कोरबा । शिक्षिका सुनीता जब प्राथमिक शाला आश्रम बरपाली में आईं तो आसपास के जानवरों का चरागाह था। कोई बीज डालने पर मुर्गियां चुग लेतीं। सतत प्रयास करते हुए पहले एक काम चलाउ अहाता का निर्माण किया। उस दीवार को उन्होंने आश्रम की पुरानी मच्छरदानी का उपयोग कर बनाया था, ताकि जानवर अंदर न आ सकें। आसपास फैली गंदगी व कूड़ा-करकट को दैनिक कर्मचारी की मदद से साफ कराया। बालिकाओं के साथ उनकी माताओं को कखग का अक्षरज्ञान देने के साथ पौधरोपण कर परिसर को सुंदर बनाने जुटी हुई हैं।
केवल 19 साल की आयु से शिक्षकीय कार्य शुरू करने वाली सुनीता राठौर प्राथमिक शाला आश्रम बरपाली में सहायक शिक्षक हैं। करतला विकासखंड के बरपाली संकुल अंतर्गत स्कूल में वह समर्पित होकर कार्य कर रहीं। उन्होंने जून 2007 में अपना शिक्षकीय कार्य बहुत ही बीहड़ जंगल के बीच बसे हाथी प्रभावित गांव प्राथमिक शाला तराईमार से शुरू किया था। तब पुल नहीं होने से मांड नदी पार कर के जाना पड़ता था।
यहां एक वर्ष की सेवा देने के बाद वह कन्या आश्रम पूर्व माध्यमिक शाला रामपुर आई, जहां पदस्थ रहे उन्हें 10 वर्ष हो गए। यहां उन्होंने अपने विद्यालय को हरा भरा बनाने का पूर्ण प्रयास किया। कई उपलब्धि भी प्राप्त की, जिनमें संकुल स्तरीय सर्वश्रेष्ठ शिक्षक का सम्मान शामिल है। बालिका शिक्षा, महिला सशक्तिकरण, विषय आधारित प्रशिक्षण इत्यादि में बतौर मास्टर ट्रेनर कार्य किया और उनके मार्गदर्शन में विद्यालय से 10-12 बच्चों का एकलव्य विद्यालय व एक बालिका का राष्ट्रीय प्रतिभा खोज में चयन हुआ।
अंगना में शिक्षा में मास्टर ट्रेनर की भूमिका
सुनीता ने कहा कि इन समस्त गतिविधियों में प्रभारी प्रधान पाठक निर्मला मिंज, ज्योति कौशिक, राधिका लहरे सहायक शिक्षक प्राथमिक शाला आश्रम बरपाली का पूर्ण सहयोग रहा। वर्तमान में जिला शिक्षा अधिकारी सतीश कुमार पांडेय के मार्गदर्शन में मैं नवीन ऊर्जा के साथ विद्यालय विकास के लिए कार्य कर रही हूं।
वह कोरोना महामारी के दौर में चलाई जा रही योजना अंगना में शिक्षा में सक्रिय रूप से मास्टर ट्रेनर की भूमिका निभा रही हैं। भविष्य में अपनी संस्था को उत्कृष्ट विद्यालय के रूप में स्थापित करना ही उनका लक्ष्य है। वर्तमान में उनके आश्रम के पौधों में सुंदर फूल खिलने लगे हैं।
लाकडाउन में क्यारियों की देखरेख का दायित्व
शिक्षिा सुनीता ने बताया कि कोरोना संक्रमण की मुश्किलों के चलते एक बार फिर स्कूल-आश्रम पूरी तरह से बंद हैं। आगामी दिनों में लाकडाउन शुरू होने पर आम जनों का आवागमन भी लगभग बंद सा हो जाएगा। ऐसे में आश्रम परिसर के पौधे गर्मियों में मुरझाने लगेंगे। ऐसे में करीब ही निवास होने का लाभ मिलेगा और वे अपनी संस्था के बच्चों के परिश्रम से लहलहाने वाले पौधों की देखरेख कर उन्हें जीवित रखने का हर संभव दायित्व निभाएंगी। इसके बाद जब कभी स्कूल-आश्रम बच्चों के लिए खुलेंगे, उनका स्वागत उनकी क्यारियों के सुंदर फूल व हरियाली से होगा।