• March 28, 2024 6:57 pm

वन अधिकार, वनवासियों के चेहरे पर खुशियां अपार, खुला प्रगति का द्वार

ByPrompt Times

Aug 19, 2020
वन अधिकार, वनवासियों के चेहरे पर खुशियां अपार, खुला प्रगति का द्वार
Share More

वन अधिकार मान्यता पत्र देने में देश का अग्रणी राज्य बना छत्तीसगढ़
लेखः- कमल ज्योति/विष्णु वर्मा
सहायक जनसंपर्क अधिकारी
जल, जंगल और जमीन आदिवासियों की परंपरा एवं संस्कृति का अटूट हिस्सा ही नहीं बल्कि उनकी आजीविका का साधन भी है। आदिकाल से वनों पर निर्भर आदिवासी समाज इसके सानिध्य में ही अपना घरौंदा बनाकर जीवनयापन करता रहा है। विलासिता से दूर, प्रकृति की गोद में अपने अस्तित्व को बचाकर रखा और साथ ही साथ प्रकृति का संरक्षण भी किया। जान जोखिम में डालने से लेकर जान गंवाने तक वनवासी कभी अपना घरौंदा छोड़कर नहीं भागे। वनोपज हो या अन्य संसाधन, अपने जीवनयापन के लिए ही उन संसाधनों का उपयोग करता रहा। कभी भी दोहन नहीं किया क्योंकि वे प्रकृति को अपना मानते हैं। खुद को इस धरती का वंशज मानने के साथ पेड़-पौधों को देवता मानकर उनकी पूजा करते हैं। वे वनों पर अपना अधिकार समझते हैं। वक्त के साथ समय बदला, जल, जंगल और जमीन के साथ वनों से मिलने वाली उपज, जंगल के नीचे दबे खनिज संसाधनों पर सबकी नजर गई और फिर क्या था, यहीं से आदिवासी, परम्परागत वनवासी, अतिक्रमणकारी के रूप में संदेह की दृष्टि से देखे जाने लगे। कोई सुनने और समझने वाला नहीं था, इसलिए कइयों के घरौंदे उजड़ गए, बहुतों ने पलायन कर लिया। इस बीच जो कहीं नहीं गए उन्हें वन्यजीवों से ज्यादा खतरा अपनी भूमि से बेदखल होने और घरौंदा टूटने का सताता रहा। अब जबकि प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल स्वयं वन अधिकार मान्यता अधिनियम-2006 के कार्यों की समीक्षा करने के साथ पूर्व में निरस्त दावों की त्रुटियों को सुधार कर वनवासियों को उनके पर्यावास से जोड़ रहे हैं तब से वन अधिकार पट्टा वितरण के कार्यों में प्रगति आई है। अब परम्परागत वनवासियों, अनुसूचित जनजातियों को अपना घरौंदा टूटने का भय, बेदखल होने का डर नहीं सताता। शासन द्वारा वन अधिकार अधिनियम के अंतर्गत वितरित भूमि में समतलीकरण एवं मेड़ बंधान कार्य, खाद एवं बीज, कृषि उपकरण, सिंचाई के लिए नलकूप, कुआं, स्टापडैम, प्रधानमंत्री आवास से भी लाभान्वित किया जा रहा है। व्यक्तिगत और सामुदायिक वन अधिकार मान्यता पत्र मिलने से वनग्रामों में निवास करने वाले वनवासी निश्चिंत होकर रहने लगे हैं। इनकी प्रगति के द्वार भी खुल गए हैं।

