19 जनवरी 2022 | चंबल अंचल को उत्तर प्रदेश व राजस्थान के मेगा हाईवे से जोड़ने के लिए 6000 करोड़ रुपये की लागत से बनने वाले अटल प्रोग्रेस-वे का रास्ता मुरैना में नहीं खुल पा रहा है। पड़ोसी जिले श्योपुर के अधिकांश किसान प्रोग्रेस-वे के लिए जमीन देने को तैयार हैं, लेकिन मुरैना के 10 गांवों के किसानों ने निजी जमीनों के अधिग्रहण की पूरी कार्रवाई को ऐसा अटका दिया, कि पूरी परियोजना की लेट होने लगी है।
राजस्थान के हाईवे से जोड़ने के लिए चंबल के भिंड, मुरैना और श्योपुर के बीहड़ों में अटल प्रोग्रेस-वे बनाया जा रहा है। 394 किलोमीटर का यह प्रोग्रेस वे चंबल संभाग के तीनों जिलो में 309 किलोमीटर लंबा होगा।
चंबल नदी से डेढ़ किलोमीटर दूर बीहड़ों में बनने वाले प्रोग्रेस-वे के लिए जमीन का अधिग्रहण दिसंबर 2021तक पूरा कर एनएचएआइ को आवंटित करना था, लेकिन मुरैना के जिन 73 गांवों के 5074 किसानों की 449 हेक्टेयर जमीन का अधिग्रहण होना था, उसमें से 10 गांव गोंदोली, गाजीखेड़ा, पलारी, कड़ावना, बनवारा, खाण्डोली, बिण्डवा चंबल, पिपरई, मसूदपुर, और लुधावली के किसान जमीन देने को राजी नहीं हैं। इन गांवों में 106 हेक्टेयर जमीन निजी क्षेत्र की है। इन गांवों के 850 से ज्यादा किसान जमीन के बदले दोगुनी जमीन देने के बावजूद राजी नहीं हो रहे हैं। जमीन का निरीक्षण करने वाले अधिकारियों को धमकाकर गांव से लौटाया तक गया है। इस कारण प्रोग्रेस-वे का काम अटक गया है।
एलाइनमेंट बदलने का प्रस्ताव अस्वीकार
गांव वालों के विरोध के कारण अटल प्रोग्रेस-वे का एलाइनमेंट बदलने का प्रस्ताव जिला प्रशासन ने एनएचएआइ व भारत सरकार को भेजा था, लेकिन एनएचएआइ ने यह कहकर एलाइनमेंट बदलने से इन्कार कर दिया है क्योंकि पहले ही घड़ियाल सेंक्चुरी के कारण अलायमेंट बदला जा चुका है। अब दोबारा एलाइनमेंट बदला गया तो मेगा हाईवे में इतना घुमाव आ जाएगा, जिसे दुरुस्त करने के लिए कम से कम 30 गांवों में चिह्न्ति की गई जमीन को भी बदलना पड़ेगा।
इनका कहना है
– प्रोग्रेस-वे का अलायमेंट अब बदलना मुमकिन नहीं। अगर एक गांव में एलाइनमेंट बदला तो उसके आगे-पीछे के गांवों में बदलाव करना पड़ेगा। हमने मुरैना जिला प्रशासन व मप्र शासन से कह दिया है, कि जो जमीन चयनित की गई है वह ही सरकार को अधिग्रहित कर हस्तांतरित करनी है। जमीन मिलने के बाद हम काम शुरू कर देंगे।
अवनीत सिद्धार्थ, एनएचएआइ, प्रोजेक्ट इंचार्ज।
-एलाइनमेंट बदलने का प्रस्ताव नहीं माना गया। जिन गांवों में किसान जमीन देने को राजी नहीं हो रहे, वहां कई लोगों ने सरकारी जमीन पर अतिक्रमण कर रखा है, इसलिए भी विरोध हो रहा है। इन गांवों में शिविर लगाकर लोगों को इसके फायदे बताएंगे। जमीन अधिग्रहण दिसंबर तक करना था। कोशिश कर रहे हैं मार्च तक जमीन का अधिग्रहण कर एनएचएआइ को आवंटित कर दें।
Source:- नईदुनिया