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एम एस स्वामीनाथन: एक ऐसे शख्स जो IPS की जॉब छोड़कर ‘हरित क्रांति’ में जुट गए थे

ByPrompt Times

Aug 10, 2020
एम एस स्वामीनाथन: एक ऐसे शख्स जो IPS की जॉब छोड़कर ‘हरित क्रांति’ में जुट गए थे
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लाल बहादुर शास्त्री (Lal Bahadur Shastri) ने जब भारत के प्रधानमंत्री का पद संभाला, तो उस समय हमारा देश गेहूं के संकट से गुजर रहा था. खुद शास्त्रीजी एक समय भूखे रहते थे. अपने बंगले के लॉन में उनकी हल चलाने की तस्वीर भी आपने देखी होगी. उनके बाद पीएम बनीं इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) ने तो गेहूं संकट के चलते अमेरिका से गेहूं इस शर्त पर लिया था कि वो अपनी मुद्रा यानि रुपए का अवमूल्यन करेंगी, जो इतिहास में पहली बार हुआ था. ऐसे में वो एम एस स्वामीनाथन (MS Swaminathan) थे, जिनकी वजह से आज हम ऐसी बुरी स्थितियों से बाहर आ चुके हैं. आज एमएस स्वामीनाथन के जन्मदिन पर आप जानिए कुछ और दिलचस्प जानकारियां.

उनके पिता डॉ. एमके सम्बशिवन एक सर्जन थे, बेटे को भी डॉक्टर बनाना चाहते थे. लेकिन सम्बशिवन खुद गांधीजी के अनुयायी थे, विदेशी वस्त्रों की होली जलाते थे, तमिलनाडु (Tamilnadu) के कुम्भकोड़म में कई मंदिरों में दलित प्रवेश को लेकर भी आंदोलन चलाए थे. पिता की जल्दी मौत के बाद स्वामीनाथन ने मेडिकल स्कूल में ही एडमिशन ले लिया था, लेकिन 1943 के बंगाल अकाल की भयावह तस्वीरों ने उनका दिल बदल दिया. उनको लगा कि देश के लिए कुछ करना होगा. उन्होंने पहले जुलॉजी की पढ़ाई की, फिर एग्रीकल्चर कॉलेज में एडमिशन लिया. क्योंकि वो अकाल की विभीषिका को हमेशा के लिए खत्म करना चाहते थे.

दिल्ली के इंडियन एग्रीकल्चर रिसर्च इंस्टीट्यूट से पीजी करने के बाद वो यूपीएससी (UPSC) में बैठे, आईपीएस के लिए चुन भी लिए गए, लेकिन उन्होंने उसे ज्वॉइन करने के बजाय तरजीह दी यूनेस्को (UNESCO) की एगीकल्चर रिसर्च फेलोशिप को. वो पोटेटो जेनेटिक्स पर रिसर्च करने लिए नीदरलैंड की इंस्टीट्यूट ऑफ जेनेटिक्स में चले गए. वहां से वो यूनीवर्सिटी ऑफ कैम्ब्रिज स्कूल ऑफ एग्रीकल्चर के प्लांट ब्रीडिंग इंस्टीट्यूट में चले गए. यहीं उन्होंने पीएचडी की डिग्री ली. यूनीवर्सिटी ऑफ विंसकोंसिन में प्रोफेसर की जॉब ऑफर होने के बावजूद वो भारत लौट आए.

उनका सबसे बड़ा योगदान भारत में पैदावार बढ़ाने के लिए शुरू किए गए हरित क्रांति (Green Resolution) में रहा. हालांकि इसकी शुरुआत शास्त्रीजी के समय ही हो गई थी. पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में गेहूं की ज्यादा उपज देने वाली किस्मों के बीजों के साथ, ट्रैक्टर, कीटनाशक, उर्वरकों आदि का इस्तेमाल खेती में शुरू हुआ. शुरुआत पंजाब से हुई और 1970 तक पंजाब पूरे देश का 70 फीसदी गेहूं उगाने लग गया था. हालांकि बाद में उर्वरकों और कीटनाशकों के ज्यादा इस्तेमाल की वजह से जमीन को जो नुकसान पहुंचा,तो इसके लिए उनकी आलोचना भी हुई. लेकिन भारत कम से कम अनाज उत्पन्न करने के मामले में आत्मनिर्भरता की तरफ बढ़ गया. यही वजह है कि अब अकाल जैसी परिस्थितियां मानो इतिहास की बात हो चुकी है.

स्वामीनाथन को इंडियन एग्रीकल्चरल रिसर्च इंस्टीट्यूट का 1972 में डायरेक्टर जनरल बना दिया गया. उन्होंने इस दौरान कई रिसर्च इंस्टीट्यूट्स की उन्होंने स्थापना की. 1979 में कृषि मंत्रालय में प्रधान सचिव रहते हुए भी उन्होंने जंगलों के सर्वे का बड़ा काम करवाया. उन्हें दुनियां का पहला ‘वर्ल्ड फूड प्राइज’ दिया गया, यूनाइटेड नेशंस एनवायरनमेंट प्रोग्राम ने उन्हें ‘फादर ऑफ इकोनोमिक इकॉलॉजी’ कहा तो भारत सरकार उन्हें भारत के दूसरे सर्वश्रेष्ठ पुरस्कार पदम विभूषण से सम्मानित कर चुकी है, पीएम मोदी ने भी उनकी 2 किताबों का विमोचन किया है.

टाइम पत्रिका ने जब 1999 में 20वीं सदी के एशिया के 20 सबसे प्रभावशाली व्यक्तित्वों की सूची तैयार की, तो 3 भारतीय चेहरों में एमएस स्वामीनाथन का नाम भी शामिल किया गया. स्वामीनाथन वर्तमान समय चेन्नई में रहते हैं.





















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