अब यह जंगल गांव वालों का हो गया और तस्वीर भी बदलने लगी

अब यह जंगल गांववालों का हो गया और तस्वीर भी बदलने लगी है। अब इनके गांवों की तस्वीर पहले जैसी नहीं रही। पास में जंगल तो थे लेकिन उन पर इनका हक नहीं था। वन अधिकार मान्यता अधिनियम-2006 के अंतर्गत प्रदेश का पहला सामुदायिक वन संसाधन अधिकार मिलने के बाद गांव की सीमा से लगे वन पर गांववालों का अधिकार हो गया है। धमतरी जिले के विकासखण्ड नगरी के अंतर्गत आने वाला ग्राम जबर्रा औषधीय पौधों के लिए पहले से विख्यात है। इस गांव को वन संसाधन अधिकार के रूप में मान्य किया गया है। इस अधिकार के बाद ग्रामसभा के पारम्परिक सीमा के भीतर स्थित जंगल के सभी सामुदायिक संसाधनों का संरक्षण, पुनरुत्पादन तथा प्रबंधन जैसे पौधरोपण, जंगल का रखरखाव, वन्यप्राणियों, जैव विविधता की सुरक्षा गांववासी करने लगे हैं। उन्हें जंगल पर नैसर्गिक अधिकारों की मान्यता मिल गई है। यहां 5,352 हेक्टेयर क्षेत्र में सामुदायिक वन संसाधन अधिकार की मान्यता दी गई है। ग्रामसभा अधिनियम की धारा 5 के अनुसार वन संसाधनों तक पहुंच को भी विनियमित किया जा सकता है। यह देश में किसी एक गांव को मान्य किए जाने वाला सर्वाधिक क्षेत्र है। यह वन विभाग के 17 कम्पार्टमेंट में तथा 3 बीट में फैला है। यहां वन प्रबंधन समिति बनाकर देख-रेख के लिए नियम बनाए गए हैं। आग से बचाव के लिए जुर्माना, कटाई पर पूर्ण प्रतिबंध तो लगाया ही गया है। कोई भी ग्रामीण बिना समिति की अनुमति के कोई भी वन सामग्री नहीं ले सकते। यहां आत्मनिर्भर बनने स्व सहायता समूह की महिलाओं द्वारा माहुल पत्ता संग्रहण कर दोना-पत्तल का निर्माण भी किया जाता है। औषधीय ग्राम होने की वजह से यहां पर्यटकों का आना-जाना भी लगा रहता है। पर्यटन गतिविधियों को युवाओं का स्व सहायता समूह संचालित करता है। दोना-पत्तल बिक्री और पर्यटन गतिविधियों से ग्रामवासियों ने 2 लाख रुपए की कमाई भी कर ली है। कुछ ऐसे ही कांकेर जिले के अंतर्गत आने वाले ग्राम खैरखेड़ा को वन संसाधन अधिकार मिला है। गांव के लगभग 4596 एकड़ क्षेत्र में यह अधिकार मिलने के पश्चात ग्रामीण आर्थिक गतिविधियों से जुड़ने लगे हैं। यहा जैव विविधता को ध्यान रखकर जंगल को और अधिक सघन करने नियम बनाए गए हैं। विलुप्त हो रहे जंगली जानवरों के संरक्षण के लिए शिकार पर प्रतिबंध लगाया गया है। पानी के प्राकृतिक स्रोत को भी संरक्षित किया गया है। पशुपालन, मछलीपालन को बढ़ावा दिया जा रहा है। यहां 100 प्रकार के बीजों को संरक्षित कर बीज बैंक की स्थापना की गई है। इस तरह ग्रामवासी आत्मनिर्भरता की राह पर आगे बढ़ते जा रहे हैं।

वन अधिकार अधिनियम के क्रियान्वयन में छत्तीसगढ़ आगे

वन अधिकार अधिनियम 2006 के क्रियान्वयन के मामले में छत्तीसगढ़ राज्य अन्य प्रदेशों की तुलना में आगे है। यहां 4 लाख 41 हजार व्यक्तिगत वन अधिकर दावे स्वीकृत हैं। जून 2020 की स्थिति में प्रदेश में 8 लाख 9760 व्यक्तिगत दावे प्राप्त हुए जिनमें से 4 लाख 22 हजार 539 वितरित किए गए। सामुदायिक वन अधिकार के 35 हजार 558 आवेदन प्राप्त हुए थे, जिनमें से 30 हजार 941 वितरित किए गए। कुल 4 लाख 53 हजार 480 वन अधिकार पत्र वितरित किए जा चुके हैं। मध्यप्रदेश में 2 लाख 56 हजार 997, महाराष्ट्र में एक लाख 72 हजार 116, ओड़िशा में 4 लाख 43 हजार 761 और गुजरात में 93 हजार 704 सामुदायिक तथा व्यक्तिगत वन अधिकार पत्र वितरित किए गए हैं। छत्तीसगढ़ में 39 लाख 12 हजार 228 एकड़ भूमि वन भूमि के रूप में मान्य किए गए हैं।

