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भारत-ऑस्ट्रेलिया टेस्ट सिरीज़: एक मैच जो भारतीय क्रिकेट के सुनहरे इतिहास में दर्ज हो चुका है

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Jan 20, 2021
भारत-ऑस्ट्रेलिया टेस्ट सिरीज़: एक मैच जो भारतीय क्रिकेट के सुनहरे इतिहास में दर्ज हो चुका है
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  • पिछली रात भारतीय प्रशंसक भगवान से मौसम के लिए प्रार्थना करके सोए थे. भारत को गाबा टेस्ट में पाँचवें दिन जीत के लिए 328 रन बनाने थे.
  • इस टेस्ट से पहले तक बॉर्डर-गावस्कर सिरीज़ 1-1 से बराबरी पर थी. ड्रॉ होने पर भारत के पास ट्रॉफ़ी बनी रहती, लेकिन ऑस्ट्रेलिया को ट्रॉफ़ी वापस ले जाने और अपनी साख बचाए रखने के लिए जीतना ज़रूरी था.
  • भारत के टेस्ट जीतने की संभावना कम थी. लेकिन इस भारतीय टीम की योजना कुछ और ही थी.

मैच ब्रिसबेन के गाबा मैदान में खेला जा रहा था, जिसे ऑस्ट्रेलियाई गढ़ के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि 1988 के बाद से मेज़बान यहां हारे नहीं हैं.
हॉस्पिटल वॉर्ड बना भारत का बॉलिंग यूनिट
ऑस्ट्रेलिया यक़ीनन अब तक के अपने सर्वश्रेष्ठ बॉलिंग अटैक के साथ खेल रहा था.

वहीं, दूसरी ओर भारत की बॉलिंग यूनिट एक हॉस्पिटल वॉर्ड की तरह दिखने लगी. भारत के पाँच सर्वश्रेष्ठ तेज़ गेंदबाज और उनके दो प्रमुख स्पिनर, जो बल्लेबाज़ी में भी दक्ष थे, चोटिल हो गए.

टीम में अब 8वें, 9वें, 10वें, 11वें और 12वें नंबर के सबसे अच्छे गेंदबाज़ थे. इनमें से मोहम्मद सिराज सबसे ज़्यादा अनुभवी हैं, जो अपना तीसरा मैच खेल रहे थे. नवदीप सैनी और शार्दुल ठाकुर अपना दूसरा टेस्ट मैच खेल रहे थे, वहीं वॉशिंगटन सुंदर और टी. नटराजन अपना टेस्ट डेब्यू कर रहे थे.

सुंदर और नटराजन तो मूल टेस्ट टीम का हिस्सा भी नहीं थे, उन्हें नेट में गेंदबाज़ी के लिए ऑस्ट्रेलिया में बचाकर रखा गया था.

ग़ौरतलब है कि ऑस्ट्रेलियाई गेंदबाज़ों की यूनिट ने जहां कुल मिलाकर 1033 विकेट लिए थे, वहीं भारतीय गेंदबाज़ों की यूनिट ने कुल मिलाकर 13 विकेट ही लिए थे.

पिच भी थी बड़ी चुनौती
गाबा की पिच बाउंस और पेस से भरी थी. इसका मतलब गेंदें उड़ रही थीं. वो आपके सिर, कंधे, कोहनी, हाथ, पसलियों से टकरा रही थीं और वो भी 90 मील प्रति घंटा की तेज़ रफ़्तार से. ऐसा बताया गया कि हेलमेट और बल्ले भी टूटे और कुछ हड्डियां भी.

  • 186 रनों पर 6 विकेट गिरने के साथ पहली पारी में भारत तेज़ी से हार की ओर बढ़ रहा था.

वॉशिंगटन सुंदर शार्दुल ठाकुर के साथ बल्लेबाज़ी कर रहे थे. सुंदर तमिलनाडु के एक ऑफ़ स्पिनर हैं जिन्हें टी-20 के लिए चुना गया था. उन्होंने आख़िरी बार तीन साल पहले फ़र्स्ट क्लास क्रिकेट खेला था.
चेन्नई में रहने वाले उनके परिवार ने अपने 21 साल के बेटे को पहला टेस्ट क्रिकेट मैच खेलते देखने के लिए सुबह 3.15 बजे का अलार्म लगाया हुआ था. उनकी उम्मीदें बड़ी थीं और होठों पर प्रार्थनाएं थीं. बाक़ी का पूरा देश सिर्फ़ प्रार्थना कर रहा था.

मुंबई के तेज़ गेंदबाज़ ठाकुर ऋषभ पंत के बाद मैदान में उतरे. ठाकुर ने इस खेल से पहले एक टेस्ट खेला था, जहां उन्होंने घायल होने से पहले 10 गेंदे फेंकी थीं और उनका स्कोर चार नॉट आउट था.

मुख्य रूप से अपनी गेंदबाज़ी क्षमताओं के कारण चुने गए इन दो बल्लेबाज़ों ने ऑस्ट्रेलिया की जीत को मुश्किल बना दिया और सबसे अहम, उन्होंने शायद दुनिया के सर्वश्रेठ बॉलिंग अटैक के कॉन्फ़िडेंस को गिरा दिया.

123 रनों की शानदार साझेदारी
चौकों और छक्कों का स्वागत घूर कर किया जा रहा था और शॉर्ट बॉल बॉडी को निशाना बनाकर डाली जा रही थी. स्टार्क का डाला एक बाउंसर 90 मील प्रति घंटे की रफ़्तार से सुंदर के कंधे पर आकर लगा. लेकिन उन्होंने आह तक नहीं भरी.

