 साल पुराना निगरानी कार्यक्रम है.

लेकिन, शोधकर्ताओं ने पाया है कि दुष्प्रभावों के बारे में बताने के लिए मानक अभी भी कमजोर हैं और गंभीर प्रतिकूल घटनाओं की संख्या अभी भी अपेक्षित संख्या से कम है.

वैक्सीन के प्रतिकूल प्रभावों की पारदर्शी रूप से रिपोर्ट करने में विफलता के कारण इसे लेकर डर पैदा हो सकता है.

किसे देने होंगे पैसे

ये संभवत: एक बड़ा सवाल है. क्या सरकार वैक्सीन की सभी खुराकें लेकर उसे निशुल्क या सब्सिडी के साथ टीकाकरण अभियान में लोगों को देगी? या फिर टीके को निजी वितरण और बिक्री के माध्यम से बाज़ार की क़ीमत पर दिया जाएगा?

डॉक्टर लहरिया जैसे विशेषज्ञों का मानना है कि सरकार को हर भारतीय को टीका लगाने के लिए भुगतान करने को तब तक तैयार रहना चाहिए जब तक कि महामारी ख़त्म न हो जाए.

डॉक्टर किरण मजूमदार शॉ का कहना है कि निजी कंपनियां अपने कर्मचारियों को टीका लगाने के लिए खुद भुगतान कर सकती हैं.

नंदन नीलेकणि कहते हैं कि शुरुआत में वैक्सीन की क़ीमत 3 से 5 डॉलर (लगभग 220 से 369 रुपये) होती है तो हर भारतीय के लिए इसकी दो खुराक की क़ीमत 10 डॉलर (क़रीब 739 रुपये) और भारत के लिए 13 अरब डॉलर (लगभग नौ खरब रुपये से ज़्यादा) हो सकती है. ये बहुत मंहगा होगा.

इसलिए डॉक्टर गगनदीप कांग कहती हैं कि भारत के लिए एक अच्छी वैक्सीन की लागत 50 सेंट (क़रीब 2.25 रुपये) प्रति खुराक से कम होनी चाहिए. ये भरपूर मात्रा में उपलब्ध हो और इसकी एक खुराक की ज़रूरत हो.

















BBC


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