बस्तर संभाग में सबसे अधिक वन अधिकार पत्र वितरित

बस्तर के आदिवासियों की परंपराएं, कला व संस्कृति, रहन-सहन, भाषा, बोली की अपनी अलग पहचान है। ऐसे में वन अधिकार मान्यता पत्र बस्तर के वनवासियों को अधिक से अधिक संख्या में मिले, यह शासन-प्रशासन की प्राथमिकता में है। प्रदेश में वन अधिकार पत्र का वितरण सबसे अधिक बस्तर संभाग में हुआ है। यहां एक लाख 45 हजार 699 व्यक्तिगत वन अधिकार पत्र वितरित किए गए हैं। सामुदायिक वन अधिकार के 14405 अधिकार पत्र वितरित किए गए हैं। सरगुजा संभाग में एक लाख 9 हजार 22 व्यक्तिगत, 8 हजार 755 सामुदायिक वन अधिकार, बिलासपुर संभाग में 85 हजार 292 व्यक्तिगत और 3256 सामुदायिक वन अधिकार, रायपुर संभाग में 51 हजार 523 व्यक्तिगत और 2179 सामुदायिक, दुर्ग संभाग में 31 हजार तीन व्यक्तिगत और 2346 सामुदायिक वन अधिकार पत्र का वितरण किया गया है।

बस्तर से लेकर सरगुजा तक के वनवासियों के चेहरे पर लौटी मुस्कान

वर्ष 2006 में तत्कालीन केंद्र सरकार द्वारा वन अधिकार कानून लाया गया था। छत्तीसगढ़ में इस कानून का क्रियान्वयन तो हुआ लेकिन प्रक्रियाओं की जटिलता की वजह से हजारों वनवासी परिवार पात्र होकर भी अपात्र हो गए थे। मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने निरस्त वन अधिकार दावे का पुनः परीक्षण कराया और प्रक्रियाओं की जटिलता को दूर करने के निर्देश दिए थे। सरकार की इस पहल से वन क्षेत्र में निवास करने वाले पात्र हितग्राहियों को वन अधिकार पट्टा मिल गया। कोरबा जिले के पोड़ी उपरोड़ा ब्लॉक के ग्राम गिद्धमुड़ी के किसान शीतल कुमार ने भी विगत कई वर्षों से खेती व निवास कर रहे भूमि पर अपना दावा किया था, लेकिन कुछ त्रुटियों की वजह से उसका आवेदन निरस्त हो गया था। अपना आवेदन निरस्त होने के बाद परिवार के लोग भी संशय में थे कि वर्षों से वे जिस भूमिपर काबिज हैं, जिस माटी को सींचते आए हैं, फसल उगाते आए हैं, कहीं अब उन्हें बेदखल तो नहीं कर दिया जाएगा। आखिरकार जब निरस्त दावों की समीक्षा हुई तो उसे लगभग 4 एकड़ का मालिकाना हक मिल गया। अब वह चिंतामुक्त होकर खेती कर पा रहा है। इसी तरह जशपुर जिले के सारूडीह के पर्वतीय इलाके में रहने वाले राजूराम लोहार और निरन्ति बाई को अपने आसपास के जंगलों में रहने वाले जंगली जानवरों से जितना डर नहीं लगता था, उससे कहीं ज्यादा खौफ अपना आशियाना उजड़ने का था। राजूराम को वहां रहते भले ही 6 से 7 दशक हो गए थे, लेकिन उसके पास कोई ठोस दस्तावेज नहीं था, जिसको आधार बनाकर वह अपना दावा और मजबूत बना सके। पट्टा के लिए आवेदन देने के बाद निरस्त हो जाने से उसकी चिंता और बढ़ गई थी। जब राजूराम के दावे की समीक्षा हुई तो वह वन अधिकार के लिए पात्र हो गया। उसे 0.008 हेक्टेयर का वन अधिकार पत्र मिल गया है। गरियाबंद जिले के ग्राम केशोडोर के वनवासी कुमार साय कमार वर्षों से जंगल में निवास करता आ रहा है। जब वन अधिकार पत्र नहीं मिला था तब उसकी दिनचर्या जंगल जाना, कंदमूल लाना, शिकार करना और बांस से बनी वस्तुओं का निर्माण करना तक सीमित थी। कमार जनजाति के कुमार साय के दादा और पिता काबिज भूमि पर लगभग 30 साल से खेती करते आ रहे थे। इस दौरान दोनों की मौत के बाद उसकी मां फुलबाई और कुमार साय के नाम पर वन अधिकार पत्र बना। लगभग 7 एकड़ का वन अधिकार पत्र मिलने से इस 6 सदस्यीय परिवार का मन खेती की ओर लगा। आखिरकार वन अधिकार पत्र देकर इन्हें आत्मनिर्भर बनाने और आर्थिक रूप से सक्षम बनाने की मंशा भी साकार होती नजर आ रही है। इनके परिवार ने 80 क्विंटल धान भी बेचा। पैसे बचाए और घर ठीक किया, साथ ही अपने लिए कुमार साय ने मोटरसायकल भी खरीद ली। बस्तर जिले के बकावण्ड ब्लॉक के ग्राम चारगांव के किसान सोमन की खुशी छिपाएं नहीं छिपती। कुल 4.25 हेक्टेयर भूमि का वनभूमि अधिकार मान्यता पत्र मिलने से खेती-किसानी में उन्होंने रुचि ली और इस साल मक्के की फसल से 39 हजार 200, धान की फसल से 30 हजार 400 और दलहन की फसलों से लगभग 6 हजार रू. से अधिक की कमाई की।
इसी तरह सरगुजा जिले के ग्राम बढ़नीझरिया निवासी 60 साल के रामचंद्र पण्डो को 5 एकड़ का वन अधिकार मान्यता पत्र मिला है। खेत में बोर हो जाने से साल में दो बार फसल लेने लगे हैं और सब्जी भी उगाते हैं। इसी गांव के पण्डो जनजाति परिवार के 46 परिवारों को भी वन अधिकार मिला है। किसान क्रेडिट कार्ड बन जाने से सहकारी समिति से खाद-बीज भी आसानी से मिल जाता है। समय पर फसल लेने से समर्थन मूल्य में धान को आसानी से बेच पाते हैं। इससे सभी की आर्थिक स्थिति सुधर रही है। राजनांदगांव जिले के देवपुरा ग्राम पंचायत के ढोलपिट्टा गांव के 30 बैगा परिवार हैं और हर किसी को लगभग 5 एकड़ जमीन वन अधिकार अधिनियम से मिली है। इससे इनके जीवन में बदलाव का एक नया अध्याय जुड़ गया है। वे खेतों में परिश्रम कर फसल भी ले रहे हैं।

