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एक्सपर्ट्स का दावा-हमेशा निगेटिव नहीं होती चिंता, यह बॉडी का इंटरनल अलार्म सिस्टम भी है; 4 पॉइंट्स में समझिए इसके फायदे

21 जनवरी 2022 | चिंता करना हमेशा ही खराब नहीं होता है। कई एक्सपर्ट्स इसे बॉडी के इंटरनल अलार्म सिस्टम की तरह मानते हैं। उनका कहना है कि कुछ हद तक चिंता का होना अच्छा है। इसे पूरी तरह खत्म नहीं करना चाहिए, पर इसे हमेशा नकारात्मक तरीके से भी नहीं लेना चाहिए। ऐसा करने पर कोई भी डर भाग जाता है।

इस बात को एक उदाहरण से समझते हैं। अमेरिका में एक महिला ने ड्राइविंग लाइसेंस मिलने के बाद भी 8 साल तक कार नहीं चलाई। दरअसल उन्हें हर वक्त यह चिंता रहती थी कि कहीं गलती से ब्रेक की जगह कहीं और पैर न चला जाए और दुर्घटना हो जाए। ऐसा हम में से कई लोगों के साथ होता है।

एक्सपर्ट्स का मानना है कि कई बार टेंशन वाली सिचुएशन में चिंता करना आपके लिए मददगार भी हो सकता है। यह आपको कुछ गलत करने से रोकने वाले इंटरनल अलार्म सिस्टम की तरह काम करता है। एक्सपर्ट्स कहते हैं कि एंग्जायटी से बाधाओं का अनुमान लगाने और सतर्क रहने में मदद मिलती है। चिंता का स्तर ज्यादा बढ़ने लगे तो डीप ब्रीदिंग और वॉकिंग से नियंत्रण पा सकते हैं।

आइए 4 पॉइंट्स में एंग्जायटी के फायदे एक्सपर्ट्स से समझिए…

1. चिंता की भावना हमारी सुरक्षा के लिए ही है
मनोवैज्ञानिक एलन हेंड्रिक्सन के मुताबिक, कुछ हद तक चिंता, बाधाओं का अनुमान लगाने और सतर्क रहने में मदद कर सकती है। न्यूरोसाइंटिस्ट वेंडी सुजुकी कहती हैं, चिंता की भावना व तनाव वाला रिएक्शन हमारी सुरक्षा के लिए ही डेवलप हुआ है। थोड़ा तनाव प्रदर्शन सुधारने में मदद करता है। चिंता बढ़ने लगे तो गहरी सांस लेकर इसे घटाने की कोशिश करें। वॉकिंग से भी एंग्जायटी पर नियंत्रण पा सकते हैं।

2. चिंताओं का प्रबंधन सीखें, चुनौती आसान लगेगी
मनोवैज्ञानिक जोएल मिंडेन कहते हैं, चिंता को स्वीकार करके इसे निष्पक्ष रूप से देखना शुरू करें। हमेशा बुरा होने की आशंका न पालें। जिस तरह आप एक दोस्त का डर दूर करने के लिए छोटी-छोटी कोशिशें करते हैं। उसी तरह यह एक तरीके से सीखने की प्रक्रिया है कि चिंता को स्वीकार और सहन कैसे करें। एक बार आप इसका प्रबंधन सीख गए, फिर आपको कोई चुनौती असंभव नहीं लगेगी। इस तरह चिंता भी मददगार होगी।

3. मन की आवाज सुनें, फिर दबाव महसूस नहीं होगा
फिलाडेल्फिया के मनोवैज्ञानिक डॉ. सेट गिलिहान बताते हैं कि पहले उन्हें हर दिन कामकाज शुरू करने से पहले चिंता रहती थी। सेहत की समस्या के चलते भी कई काम नहीं हो पाते थे। वे कहते हैं कि चिंता को रोकने पर भी बहुत परेशानी होती है। उन्होंने काम के वक्त में कटौती करके बचा वक्त लेखन में दिया। अब पहले से हल्का महसूस करने लगे हैं।

4. चिंता कम करने में मददगार योजनाएं बनाएं
मनोवैज्ञानिक एलिस बॉयस कहते हैं, चिंतित लोग सावधान व सतर्क रहते हैं। उन्होंने एक बच्ची का उदाहरण दिया जो बचपन में स्कूल से डरती थी, बहाने बनाती थी। बड़े होने पर भी उसकी चिंता जारी रही पर उसने इनसे निपटने के लिए आकस्मिक योजनाएं बनानी शुरू कर दीं। इससे मन को शांति और बुरी स्थिति की आशंका को कम करने में मदद मिली।

Source;-“दैनिक भास्कर”

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