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मारवाड़ के ताजमहल का ड्रोन से : दूधिया संगमरमर से बना शाही स्मारक, सूरज की रोशनी में हो जाता है और खूबसूरत- राज परिवार के दाह संस्कार के लिए बना था

ByPrompt Times

Aug 9, 2021

09 अगस्त 2021 | जोधपुर के मेहरानगढ़ किले की तलहटी में सफेद संगमरमर से बना शाही स्मारक जसवंतथड़ा किसी अजूबे से कम नहीं है। इसे मारवाड़ का ताजमहल कहा जाता है। सफेद संगमरमर से बना होने के कारण ही इसे ताजमहल सी संज्ञा दी गई है। खास बात ये है कि दोनों ही जगह लगा पत्थर राजस्थान के मकराना का ही है।

जसवंतथड़ा की दीवारों में लगी संगमरमर की कुछ शिलाएं ऐसी भी हैं, जिनसे सूर्य की किरणें आरपार जाती हैं। सूर्य की पहली किरण के साथ इस स्मारक की सुंदरता देखते ही बनती है। सफेद दूधिया रोशनी में कला का बेजोड़ नमूना बहुत ही खूबसूरत नजर आता है। यहां पास ही एक झील भी है, जो जसवंतथड़ा को और सुंदर बना देती है।

राजपरिवार के दाह संस्कार के लिए बना था स्मारक
19 वीं शताब्दी में जोधपुर के राजपरिवारों के दाह संस्कार के लिए इस स्मारक को बनाया गया। इसे जोधपुर के 33वें राठौड़ शासक जसवंतसिंह द्वितीय की याद में उनके उत्तराधिकारी महाराजा सरदार सिंह ने बनवाया था। यहां महाराजा सुमेर सिंह, महाराजा सरदार सिंह, व महाराजा उम्मेद सिंह व महाराजा हनवंत सिंह के स्मारक हैं। यहां महारानियों के स्मारक भी हैं। दो वर्ष पूर्व राजघराने की राजमाता कृष्ण कुमारी का अंतिम संस्कार भी यहीं किया गया था ।

मेहरानगढ़ की तलहटी में स्थित इस स्मारक में दूधिया संगमरमर की नक्काशीदार जालियां हैं। जो कंगुरे राजस्थानी और मुगल शैली का मिश्रण है। मुख्य स्मारक एक मंदिर के आकार में बनाया गया था। जसवंतथड़ा के आर्किटेक्ट बुद्धमल और रहीमबख्श थे। इसके निर्माण में कलात्मकता का पूरा ध्यान रखा गया है। जसवंतथड़ा के मुख्य अहाते में घुसने के लिए दो बार सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं। सामने की ओर निकले बरामदे मुगलों से प्रभावित हैं।

मकराना से संगमरमर मंगवाया था
1899 में बने इस स्मारक पर 2, 84,678 रुपए खर्च हुए थे। इसे सन् 1899 में जोधपुर के महाराजा जसवंतसिंह द्वितीय की याद में उनके उत्तराधिकारी महाराजा सरदार सिंह ने बनवाया था। इससे पहले दाह संस्कार मंडोर में होता था। इसके लिए जोधपुर से 250 किलोमीटर दूर मकराना से संगमरमर का पत्थर मंगवाया था। इसके पास छोटी झील है, जिसे देव कुंड कहा जाता है। देव कुंड को महाराजा अभय सिंह ने बनवाया था। इसके पास महाराजा सुमेर सिंह, महाराजा सरदार सिंह, महाराजा उम्मेद सिंह व महाराजा हनवंत सिंह के स्मारक हैं।

पर्यटक स्मारक के अंदर तत्कालीन राजाओं की तस्वीर देख सकते हैं। जसवंतथड़ा के पास बने जलाशय का इस्तेमाल शाही रीति-रिवाजों के लिए किया जाता था, लेकिन अब यहां ऐसा कुछ नहीं होता। इस ऐतिहासिक धरोहर की सीढ़ियों पर स्थानीय लोक-संगीत कलाकर पर्यटकों का स्वागत करते हैं। स्मारक का आंतरिक भाग खूबसूरत नक्काशी और कलाकृतियों से सजाया गया है। स्मारक के आसपास बनाए गए मेहराब और स्तंभ पर्यटकों को प्रभावित करते हैं। संगमरमर की बनी इस संरचना को राजस्थानी शैली में बनाकर तैयार किया गया था।

नामकरण महाराजा जसवंतसिंह द्वितीय के नाम पर
यहां दूर से दिखाई देते गुंबद मुगल वास्तुकला से प्रभावित मिलते हैं। जसवंतथड़ा का नाम यहां के महाराजा जसवंत सिंह द्वितीय के नाम पर रखा गया था। झील और हरे-भरे पेड़ों से घिरे जसवंतथड़ा को शहर में आने वाले पर्यटक देखना पसंद करते हैं।

Source;-“दैनिक भास्कर”  

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