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उत्तराखंड की दलित भोजनमाता का एलान, ‘नौकरी पर तैनाती बिना मामले का हल नहीं’

27 दिसंबर 2021 | उत्तराखंड की स्थानीय मीडिया में चंपावत के दलित भोजनमाता विवाद के पटापेक्ष का एलान भले हो गया हो, लेकिन विवादों के केंद्र में रही दलित भोजनमाता सुनीता देवी ने स्पष्टता से कहा है कि अभी मामला ख़त्म नहीं हुआ है क्योंकि उन्हें काम पर नहीं रखा गया है.

उन्होंने बीबीसी हिंदी से कहा, “एसडीएम आए थे. इतना ही बोला कि यह मामला सॉल्व करो. कहा कि तुमको न्याय मिलेगा. कब मिलेगा मुझे न्याय? सौ साल में मिलेगा? मेरा कहना यह है कि मुझे तुरंत तैनात किया जाए. फिर मामला सॉल्व होगा.”

चंपावत के सूखीढांग में दलित भोजनमाता के हाथों का खाना नहीं खाने से उपजा विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है. हालांकि चुनाव को देखते हुए राज्य सरकार जल्द से जल्द इस मामले को निपटाना चाहती है.

यही वजह है कि शनिवार को छुट्टी के दिन भी अधिकारी सूखीढांग पहुंचे और लोगों को समझाने का प्रयास किया.

‘विवाद सुलझ गया’

शनिवार को टनकपुर के एसडीएम हिमांशु कफल्टिया, सीईओ आरसी पुरोहित, एसपी देवेंद्र पींचा, सीओ अशोक कुमार, तहसीलदार पिंकी आर्य, बेसिक शिक्षा के डीईओ सत्यनारायण और बीईओ अंशुल बिष्ट ने जनप्रतिनिधियों और स्थानीय लोगों के साथ विद्यालय में बैठक की.

इसी बैठक के बाद कहा गया कि विवाद सुलझा लिया गया है.

इस बैठक के बारे में सुनीता देवी ने बताया, “बुलाया तो सबको था, सवर्णों को और दलितों को. लेकिन मेरे तो विचार भी नहीं पूछे. जो भोजनमाता नौकरी से हटाई गई है उसके भी विचार सुन लेते, ऐसा कहना चाहिए था या नहीं? मुझसे तो पूछा भी नहीं किसी ने.”

“सब मुझे कह रहे थे कि बड़े अधिकारी हैं, कुछ बोलना मत. उन्होंने तो पूछा नहीं लेकिन मैंने फिर भी बोल दिया कि मुझे फिर से तैनात किया जाए, तब तो मेरी सहमति होगी, वरना नहीं होगी.”

सुनीता देवी यह भी बताती हैं कि प्रशासन की मौजूदगी में लोग कह रहे थे कि ‘हमारे बच्चे खाना नहीं खाएंगे’.

उन्होंने बताया, “एसडीएम साहब खड़े थे तब पीछे से अम्माएं बोल रही हैं कि हमारे घर में देवता हैं, इसलिए नहीं खा रहे हैं हमारे बच्चे. मैंने एसडीएम साहब को बोला, देखो सर ऐसा बोल रहे हैं आपके सामने. वह बोले… हो गया, हो गया, हो गया. हो जाएगा सॉल्व.”

सुनीता देवी बार-बार यह दोहरा रही हैं कि उन्हें उनके काम पर वापस नहीं रखा गया है.

उन्होंने कहा, “अब कह रहे हैं (सवर्ण) सब साथ खाएंगे क्योंकि उनको पता चल गया है कि ऐसा (बड़ा विवाद) हो गया है. अब तो कहेंगे ही. पहले तो इन्हीं ने (सवर्णों ने) किया सब. इन्होंने ही अख़बार में छपवाया कि यह फ़र्ज़ी रखी गई. कहा कि इसे हटाकर रहेंगे. इन्हें पता नहीं था कि जीत हमारी ही होगी. अब पता चल गया है लेकिन सॉल्व क्या हुआ है? सोमवार को स्कूल खुल रहे हैं, मुझे ड्यूटी पर भेजा जाए. जब सब खाना खा लेंगे मेरे हाथ का, तब सॉल्व हो जाएगा.”

सुनीता देवी इस पूरे मामले को अपने मान सम्मान से जोड़कर भी देख रही हैं.

उन्होंने कहा, “जो मेरी तौहीन हुई है कि यह दलित महिला है, इसके हाथ का नहीं खाएंगे, इसका क्या होगा? जो मुझे जातिसूचक शब्द बोले गए, जो पूरे गांव ने मुझे घेरकर हड़काया कि तू क्यों आई यहां…इसका क्या होगा? अधिकारी कह रहे थे कि सबको मिलकर रहना होता है, दुख-सुख में गांववाले ही काम आते हैं. ये लोग 3000 रुपये की भोजनमाता की नौकरी से मुझे हटाना चाहते हैं, ये क्या मेरा दुख-सुख देखेंगे?”

शनिवार को हुई बैठक के बाद भी यह तय नहीं है कि सुनीता देवी को काम पर वापस रखा जाएगा या नहीं क्योंकि बैठक में जारी प्रस्ताव के अनुसार भोजन माता भर्ती प्रक्रिया की जांच के लिए तीन सदस्यीय समिति का गठन किया जाएगा. इसमें एक अनुसूचित जाति का सक्षम अधिकारी, एक राजपत्रित अधिकारी और एक महिला अधिकारी होंगे. भर्ती प्रक्रिया पर नियमानुसार कार्रवाई की जाएगी.

