विकास खंड ठियोग में बुधवार देर शाम कई पंचायतों में हुई ओलावृष्टि से सेब के पौधों सहित उनके ऊपर लगाए गए हेलनेट को भारी नुकसान पहुंचा है। ओलावृष्टि से सेब की पिक बर्ड स्टेज पर नकारात्मक असर हुआ है। इसी स्टेज से आगे चल कर सेब का फल विकसित होता है। पिक बर्ड बर्बाद होने से सेब फसल की पैदावार काफी कम हो जाती है।
ओलावृष्टि के कारण सबसे अधिक घूंड पंचायत के भराल, गडेदी, नांगन आदि गांवों में नुकसान हुआ है। यहा पर करीब 40 मिनट तक जमकर मोटे आकार के ओले बरसते रहे। इसके अलावा भराना व भाज पंचायतों के कई गावों में एक घंटे से अधिक लगातार ओलावृष्टि होती रही। ओलावृष्टि के सामने बागवानों द्वारा सेब के पौधों पर लगाई हेलनेट भी नाकाफी साबित हुई। ओलों के कारण हेलनेट भी जगह-जगह से फट गई। इससे बागवानों को दोहरा नुकसान हुआ है। सेब ही है आर्थिकी का मुख्य साधन
बागवानों ने स्थानीय प्रशासन और सरकार से प्रभावित पंचायतों में सेब के पौधों को हुए भारी नुकसान का आकलन कर मुआवजा देने की मांग की है। बागवानों का कहना है कि सेब ही उनकी आर्थिकी का मुख्य आधार है। क्या कहते हैं बागवान
ऊपरी शिमला के लोगों की रोजी-रोटी ही बागवानी है और इस पर मौसम की मार से आर्थिकी पूरी तरह प्रभावित हो जाती है। भारी ओलावृष्टि से बगीचों में सेब के फूल और पत्तियां झड़ गए हैं। सरकार बागवानों को हुए इस नुकसान के लिए मुआवजे की जल्द घोषणा करे।इशु चंदेल, बागवान। पिछले साल कोरोना की वजह से फसल के दाम कम मिले थे। इस साल ओलावृष्टि के कारण सेब की टहनियां तक भी टूट गई हैं। आने वाले दो-तीन साल तक फसल पर नकारात्मक असर पड़ेगा जिसके लिए सरकार को फसल बीमा देना चाहिए।
परस राम, बागवान। गत दिवस एक घंटे की ओलावृष्टि ने पूरे साल की मेहनत पर पानी फेर दिया है। ओले इतने भारी थे कि पौधों के ऊपर लगाए गए हेलनेट भी जगह-जगह से फट गए हैं। बागवानों के हित के लिए सरकार को ठोस नीति बनानी चाहिए ताकि रोजी-रोटी चल सके।
जोगिद्र शर्मा, बागवान।