माइक्रोवेव में पके या गर्म हुए खाने को लेकर बहुत तरह की भ्रांतियां हैं. कुछ लोग कहते हैं कि माइक्रोवेव के खाने से गैस की समस्या हो जाती है. पेट ख़राब हो जाता है. कुछ का कहना है कि माइक्रोवेव करने से खाने के पोषक तत्व नष्ट हो जाते हैं.
वहीं, कई लोगों का दावा है कि इसमें पका खाना खाने से हारमोन का संतुलन बिगड़ने लगता है. लेकिन, विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक़, माइक्रोवेब में गर्म किया खाना खाने में कोई हर्ज़ नहीं है.
दावा किया जाता है कि ब्रॉकली में पाया जाने वाला फ्लेवनॉएड माइक्रोवेव में 97 फ़ीसद तक नष्ट हो जाता है. जो ब्रॉकली उबालने की तुलना में तीन गुना ज़्यादा है. लेकिन 2019 की एक स्टडी के अनुसार, अगर सब्ज़ी को कम समय के लिए माइक्रोवेव में गर्म किया जाए, तो उसके पोषक तत्व नष्ट नहीं होते.
ब्रॉकली का फ्लेवनॉएड भी ज्यूं का त्यूं रहता है. बल्कि कुछ जानकार तो यहां तक कहते हैं कि नियमित तापमान पर ब्रॉकली को माइक्रोवेव करने पर उसके फ्लेवनॉएड बढ़ जाते हैं.
हालांकि, दूसरे एक्सपर्ट इस दावे पर मोहर नहीं लगाते. फ्लेवनॉएड का सेवन करने से दिल की बीमारियां होने की संभावना घट जाती है. हां, अगर ज़्यादा पानी के साथ ब्रॉकली पकाई जाएगी, तो नुक़सान हो सकता है. कुछ सब्ज़ियां माइक्रोवेव में पकाना ज़्यादा फ़ायदेमंद है.
जबकि कुछ को पारंपरिक तरीक़ों से पकाना ही बेहतर है.
हम अक्सर माइक्रोवेव में प्लास्टिक का इस्तेमाल करते हैं. ये घातक होता है. माइक्रोवेव की गर्मी, प्लास्टिक में शामिल ज़हरीले पॉलिमर के कणों को तोड़ देती है और वो खाने में शामिल हो जाते हैं. ये पॉलिमर हार्मोन विघटन को बढ़ावा देते हैं. वैसे भी हर तरह की प्लास्टिक माइक्रोवेव के लिए नहीं होती.
फ्थैलेट्स सबसे ज़्यादा इस्तेमाल किया जाने वाला प्लास्टिसाइज़र है. ये प्लास्टिक को ज़्यादा लचीला बनाता है. इसे अक्सर टेक अवे कंटेनर, प्लास्टिक रैपर और पानी की बोतलों में प्रयोग किया जाता है. फ्थैलेट्स हमारे मेटाबोलिक सिस्टम को अनियमित करने और हारमोन बिगाड़ने में ज़िम्मेदार हैं.
फ्थैलेट्स बच्चों में ब्लड प्रेशर और इंसुलिन प्रतिरोध को बढ़ा सकता है. जिससे बच्चों में शुगर और ब्लड प्रेशर की समस्या बढ़ सकती है. इसे अस्थमा और प्रजनन संबंधी दिक़्क़तों से से भी जोड़कर देखा जाता है.
फ्थैलेट्स थायराइड हारमोन के संतुलन को भी बिगाड़ सकता है. गर्भवती महिलाओं में ये हारमोन बच्चे के दिमाग़ के विकास के लिए बहुत ज़रूरी है.
प्लास्टिक कंटेनरों में बिस्फ़ेनॉल नाम का केमिकल भी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है. ये हारमोन के चक्र को बिगाड़ने वाले विलेन का काम करता है.
फ्थैलेट्स हमारे आसपास पाई जाने वाली लगभग हर चीज़ में है. यहां तक कि बच्चों के खिलौने और बॉडी लोशन भी इससे अछूते नहीं. जानकार अभी पुख़्ता तौर पर इसके ख़तरों के बारे में कुछ नहीं कहते. लेकिन फ्थैलेट्स तेज़ गर्मी के संपर्क में आकर ख़तरनाक हो सकता है.
इस पर लगभग सभी जानकार सहमत हैं.
बेहतर यही है कि माइक्रोवेव के लिए प्लास्टिक की जगह किसी और बर्तन का प्रयोग किया जाए. कांच का बर्तन इसके लिए सबसे अच्छा विकल्प है.
माइक्रोवेव का इस्तेमाल अक्सर खाना गर्म करने के लिए किया जाता है. जिससे खाने में पनपे बैक्टीरिया मर जाएं. लेकिन जानकार कहते हैं कि खाना दो बार से ज़्यादा गर्म नहीं किया जाना चाहिए. और इसे 82 सेल्सियस से ज़्यादा गर्मी नहीं देनी चाहिए.
माइक्रोवेव में खाने को समान रूप से गर्मी नहीं मिल पाती. किनारे से लगा खाना तो जल्द गर्म हो जाता है. लेकिन बीच से ठंडा ही रह जाता है. इसलिए माइक्रोवेव में बहुत ध्यान से खाना गर्म करना चाहिए.
कुछ एक्सपर्ट आगाह करते हैं कि माइक्रोवेव में ज़्यादा गर्मी पर पकाए खाने में एक्रिलेमाइड नाम का केमिकल बन जाता है. ये केमिकल ख़तरनाक हो सकता है क्योंकि इससे कैंसर पनपने का डर होता है. खाना बनाने के किसी और तरीक़े की तुलना में माइक्रोवेव में पके खाने में एक्रिलेमाइड ज़्यादा पैदा होते हैं.
जहां तक बात है रेडिएशन की तो ये पूरी तरह सुरक्षित है. माइक्रोवेव में हल्की फ़्रीक्वेंसी वाली चुंबकीय किरणों का इस्तेमाल होता है. इतनी ही क्षमता वाली रेडिएशन लाइट बल्ब में भी प्रयोग की जाती है. माइक्रोवेव की किरणें सेहत के लिए हानिकारक बिल्कुल नहीं हैं.
माइक्रोवेव लंबे समय से एक सुरक्षित उपकरण माना जाता रहा है लेकिन इसके साथ कई चेतावनियां भी हैं.
ख़ास तौर से विशेषज्ञ अभी भी इस बात को लेकर चिंतित हैं कि माइक्रोवेव में उपयोग की जाने वाली प्लास्टिक की पैकेजिंग हमारे हारमोन और स्वास्थ्य को कैसे नुक़सान पहुंचा सकती हैं.
बहरहाल, माइक्रोवेव में खाना पकाना और गर्म करना दोनों सुरक्षित हैं. लेकिन, इसके लिए कुछ शर्तें लागू हैं.
BBC