शिक्षा विभाग की जांच

बैठक में शामिल रहे मुख्य शिक्षा अधिकारी आरसी पुरोहित ने बीबीसी हिंदी को बताया कि इससे पहले गठित जांच की रिपोर्ट बीईओ अंशुल बिष्ट ने सौंप दी है.

इसमें कहा गया है कि 60 साल की उम्र होने पर जिन भोजनमाता शकुंतला देवी को हटाया गया था, उन्हें हटाने का प्रस्ताव तो पास किया गया था लेकिन बीईओ से इसका अनुमोदन नहीं करवाया गया था. इसलिए उन्हें हटाया जाना भी नियमानुसार नहीं था.

इसके अलावा पुष्पा भट्ट के नाम के प्रस्ताव पर तो विद्यालय प्रबंधन कमेटी के सचिव और प्रिंसिपल ने ही हस्ताक्षर नहीं किए थे, इसलिए वह पास ही नहीं हुआ था. सुनीता देवी के नाम का प्रस्ताव तो पास हुआ था लेकिन उसका अनुमोदन बीईओ से नहीं लिया गया था इसलिए उन्हें काम पर रखा जाना भी नियमानुसार नहीं था.

हालांकि सुनीता देवी 13 दिसंबर से प्रिसिंपल प्रेम सिंह के निर्देशानुसार यह काम कर रही थीं, उन्हें कोई नियुक्ति पत्र नहीं मिला था और वह महज़ 20 दिसंबर तक काम कर सकीं.

सवर्ण छात्रों के भोजन नहीं खाने के बाद उन्हें काम से हटा दिया था जिसके बाद से पूरा विवाद मीडिया की सुर्ख़ियों में आया.

हालांकि मुख्य शिक्षा अधिकारी आरसी पुरोहित ने यह भी कहा कि अब नई गठित होने वाली समिति मामले की नए सिरे से जांच करेगी, इसलिए अब इस रिपोर्ट पर कोई कार्रवाई नहीं होगी.

बच्चों में न बोएं भेदभाव के बीज

इस बैठक के बाद कांग्रेस के राज्यसभा सांसद प्रदीप टम्टा भी शनिवार शाम चंपावत पहुंचे. उन्होंने अपने फ़ेसबुक अकाउंट में लिखा, “कल शाम चंपावत जाकर भोजनमाता तथा सभी अधिकारियों से जिसमें एसडीएम, शिक्षा विभाग के अधिकारी, क्षेत्र के जनप्रतिनिधि और ग्रामीण लोगों से मिला व सारा मामला जानने का प्रयास किया.”

“मैंने विभागीय अधिकारियों से पूछा कि इस तरह के माहौल से हमारे ज़िले के साथ पूरे प्रदेश की बदनामी हो रही है. बड़ी बात यह है कि उन बच्चों की क्या ग़लती थी जिनके अभिभावकों ने उनके मन में जातीय भेदभाव का ज़हर घोला, जिसके बाद स्कूल की यह स्थिति बन गई है. ऐसे में बच्चे क्या सीखेंगे, कैसे समाज का निर्माण होगा? जो बच्चे पहले साथ खाते, खेलते, पढ़ते थे अब उनके मन में इस तरह से भेदभाव का बीज बोया जा रहा है.”

“मैने शिक्षा विभाग के अधिकारियों से पूछा कि यदि भोजनमाता की दूसरी नियुक्ति सभी नियमों के अनुसार हुई थी तो फिर सुनीता देवी को हटाया क्यों गया? यदि विभाग द्वारा उनके अप्रूवल में कोई देरी हुई तो इसमें उनकी क्या ग़लती थी? इसमें चूक शिक्षा विभाग से हुई और सज़ा सुनीता देवी को मिली.”

हालांकि इस पूरे मामले में सोमवार का दिन भी अहम साबित होने वाला है.

चंपावत के सूखीढांग इंटर कॉलेज में सोमवार को सुनीता देवी काम पर तो नहीं बुलाई जाएंगी लेकिन स्कूल के सभी बच्चे क्या दूसरी भोजनमाता विमलेश उप्रेती के हाथों का खाना खाएंगे, इस पर भी लोगों की नज़रें होंगी क्योंकि स्कूल में पढ़ने वाले दलित बच्चों ने सवर्ण भोजनमाता के हाथों से बने भोजन को खाने से इनकार कर दिया है

दिल्ली में भोजनमाता नहीं बनूंगी

उधर सुनीता देवी साफ़ कहती हैं कि वे अपनी नौकरी को यूं ही नहीं जाने देंगी और धरने पर बैठ जाएंगी.

उन्हें यह पता चल गया है कि दिल्ली सरकार ने उन्हें दिल्ली में सरकारी नौकरी देने का एलान किया है, हालांकि उन्हें अभी तक आधिकारिक सूचना नहीं मिली है.

इस पर उन्होंने यह कहा, “दिल्ली में सरकारी नौकरी मिलेगी तो ज़रूर करूंगी लेकिन भोजनमाता की नहीं करूंगी. एक परिवार में पांच जने हैं. 3000 रुपये से पालन-पोषण कैसे होगा दिल्ली में सात-आठ हज़ार का तो कमरा ही आएगा. यहां घर छोड़कर जाऊंगी, तो वहां इतने में गुज़ारा नहीं हो सकता. दिल्ली सरकार कोई और नौकरी दे, तो कर लूंगी.”

Source;- “बीबीसी समाचार”

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