ठाकुर और सुंदर दोनों ने ही अपने सपने में भी इस टेस्ट के लिए खेलने के बारे में नहीं सोचा होगा, लेकिन इन्होंने अकेले ही अपनी टीम को बचा लिया, इन्होंने तीसरे दिन 67 और 62 रन बनाए. जो भारतीय साइड का टॉप स्कोर है. इनकी 123 रनों की साझेदारी ने इस दिन भारत को बचा लिया.

ये रन लूज़ गेंदों पर नहीं लिए गए. ये गाबा में घातक गेंदबाज़ी के ख़िलाफ़ तब लिए गए जब उनकी टीम बहुत प्रेशर में थी.

सुंदर और ठाकुर ने बेहतरीन टेक्निक दिखाई, जो उनके प्रदर्शन से नहीं आई, ना ही ये लक था. ये एक मनोदशा थी, जो डर को नहीं पहचानती.

इसी टीम को याद कीजिए, जब इसमें ज़्यादातर पहली पसंद वाले प्लेयर खेल रहे थे, तो चार मैचों की इस सिरीज़ के पहले मैच में 36 रनों पर सभी 10 खिलाड़ी आउट हो गए थे.
फिर टीम ने अपना कप्तान विराट कोहली और सबसे अच्छा बल्लेबाज़ खो दिया. शानदार शतक बनाने वाले एक स्टैंड-इन कैप्टन और घायलों की बढ़ती लिस्ट के साथ टीम ने दूसरा टेस्ट आसानी से जीत लिया.

अगर उस कमबैक ने ठाकुर और सुंदर के प्रदर्शन में दिखे साहस और कौशल में भूमिका निभाई तो तीसरे टेस्ट के आख़िरी दिन ने उनके इरादे को पक्का किया होगा.

11 जनवरी को हनुमा विहारी ने मांसपेशियों में खिंचाव और रविचंद्रन अश्विन ने पीठ दर्द के बावजूद तीन घंटों से ज़्यादा वक़्त तक ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ियों को हतोत्साहित करने के लिए संघर्ष किया. वो हाल के वक़्त में संभवत: सबसे प्रसिद्ध ड्रॉ की स्क्रिप्टिंग कर रहे थे.

मैच के बाद, अश्विन और विहारी ने कहा था कि उन्होंने जो कुछ किया उसका प्रभाव अब तक पूरी तरह समझ नहीं आया है. शायद एक महीने या उसके बाद ये समझ आए. लेकिन इसमें एक हफ़्ते से भी कम वक़्त लगा.

पिता को खोने का दर्द और नस्लीय टिप्पणी
गाबा में चौथे दिन मोहम्मद सिराज की बदौलत भारतीय टीम ने दूसरी पारी में आस्ट्रेलियाई टीम को 294 रनों पर समेट दिया.

एक ऑटोरिक्शा ड्राइवर के बेटे सिराज ने अपने तीसरे टेस्ट में पहले पाँच विकेट लिए. उनकी आँखों में आँसू पिता के लिए थे, जो बीते नवंबर में चल बसे थे. तब सिराज ऑस्ट्रेलिया में थे. ये आँसू उनकी सालों की मेहनत के लिए थे.
कुछ दिन पहले सिराज ने सिडनी में मैच को रोक कर दर्शकों की ओर से नस्लीय टिप्पणी होने की शिकायत की थी. उनके आँसू इस पर भी एक संदेश थे.

पाँचवें दिन – ड्रॉ और हार के बीच सिर्फ़ बारिश आ सकती थी. पहले सेशन में पिच ने परेशान करना शुरू किया और ऑस्ट्रेलियाई गेंदबाज़ों ने जल्द ही रोहित शर्मा को आउट कर दिया. भगवान से मौसम को लेकर प्रार्थनाएं तेज़ हो गईं.

ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ियों को हुआ संदेह
21 वर्षीय खिलाड़ी शुभमन गिल के पास दूसरे आइडिया थे. उन्हें भरोसा नहीं हो रहा था कि वो ऑस्ट्रेलिया के गेंदबाज़ों से मुक़ाबला कर सकते हैं, लेकिन वो देश को ये भरोसा दिला रहे थे.
जब वो 91 रन बनाकर आउट हुए, तब भी भारतीय भगवान से मौसम को लेकर प्रार्थना कर रहे थे. सिर्फ़ इस बार वो नहीं चाहते थे कि बारिश हो. क्योंकि ड्रॉ अब दूसरा विकल्प बन चुका था और जीत की उम्मीद बढ़ती जा रही थी.

आठ ओवर से भी कम समय में ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ियों के दिमाग़ में संदेह पैदा हो गया था. एक छक्का, एक चौका, एक और चौका. और फिर छह ओवरों में 24 रनों की ज़रूरत थी.

पंत और आख़िरी पारी के हीरो सुंदर क्रीज़ पर थे और 32 साल पुराने उस गढ़ के दरवाज़े पर खड़े थे. जिसे ढहाना इतिहास रचना था और कुछ ही पल में यह गढ़ ढह चुका था.

सुंदर आउट हो गए, ठाकुर आउट हो गए, लेकिन उम्मीदें ऊपर उठती रहीं. और फिर पंत ने बाउंड्री मारी, जो लंबे वक़्त तक याद रखी जाएगी.

इसी के साथ भारत ने टेस्ट और सिरीज़ जीत ली. और ज़िंदगी भर के लिए सम्मान भी.

BBC


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