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भारत-चीन सीमा विवादः वास्तविक नियंत्रण रेखा पर कौन है कितना ताक़तवर

ByPrompt Times

Jul 31, 2020
भारत-चीन सीमा विवादः वास्तविक नियंत्रण रेखा पर कौन है कितना ताक़तवर

भारत और चीन हिमालय से लगी अपनी सीमा पर निर्माण के मामले में एक दूसरे से आगे निकलने की होड़ में लगे हुए हैं.

कहा जाता है कि भारतीय सीमा की तरफ़ एयरफ़ोर्स बेस के लिए सड़क निर्माण कार्य विवाद के उन प्रमुख मुद्दों में से एक था जिसे लेकर पिछले महीने चीनी सैनिकों के साथ झड़प हुई थी.

और इस घटना में कम से कम 20 भारतीय सैनिकों की मौत हो गई थी.

255 किलोमीटर लंबी ‘डारबुक-श्योक-दौलत बेग ओल्डी’ (डीएसडीबीओ) रोड पहाड़ी इलाक़ों से गुज़रती हुई समुद्र तल से 5000 मीटर की ऊंचाई पर लद्दाख क्षेत्र में स्थित दुनिया के सबसे ऊंचे रनवे तक जाती है.

तक़रीबन दो दशकों तक चले निर्माण कार्य के बाद इस सड़क का काम पिछले साल ही पूरा हुआ है.

माना जाता है कि इस सड़क के तैयार हो जाने पर संघर्ष की स्थिति में भारत फ़ौज और रसद की आपूर्ति जल्दी से कर सकेगा.

लद्दाख की गलवान घाटी में 15 जून को हुई झड़प के बाद इस बात को लेकर चिंताएं बढ़ गईं हैं कि दो परमाणु शक्ति संपन्न देशों के बीच का तनाव किसी भी दिन विस्फोटक स्थिति ले सकता है.

वास्तविक नियंत्रण रेखा

साढ़े तीन हज़ार किलोमीटर लंबी सरहद पर किसकी क्या स्थिति है, इस बात को लेकर दोनों ही देश कभी भी एक दूसरे से सहमत नहीं हुए हैं.

दुनिया की दो सबसे बड़ी फ़ौज दुर्गम इलाक़ों से होकर गुज़रने वाली सरहद के कई ठिकानों पर एक दूसरे के सामने खड़े हैं.

भारत और चीन दोनों ही देश वास्तविक नियंत्रण रेखा से लगने वाले अपने इलाक़ों में हवाई अड्डों, रेल लाइनें और सड़कों के निर्माण के लिए पैसा और मानव संसाधन झोंक रहे हैं.

साथ ही क्षेत्र में सैन्य सुविधाओं का आधुनिकीकरण भी किया जा रहा है.

वास्तविक नियंत्रण रेखा यानी सरहद पर वो लकीर जिसे दोनों देश अंतरराष्ट्रीय सीमा तो नहीं मानते हैं पर ये ज़रूर मानते हैं कि ये लकीर उन्हें एक दूसरे से अलग कर रही है.

ऐसा लगता है कि भारत ने डीएसडीबीओ रोड समेत हाल में जो भी निर्माण कार्य किए हैं उससे चीन नाराज़ है.

लेकिन चीन ख़ुद भी सीमा से लगने वाले अपने इलाक़ों में सालों से निर्माण कार्य करता आ रहा है. दोनों ही देश एक दूसरे की निर्माण गतिविधि को दूसरे पक्ष पर रणनीतिक बढ़त लेने की कोशिश के तौर पर देखते हैं और जब भी कभी एक पक्ष किसी बड़े प्रोजेक्ट की घोषणा करता है तो तनाव भड़क जाता है.

डोकलाम विवाद

साल 2017 की गर्मियों में डोकलाम के इलाक़े के लिए दोनों पड़ोसी देशों के बीच विवाद पैदा हो गया. डोकलाम का विवाद भी सीमा के इलाक़े में हो रहे निर्माण कार्य को लेकर था.

उस समय चीन भारत-चीन और भूटान की सीमा से लगने वाले ट्राई-जंक्शन के पास सड़क निर्माण की कोशिश कर रहा था.

