गोहाना :- कोरोना महामारी को फैलने से रोकने के लिए मार्च, 2020 में लगे लाकडाउन में लोग स्वयं घरों में कैद हो गए थे। हर किसी के मन में कोरोना संक्रमण को लेकर खौफ था। लोग घरों से बाहर निकलने से डरते थे। शिक्षण संस्थान बंद हो चुके थे और बच्चों की पढ़ाई व्यापक स्तर पर बाधित हो रही थी। विद्यार्थी मोबाइल पर शिक्षकों से संपर्क करते तो उनकी शंकाएं दूर नहीं हो पाती। उस स्थिति में दिव्यांग शिक्षक सुनील लाठर ने बच्चों के घर-घर जाकर शिक्षा की अलख जलाई।
गोहाना में उत्तम नगर में रहने वाले दिव्यांग शिक्षक सुनील लाठर शिक्षा के प्रति हमेशा समर्पित रहे हैं। उनकी 2004 में शिक्षा विभाग में जेबीटी शिक्षक के पद पर करनाल के गुढ़ा गांव की राजकीय प्राथमिक पाठशाला में नियुक्ति हुई। अब वे गोहाना के गांव गढ़ी सराय नामदार खां के राजकीय माध्यमिक विद्यालय में सेवाएं दे रहे हैं। कोरोना महामारी के चलते मार्च में देशभर में विकट स्थिति बन गई थी। मार्च, 2020 में लाकडाउन लग गया था और शिक्षण संस्थान बंद हो गए। कोरोना संक्रमण का खौफ हर किसी के मन में था। राजकीय स्कूलों के बच्चों के अभिभावकों के पास संसाधनों की कमी के चलते उनकी पढ़ाई बाधित होने लगी। कुछ अभिभावक सुनील के पास फोन करके अपने बच्चों की बात करवा देते। अधिकतर बच्चों से सुनील का संपर्क नहीं हो पाया। बच्चों की पढ़ाई बाधित होने पर सुनील के मन में पीड़ा होने लगी। इसके बाद अप्रैल में उन्होंने स्कूटी पर अपनी कक्षा के बच्चों के घर-घर पहुंचना शुरू कर दिया। वे स्कूटी पर घर के बाहर बैठे रहते और बच्चों को बाहर बुला लेते। वहां शारीरिक दूरी का ध्यान रखते हुए बच्चों का होमवर्क जांचते, उनकी शंकाओं को दूर करते और आगे का काम देते। लाकडाउन में वे विद्यालय के 167 बच्चों के घर तक पहुंचे। मई और जून में सुनील ने अपनी स्कूटी और ट्रैक्टर-ट्राली की व्यवस्था करके बच्चों के घर-घर तक मिड-डे मील भी पहुंचाया। बच्चों में किताबें, कापियां और मास्क भी बांटे। लाकडाउन हटने के बाद प्राथमिक विद्यालय नहीं खुले हैं, लेकिन वे अब भी बच्चों के घर जाते हैं।
गोहाना में दिव्यांग श्रेणी में सबसे अधिक बार किया रक्तदान
सुनील लाठर शिक्षा के साथ-साथ रक्तदान को लेकर भी अलख जगा रहे हैं। वे अब तक 18 बार रक्तदान कर चुके हैं। दिव्यांग की श्रेणी में उन्होंने गोहाना में सबसे अधिक बार रक्तदान किया है। इसके लिए वे विभिन्न सामाजिक संस्थाओं द्वारा सम्मानित भी किए जा चुके हैं। लाठर कहते हैं कि वे दस साल पहले एक दोस्त के बीमार पिता से अस्पताल में मिलने गए थे। वहां चिकित्सक से उन्हें रक्तदान करने की प्रेरणा मिली।