लगभग 60,000 करोड़ रुपये वाले रफ़ाल सौदे पर हुआ विवाद एक बार फिर सुर्ख़ियों में है.
इसकी ख़ास वजह फ़्रांस की एक मीडिया कंपनी ‘मीडियापार्ट’ की एक एक्सक्लूसिव रिपोर्ट है जिसमें दावा किया गया है कि रफ़ाल की निर्माता कंपनी डासो ने भारत के एक बिचौलिये को 10 लाख यूरो दिए जो सौदे से अलग दी गई राशि है.
इस बिचौलिये के ख़िलाफ़ ऑगस्टा हेलिकॉप्टर डील घोटाले में शामिल होने के इलज़ाम में जाँच चल रही है. किकबैक और भ्रष्टाचार पर मीडियापार्ट की तीन क़िस्तों वाली स्टोरी में रफ़ाल स्कैंडल से संबंधित कुछ नए सवाल उठाए हैं, कुछ नई जानकारी सामने आई हैं.
इस फ्रांसीसी वेबसाइट ने ‘रफ़ाल लड़ाकू जेट‘ की भारत में बिक्री: एक घोटाले को कैसे दबाया गया था’ की सुर्ख़ी से चलाई अपनी स्टोरी में दावा किया कि “इस विवादास्पद सौदे के साथ, डासो ने उस बिचौलिये को 10 लाख यूरो का भुगतान किया किया जिसकी एक अलग रक्षा सौदे (ऑगस्टा हेलिकॉप्टर डील) के संबंध में भारत में जाँच की जा रही है.”
इस वेबसाइट की रिपोर्ट के मुताबिक़ फ्रांसीसी एंटी-करप्शन एजेंसी ‘एफ़ए’ की डासो के एक नियमित ऑडिट के दौरान इस अलग व्यवस्था की हक़ीक़त सामने आई. रिपोर्ट में इस बात पर हैरानी जताई गई है कि इस जानकारी के बावजूद ‘एफ़ए’ ने अधिकारियों को सचेत नहीं करने का फ़ैसला किया. दूसरे शब्दों में इसे दबा दिया गया.
रिपोर्ट के अनुसार बिचौलिये को ये पैसे रफ़ाल विमानों का मॉडल सप्लाई करने के लिए दिए गए थे. इन मॉडल्स की संख्या के अनुसार प्रति विमान मॉडल का दाम 20,000 यूरो दिखाया गया था. रिपोर्ट ने सवाल उठाया है कि एक नक़ली विमान मॉडल की क़ीमत 20,000 यूरो कैसे हो सकती है.
स्वतंत्र जाँच की माँग
इस ख़बर पर कांग्रेस पार्टी की प्रतिक्रिया सोमवार को सामने आई. कांग्रेस ने इस मामले की स्वतंत्र जाँच की माँग की.
पार्टी के प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने कहा, ”देश के सबसे बड़े रक्षा सौदे में 60,000 करोड़ रुपये से अधिक की कमीशनख़ोरी, बिचौलियों की मौजूदगी और पैसे के लेन-देन ने एक बार फिर रफ़ाल सौदे की परतें खोल दी हैं. कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष, राहुल गांधी की बात आख़िर सच साबित हुई ‘ना खाऊंगा, ना खाने दूंगा’ की दुहाई देने वाली मोदी सरकार में अब कमीशनख़ोरी और बिचौलियों की मौजूदगी सामने आ गई है. ये हम नहीं कह रहे, ये फ्रांस की एक न्यूज़ एजेंसी, न्यूज़ पोर्टल ने फ्रांस की एंटी करप्शन एजेंसी के माध्यम से कल देर रात खुलासा किया है. अब साफ़ है कि 60,000 करोड़ रुपये से अधिक के सबसे बड़े रक्षा सौदे में सरकारी ख़ज़ाने को नुक़सान, राष्ट्रीय हितों से खिलवाड़, क्रोनी कैपिटलिज्म की संस्कृति, कमीशनख़ोरी और बिचौलियों की मौजूदगी की एक चमत्कारी गाथा अब इस देश के सामने है. रक्षा ख़रीद प्रक्रिया की खुलकर धज्जियां उड़ाई गई.”
उधर, सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी ने इस ख़बर का खंडन किया है. क़ानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने रिपोर्ट को ‘निराधार’ क़रार दिया है.
रफ़ाल घोटाला है क्या?