दौलत बेग ओल्डी एयरबेस को जोड़ने वाली डीएसडीबीओ रोड का निर्माण कार्य पूरा होने से लद्दाख के इलाक़े में भारत की स्थिति मज़बूत हुई है.

भारत इससे सैन्य साज़ोसामान इस इलाक़े में जल्दी पहुंचा सकेगा. बेहद महत्वपूर्ण माने जाने वाले दौलत बेग ओल्डी एयरबेस का इस्तेमाल साल 2008 से दोबारा से शुरू किया गया था.

ये सड़क इस तरह से बनाई गई है कि सभी मौसमों में इसका इस्तेमाल किया जा सकता है.

काराकोरम दर्रे से 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित ये सड़क पश्चिमी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा के समांतर चलती है.

दौलत बेग ओल्डी में भारतीय सैनिक लंबे समय से तैनात हैं लेकिन रनवे के दोबारा शुरू करने और सड़क बनाने से पहले तक इस मिलिट्री बेस पर आर्मी के हेलिकॉप्टर के ज़रिये ही आपूर्ति की जा सकती थी. यहां से कुछ हटाना भी बहुत मुश्किल हो गया था. ये कहा जा सकता है कि दौलत बेग ओल्डी ‘फ़ौजी मशीनरी की एक तरह से क़ब्रगाह’ बन गई थी.

भारत की निर्माण गतिविधियां

इस सड़क को अंदरूनी इलाक़े के सप्लाई सेंटर्स और वास्तविक नियंत्रण रेखा पर सरहदी चौकियों से जोड़ने के लिए अतिरिक्त सड़कों और पुलों का निर्माण किया जा रहा है.

इससे भारतीय सैनिकों को क्षेत्र में आगे तक जाने और अपनी रणनीतिक स्थिति मज़बूत करने में मदद मिलेगी.

हालिया झड़पों के बावजूद भारत ने ये संकेत दिए हैं कि वो सरहदी इलाक़े में बुनियादी ढांचे के विकास का काम जारी रखेगा.

इसी सिलसिले में झारखंड से 12 हज़ार मज़दूरों को चीन सीमा से लगे लद्दाख, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में सड़क निर्माण के लिए लाने की योजना पर काम चल रहा है.

सालों तक सरहदी इलाक़ों में बुनियादी ढांचे की ज़रूरत को नज़रअंदाज़ करने के बाद भारत अब चीन की रणनीतिक बढ़त को बेअसर करने के लिए सीमावर्ती इलाक़ों का विकास तेज़ी से कर रहा है. इसी के तहत भारत ने इस इलाक़े में बड़े पैमाने पर सड़क निर्माण कार्य और रेल लाइनें बिछाने का काम शुरू किया है.

वास्तविक नियंत्रण रेखा के इस पार अलग-अलग सेक्टरों में रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण 73 सड़कों और 125 पुलों के निर्माण की मंज़ूरी दी गई है.

हालांकि इसके निर्माण कार्य की रफ्तार फ़िलहाल धीमी है. केवल 35 सड़कों का निर्माण कार्य पूरा हो पाया है.

‘एडवांस लैंडिंग ग्राउंड्स’

इनमें से उत्तराखंड में घाटीबागढ़-लिपुलेख रोड और अरुणाचल प्रदेश में डाम्पिंग-यांग्त्ज़ी रोड का निर्माण प्रमुख है.

अन्य 11 सड़कों का निर्माण कार्य उम्मीद है कि साल के आख़िर तक पूरा हो जाएगा.

भारत ने रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण नौ रेल लाइनें बिछाने को भी मंज़ूरी दी है. इसमें मिसामारी-तेंगा-तवांग और बिलासपुर-मंडी-मनाली-लेह रेल लाइनें अहम परियोजनाएं हैं.

ये रेल लाइनें चीन के साथ लगने वाली सीमा से होकर गुज़रती हैं और इससे आर्मी को भारी सैन्य साज़ोसामान गंतव्य तक पहुंचाने में आसानी होगी.

हवाई ठिकानों की बात करें तो वास्तविक नियंत्रण रेखा से लगने वाले इलाक़ों में इस समय भारत के 25 एयरबेस हैं.

लेकिन अब ‘एडवांस लैंडिंग ग्राउंड्स’ को विकसित करने की ज़रूरत पर ज़्यादा ध्यान दिया जा रहा है.

अभी बहुत कुछ करना बाक़ी है…

साल 2018 में भारत ने घोषणा की थी कि मौजूदा आठ ‘एडवांस लैंडिंग ग्राउंड्स’ का आधुनिकीकरण किया जाएगा और सीमा से लगने वाले इलाक़ों में सात नए एएलजी विकसित भी किए जाएंगे.

चीन सीमा के पूर्वी इलाक़े से लगने वाले असम के चाबुआ एयरबेस पर सुखोई-30 जैसे आधुनिक फ़ाइटर जेट्स और चेतक हेलिकॉप्टर तैनात हैं.

इस एयरबेस का हाल ही में मरम्मत कार्य और आधुनिकीकरण किया गया है.

हालांकि हाल के सालों में भारत की सैनिक क्षमता में काफ़ी सुधार हुआ है लेकिन निर्माण कार्य से जुड़ी कोशिशों में दुर्गम इलाक़ों, भूमि अधिग्रहण, नौकरशाही की लालफ़ीताशाही और बजट की समस्या जैसी अड़चनें आ रही हैं.

लेकिन चीन से मुक़ाबले के लिए भारत को अभी बहुत कुछ करना बाक़ी है.

चीन की रणनीतिक बढ़त

वास्तविक नियंत्रण रेखा के दूसरी तरफ़ चीन ने अपनी निर्माण क्षमताओं का इस्तेमाल हाल के सालों में हवाई अड्डों, सैनिक छावनियों और दूसरे बुनियादी ढांचे के निर्माण कार्य में ख़ूब किया है.

चीन की इन निर्माण क्षमताओं की चर्चा से दुनिया भर में लोग वाक़िफ़ हैं. हिमालय के इलाक़े में चीन ने पचास के दशक में ही सड़कों का निर्माण कार्य शुरू कर दिया था.

चीन ने अपने तिब्बत औप युन्नान प्रांतों में सड़कों और रेल लाइनों का जाल बिछा दिया है.

साल 2016 के बाद से उसने भारत, भूटान और नेपाल से लगने वाली सीमा पर संपर्क मार्ग बनाने की दिशा में विशेष तौर पर ध्यान देना शुरू कर दिया है.

चीन पुराने शिनजियांग-तिब्बत रोड को नेश्नल हाइवे G219 से जोड़ने की परियोजना पर काम कर रहा है. ये सड़क पूरी भारत-चीन सीमा के साथ चलती है.

अरुणाचल के पास मेडोग और ज़ायु के इलाक़े को जोड़ने के लिए चीन एक कंक्रीट रोड बना रहा है जिसका काम इस साल के आख़िर तक पूरा हो जाएगा.

तिब्बत के दूसरे सबसे बड़े शहर शिगात्से को चेंगदू से जोड़ने वाली एक अन्य रेल लाइन का निर्माण कार्य भी चल रहा है.

ये रेल लाइन भारतीय सीमा से लगने वाले निइंग्ची के इलाक़े से होकर गुज़रेगी. इसके अलावा शिगात्से और याडोंग के बीच भी एक रेल लाइन परियोजना प्रस्तावित है.

भारत की वायु सैनिक क्षमता बेहतर

याडोंग एक व्यापारिक केंद्र है जो सिक्किम के क़रीब है. इस साल मई की शुरुआत में सिक्किम में भी भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच झड़प हुई थी.

भारत के लक्ष्य को ध्यान में रखकर चीन के पास तक़रीबन दर्जन भर एयरबेस हैं.

इनमें तिब्बत में पाँच ऐसे एयरपोर्ट हैं जिनका सैनिक और नागरिक दोनों ही उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है.

वो तीन नए एयरपोर्ट्स और बना रहा है. साथ ही शिगात्से, नगारी गुनसा और ल्हासा का गोंग्गर एयरपोर्ट को अंडरग्राउंड ठिकानों और नए रनवे के निर्माण कार्य के साथ अपग्रेड किया जा रहा है.

ऐसी रिपोर्टें हैं कि नगारी गुनसा एयरबेस पर अत्याधुनिक लड़ाकू विमानों और ज़मीन से हवा में मार करने वाली मिसाइलों का बेड़ा तैनात किया गया है.

नगारी गुनसा एयरबेस समुद्र तल से 14,022 फुट ऊंचाई पर स्थित है और ये लद्दाख के जिस पांगोंग झील के इलाक़े में विवाद चल रहा है, से लगभग 200 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है.

वायु सैनिक क्षमता के मामले में मिलिट्री विशेषज्ञों का कहना है कि भारत तुलनात्मक रूप से बढ़त की स्थिति में है. क्योंकि चीन के वायुसैनिक अड्डे सामान्यत: वास्तविक नियंत्रण रेखा से दूर हैं और ज़्यादा ऊंचाई पर स्थित हैं, इसका मतलब हुआ कि चीन के लड़ाकू विमान कम ईंधन और कम वज़न लेकर उड़ान भर सकेंगे.

सीमा पर बुनियादी ढांचे के निर्माण को लेकर संदेह का माहौल

अंतरराष्ट्रीय सीमा और वास्तविक नियंत्रण रेखा के दोनों ही तरफ़ बुनियादी ढांचे के विकास के लिए जो भी निर्माण कार्य कर रहे हैं, उसका प्राथमिक उद्देश्य किसी संघर्ष की स्थिति में सैनिकों और फ़ौजी साज़ोसामान को सीमा तक पहुंचाना है.

‘सेंटर फ़ॉर न्यू अमरीकन सिक्योरिटी’ की साल 2019 की एक स्टडी के मुताबिक़, “जब बुनियादी ढांचा विकास की ये महत्वाकांक्षी परियोजनाएं आख़िरकार पूरी हो जाएंगी, भारतीय सैनिक रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण इलाक़ों में बिना किसी अड़चन ने आज़ादी से आज-जा सकेंगे.”

भारत ने लंबे समय तक बड़े पैमाने पर विकास कार्यों से दूरी बनाए रखी थी. शुरू में उसका ये मानना था कि अगर वो सीमा की अपनी तरफ़ बुनियादी ढांचे का विकास करता है तो संघर्ष की स्थिति में चीनी सैनिकों को भारतीय इलाक़े में अतिक्रमण में सहूलियत होगी. लेकिन अब ऐसा लग रहा है कि भारत उस दलील से पीछे हट रहा है.

दोनों ही देशों ने अब तक एक ही लड़ाई लड़ी है. साल 1962 में हुई इस लड़ाई में भारत को बुरी तरह से हार का सामना करना पड़ा था.

ऑब्ज़र्वर रिसर्च फ़ाउंडेशन की फ़ेलो राजेश्वरी पिल्लै कहती हैं कि बुनियादी ढांचा विकास के लिए भारत की गतिविधियां मुख्यतः चीन की रक्षा तैयारियों का जवाब है.

उनका कहना है, “चीन ने जो निर्माण कार्य किया है, उसे एक ख़तरे के तौर पर देखा जाता है. इससे किसी संघर्ष की सूरत में चीन को अपनी आक्रामक कार्रवाई शुरू करने में सहूलियत होगी और वो तेज़ी से अपने सैनिकों को मोर्चे पर ला सकेगा. भारत के ख़राब बुनियादी ढांचे का मतलब ये भी है कि चीन के अतिक्रमण से बचाव में उसे हमेशा से परेशानियां उठानी पड़ी हैं.”

चीन किसी अतिक्रमण से इनकार करता है और भारत भी वास्तविक नियंत्रण रेखा लांघने के आरोप से इनकार करता है.

पिछले तीन दशकों से चली आ रही कई दौर की बातचीत में भी सीमा विवाद से जुड़े मुद्दों का निपटारा नहीं किया जा सका है.

इस बीच चीन की सरकारी मीडिया ने ये बात ज़ोर देकर कही है कि भारतीय सीमा के पास चीन की सेना कितनी जल्दी से सैनिकों को सरहदी इलाक़ों में भेजने में सक्षम है.

दोनों ही पक्ष सीमावर्ती इलाक़े में जितने बड़े पैमाने पर सड़कों और रेल लाइनों का जाल बिछा दिया जाए, इस बात की आशंका भी उतनी ही रहेगी कि भविष्य में भारत और चीन के सैनिकों के बीच ज़्यादा झड़पें हों.













BBC

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