• April 25, 2024 9:53 am

हले से तय था हाईकमान गहलोत की 4 मांगें नहीं मानता तो ‘इस्तीफा पॉलिटिक्स’

26  सितम्बर 2022 | राजस्थान में सियासी संकट पार्ट 2 की शुरुआत हो चुकी है। रविवार को हुआ घटनाक्रम इस बात का सबूत है कि कांग्रेस में चुनाव के बाद से चली आ रही गुटबाजी अब भी जारी है। सीएम अशोक गहलोत के अध्यक्ष पद के नामांकन से पहले नए सीएम को लेकर रविवार को बैठक बुलाई गई। अजय माकन और मल्लिकार्जुन खड़गे ऑब्जर्वर के रूप में रायशुमारी के लिए आए,लेकिन यह बैठक नहीं हो पाई।

ऑब्जर्वर की बैठक से ठीक पहले यूडीएच मंत्री शांति धारीवाल के यहां विधायक पहुंचना शुरू हुए। कुछ तय हो पाता इससे पहले ही राजस्थान कांग्रेस के 70 से ज्यादा विधायकों ने विधानसभा अध्यक्ष डॉ.सीपी जोशी को इस्तीफे सौंप दिए।

ये दिखने में सब कुछ अचानक जैसा लग रहा था, लेकिन हकीकत ये है कि सियासी बगावत पार्ट-2 की यह स्क्रिप्ट आज से 6 दिन पहले लिखी जा चुकी थी। सब कुछ तय था कि आलाकमान CM अशोक गहलोत की मांगें मानता है तो क्या करना है और मांगें नहीं मानी जाती तो क्या कदम उठाए जाएंगे।

20 सितंबर: 21 सितंबर को सोनिया गांधी और फिर राहुल गांधी से मुलाकात से पहले सीएम ने 20 सितंबर की देर रात विधायक दल की बैठक बुलाई। बैठक में ही यह तय हो गया था कि हाईकमान के कहने पर गहलोत अध्यक्ष तो बन जाएंगे, लेकिन उनकी ओर से कुछ मांगें होगी। यदि आलाकमान यह मांगें नहीं मानता है तो फिर विधायकों की मर्जी से पूरे मामले पर निर्णय लिया जाएगा।

बैठक में दे दिया था इशारा: विधायकों की बैठक में गहलोत ने कहा था- मैं आखिरी बार राहुल गांधी से मिलकर उन्हें मनाने का प्रयास करूंगा, अगर राहुल नहीं माने तो फिर हाईकमान का जो आदेश होगा, उसके लिए आपको तकलीफ दूंगा।

गहलोत के इस बयान पर विधायकों ने कहा- आपको यहीं पर रहना है। इस पर गहलोत ने कहा- मैं कुछ भी बन जाऊं, लेकिन आपसे दूर नहीं रहूंगा, अंतिम सांस तक राजस्थान की सेवा करूंगा। गहलोत ने बैठक में विधायकों से कहा कि आपके इलाके से जुड़ी जो भी मांगे हैं, वो पूरी होगी। बजट जल्दी आ सकता है।

विधायक दल की बैठक के पांच दिन बाद ये घटनाक्रम हो गया। गहलोत-विधायकों के बीच हुई बातचीत यह समझने के लिए काफी है कि वो क्या मैसेज देना चाहते हैं ?

वे मांगें जिनकी वजह से विवाद बढ़ा
अशोक गहलोत की ओर से हाईकमान के सामने 4 मांगें रखी गई। मगर हाईकमान ने इन मांगों को मानने से इनकार कर दिया। इससे गहलोत और उनके समर्थकों को यह साफ हो गया कि हाईकमान इस मामले में अब उनकी नहीं सुन रहा है। ऐसे में अगर गहलोत कांग्रेस अध्यक्ष बनते भी हैं तब भी यह जरूरी नहीं की उनकी बातें पूरी तरह मानी ही जाएं

सोर्स :- “दैनिक भास्कर”                         

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