आज किस्सा उसी होटल ताज का, जिसने कभी देश की गुलामी झेली तो कभी युद्ध का दर्द झेला. कभी आतंक की मार को सहा तो कभी विवाद को, लेकिन आज भी ये इमारत उसी बुलंदी , उसी मजबूती के साथ खड़ा है.
मुबंई का ताज होटल सिर्फ टाटा समूह का की शान नहीं बल्कि भारत का एक ट्रेडमार्क बन गया है. मुंबई में समंदर के किनारे इस होटल ने अपने भीतर पूरा इतिहास समेट रखा है. अब टाटा ग्रुप (Tata Group) के ताज होटल (Taj Hotel) ने नया खिताब हासिल कर लिया है. होटल ताज को चलाने वाली इंडियन होटल्स कंपनी लिमिटेड (IHCL) ने 1 लाख करोड़ रुपये का मार्केट कैप हासिल कर लिया है. इस मार्केट कैप को हासिल करने वाली यह देश की पहली हॉस्पिटेलिटी कंपनी बन गई है. आज किस्सा उसी होटल ताज का, जिसने कभी देश की गुलामी झेली तो कभी युद्ध का दर्द झेला. कभी आतंक की मार को सहा तो कभी विवाद को, लेकिन आज भी ये इमारत उसी बुलंदी , उसी मजबूती के साथ खड़ा है. आज किस्सा टाटा के होटल ताज का…
होटल ताज की शुरुआत के पीछे जमशेदजी टाटा का अपमान छिपा है. अंग्रेजों से मिले अपमान का बदला लेने के लिए जमशेदजी टाटा ने होटल ताज की शुरुआत की. दरअसल 1890 के आसपास टाटा एक मीटिंग के सिलसिले में मुंबई के काला घोड़ा इलाके में अपने एक दोस्त से मिलने पहुंचे थे, लेकिन होटल में उन्हें अपमानित कर बाहर कर दिया गया. ‘फोर व्हाइट ओनली’ के चलते उन्हें होटल में घुसने तक नहीं दिया गया. होटल के गेट में उन्हें ये कहकर अपमानित किया गया कि यहां सिर्फ ‘गोरे’ यानी अंग्रेजों को ही एंट्री मिलती है.
जमशेदजी टाटा उस वक्त तो अपमान का घूंट पीकर रह गए, लेकिन उन्होंने इस अपमान का बदला लेने के लिए एक ऐसा होटल बनाने का फैसल किया, जिसमें किसी भी भारतीय को जाने से रोका नहीं जाएगा. इसी के साथ मुंबई के समंदर के किनारे होटल ताज की नींव रखी गई. 1898 में मुंबई में ताज होटल का निर्माण का काम शुरू हुआ, जिसे पूरा होने में 5 साल का वक्त लग गया. 17 गेस्ट के साथ 16 दिसंबर 1903 को इस होटल को पहली बार खोला गया .
ताज होटल के एक रूम का किराया किसी जमाने में सिर्फ6 रुपये था लेकिन आज यहां एक रात रुकने के लिए आपको 30,000 से लेकर लाखों रुपये चुकाने पड़ते हैं. होटल में रूम कैटेगिरी के हिसाब से किराया अलग-अलग है, जिसकी शुरुआत 30,000 रुपये से शुरू होती है.