जगदलपुर देश का पहला नगर निगम जहां शहरी लोगों को मिला वन अधिकार पत्र

मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने विश्व आदिवासी दिवस के मौके पर राज्य में वनवासियों की खुशहाली और वनांचल के गांवों को स्वावलंबी बनाने के उद्ेदश्य से इंदिरा वन मितान योजना शुरू किए जाने की भी घोषणा की है। इस योजना के तहत राज्य के आदिवासी अंचल के दस हजार गांव में युवाओं के समूह गठित कर उनके माध्यम से वन आधारित समस्त आर्थिक गतिविधियों का संचालन किया जाएगा। इसी तरह छत्तीसगढ़ का जगदलपुर देश का पहला नगर निगम बन गया है जहां शहरी लोगों को वन भूमि का अधिकार पत्र प्रदान किया गया है। मुख्यमंत्री ने विश्व आदिवासी दिवस के अवसर पर 4 लोगों को वन अधिकार पत्र देकर इस अभियान की शुरुआत की। यहा 1777 लोगों ने आवेदन किया है। जिस पर कार्यवाही चल रही है। इस तरह देखा जाए तो छत्तीसगढ़ के सरगुजा से लेकर बस्तर तक लगभग सभी जिलों में वन अधिकार मान्यता पत्र मिलने की खुशी वनवासी व परम्परागत निवासियों में है।

वनभूमि अधिकार पत्र के साथ योजनाओं का दिया जाता है लाभ

राज्य शासन द्वारा कई पीढ़ी या वर्षों से काबिज भूमि पर वन अधिकार मान्यता पत्र दिए जाने के साथ ही लाभान्वित हितग्राहियों को शासन की अनेक योजनाओं का लाभ देकर आत्मनिर्भर बनने का अवसर भी दिया जाता है। वितरित भूमि में भूमि समतलीकरण, मेड़ बंधान, खाद-बीज, कृषि उपकरण, सिंचाई सुविधा का लाभ तथा प्रधानमंत्री आवास योजना से भी लाभान्वित किया जाता है। प्रदेश में भूमि समतलीकरण एवं मेड़ बंधान से 1 लाख 49 हजार 762, खाद-बीज से 1 लाख 84 हजार 311, कृषि उपकरण से 11 हजार 40 तथा सिंचाई सुविधा नलकूप, कुआं, स्टापडैम से 41 हजार 237 हितग्राही लाभान्वित किए गए हैं।


Share More

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *