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धीमे मेटाबॉलिज्म, कमजोर हड्डियां, बुढ़ाती मसल्स, लाचारी जैसे बहाने बनाने के बजाय मैनेजमेंट टेक्नीक डिजाइन करें

15 जून 2022 | 53 साल की उम्र में आध्यात्मिक वक्ता सुमीत पोंदा के लिए भोपाल में अपने दोनों संस्थान- रेड रोज ग्रुप ऑफ स्कूल्स व एमके पोंदा कॉलेज ऑफ बिजनेस मैनेजमेंट संभालना मुश्किल काम नहीं है। पर उनके लिए सबसे कठिन काम अपना 141 किलो वजन संभालना था। 19 नवंबर 2021 को उन्होंने एक चुनौती स्वीकारी और 13 जून 2022 तक वजन घटाकर 103 किलो ले आए।

उनका पहला मील का पत्थर वजन दो अंकों तक पहुंचना है। वह क्रैश डाइट या कड़ी कसरत पर यकीन नहीं करते पर मानते हैं कि ‘छोटी चीजें बड़ा बदलाव लाती हैं।’ दो किताबों के लेखक सुमीत तीन और किताबें लिख रहे हैं। कल हमारे बीच हुई बातचीत से मैंने कुछ काम के टिप्स निकाले। ये हैं वो टिप्स…

स्नैकिंग रोकें : चुनिंदा खाने की तीव्र इच्छा एक जाल है। उदाहरण के लिए महज 45 ग्राम का क्रिस्पी पैकेट 240 कैलोरी जोड़ता है- और ये छोटा-सा पैकेट रोज खाएं तो सालभर में 6.4 किलो वजन बढ़ जाएगा! स्नैक्स सीधे मूड से जुड़े हैं, जो कि शरीर में भूख के हॉर्मोन घ्रेलिन, साथ ही साथ डोपामाइन (प्रोत्साहित और पुरस्कार का भाव पैदा करने वाला केमिकल) और सेरोटॉनिन (खुशी, शांति और ध्यान के लिए जिम्मेदार) के स्तर को प्रभावित कर सकते हैं। ये राज की बात नहीं कि हॉर्मोन सीधे दिमाग से संवाद करते हैं और भूख को निर्देश देते हैं। ओवरवेट लोगों के वजन में स्नैकिंग महत्वपूर्ण हिस्सा है।

हाइड्रेटेड रहें : यही सुमीत के वेटलॉस का बड़ा राज़ है। डिहाइड्रेशन से नमक-शक्कर की क्रेविंग होती है क्योंकि शरीर को लगता है दिनभर के लिए पर्याप्त पोषण नहीं है। विशेषज्ञ कहते हैं कि दिन में कम से कम दो लीटर पानी पिएं। जब दिमाग स्नैक्स मांगे, तो हर्बल टी पिएं और 20 मिनट बाद फर्क महसूस करें, इससे स्नैकिंग की इच्छा खत्म हो जाती है।

पर्याप्त सोएं : स्टडी बताती हैं कि अच्छी नींद न हो, तो ‘घ्रेलिन’ बढ़ जाता है व लेप्टिन (भरा पेट महसूस कराने वाला हॉर्मोन) का स्तर कम हो जाता है। नींद कम हो तो शरीर हाई डेन्सिटी फूड (पढ़ें जंक फूड) चाहता है, जो कि अमूमन कार्बोहाइड्रेट्स, फैट, शुगर से भरपूर होते हैं।

माइंडफुलनेस ईटिंग : याद करें कितनी बार हमने मीटिंग में सामने रखी कुकीज़ खाकर खत्म कर दीं, जबकि उसी टेबल पर रखे फल नहीं खाए क्योंकि इसे छीलना पड़ता है और मीटिंग में कभी-कभी एेसा करना असहज लगता है। अगर कुछ खाने की जरूरत महसूस हो रही है, तो फिर अच्छे फाइबर वाली चीजें चुनें। केला जैसा कोई भी फल, बादाम आदि नट्स के साथ खा सकते हैं। माइंडफुलनेस से पहचानने में मदद मिलेगी कि कब सबसे ज्यादा जंक खाने की इच्छा होता है। खाने के पैटर्न को पहचानने के लिए खुद को, अपनी भावनाओं को और व्यवहार को एक लय में लेकर आएं। शरीर का दिमागी स्कैन करके खानपान संबंधी अपने चुनावों के प्रति जागरूक रहने में मदद मिलेगी।

दिमाग को रीट्रेन करें : मैं कई लोगों को जानता हूं, जिन्होंने अपने लिए कार्बोनेटेड ड्रिंक्स का नाम बदलकर ‘ऑस्टियोपोरोसिस’ कर दिया है, क्योंकि इन ड्रिंक्स के अत्यधिक सेवन और हड्डियों के घनत्व के बीच संबंध है। तब से उनकी कोला की क्रेविंग चली गई है। ठीक इसी तरह अपने दिमाग को प्रशिक्षित करें कि ज्यादातर क्रिस्प महज तले हुए आलू चिप्स हैं और कई बार तो असली आलू नहीं होते और सिर्फ फ्लेवर और एडिटिव्स केमिकल होते हैं। पैकेज्ड फूड के बजाय खाना खुद पकाने से आप इसकी सामग्री व शरीर से इसके संबंधों के बारे में भी जुड़ पाएंगे।

फंडा यह है कि धीमे मेटाबॉलिज्म, कमजोर हड्डियां, बुढ़ाती मसल्स, लाचारी जैसे बहाने बनाने के बजाय वजन घटाने के पीछे के विज्ञान को समझें और फिर अपनी खुद की मैनेजमेंट टेक्नीक डिजाइन करें।

सोर्स;- ‘’दैनिकभास्कर’’

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