दो साल पहले रफ़ाल को लेकर भारत में काफ़ी हंगामा खड़ा हो गया था. इसे मोदी सरकार के सबसे बड़े संकट के तौर पर देखा गया था. मामला उस समय जाकर थमा जब सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में सरकार को क्लीन चिट दे दी थी और एक साल बाद सुप्रीम कोर्ट ने ही इस सौदे में सरकार को क्लीन चिट दिए जाने वाले अपने फ़ैसले की समीक्षा की माँग वाली याचिकाओं को ख़ारिज कर दिया था. सुप्रीम कोर्ट के तीन सदस्यों वाले बेंच में उस समय के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, जस्टिस एसके कौल और केएम जोसेफ़ शामिल थे. रंजन गोगोई रिटायरमेंट के कुछ महीने बाद राज्यसभा के सदस्य बना दिए गए थे.
साल 2016 में फ्रांस और भारत ने फ्रांसीसी रक्षा समूह डासो के 36 रफ़ाल जेट लड़ाकू विमानों की खरीद के लिए 7.8 अरब यूरो के सौदे पर हस्ताक्षर किए थे.
रफ़ाल दो इंजन वाला मल्टी-रोल लड़ाकू विमान है, जिसे फ्रांसीसी कंपनी डासो एविएशन ने बनाया है.
विवाद कई मुद्दों पर है.
पहला ये कि शुरू में 126 विमान के ऑर्डर को बदल कर 36 विमान क्यों कर दिया गया.
दूसरा, इसके दाम को लेकर है. डासो एविएशन की 2016 की वार्षिक रिपोर्ट में कहा गया है कि 31 दिसंबर 2016 तक 20 करोड़ तीन लाख 23 हज़ार यूरो के रफ़ाल लड़ाकू विमान के पुराने ऑर्डर थे जबकि 31 दिसंबर, 2015 तक 14 करोड़ एक लाख 75 हज़ार यूरो के ही ऑर्डर थे.
डासो का कहना है कि 2016 में भारत से 36 रफ़ाल डील पक्की होने के बाद यह बढ़ोतरी हुई थी.
तीसरा विवाद उद्योगपति अनिल अंबानी की कंपनी को लेकर है. उनकी कंपनी रिलायंस डिफेंस की प्रोफ़ाइल और कंपनी की योग्यता को लेकर कई तरह के सवाल उठते रहे हैं. कंपनी ने जितने बड़े क़रार किए हैं, उसके हिसाब से अनिल अंबानी की कंपनी कथित तौर पर अनुभवहीन है. इस विवाद के दौरान फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद का चौंकाने वाला बयान आया था कि करोड़ों डॉलर के ‘रफ़ाल सौदे में अनिल अंबानी को भारत सरकार ने ऑफ़सेट पार्टनर के तौर पर फ्रांस पर ‘थोपा’ था’.
समझौता कब हुआ और मुख्य तारीख़े क्या हैं?
31 जनवरी, 2012: फ्रांस से रफ़ाल को लेकर बातचीत 2012 से ही चल रही थी. डासो को टेंडर मिला जिसने एयरोफाइटर और स्वीडन की साब जैसी कंपनियों को मात दी. लेकिन दो साल तक बातचीत के बाद भी कोई औपचारिक समझौता न हो सका.
जुलाई, 2014: मोदी सरकार के सत्ता में आने के दो महीने से भी कम समय में फ्रांस के विदेश मंत्री और अंतरराष्ट्रीय विकास मंत्री लॉरेंट फेबियस ने रफ़ाल सौदे पर ज़ोर देने के लिए प्रधानमंत्री मोदी से दिल्ली में मुलाक़ात की.
दिसंबर, 2014: भारत और फ्रांस ने 126 रफ़ाल फाइटर जेट्स के लिए सौदे को तेज़ी से ट्रैक करने के लिए मूल्य निर्धारण और डासो के लिए एक गारंटी क्लॉज़ जैसे मुद्दों पर विचार किया.
10 अप्रैल, 2015: रक्षा ख़रीद के मापदंडों को किनारे रखते हुए भारत और फ्रांस ने घोषणा की कि भारतीय वायुसेना 36 रफ़ाल लड़ाकू विमानों को फ्लाई-अवे की स्थिति में ख़रीदेगी. ये भारतीय वायु सेना के दो स्क्वाड्रंस को 18 विमान से लैस करेंगे.
3 अक्टूबर, 2016: अनिल अंबानी का नाम आधिकारिक रूप से इस डील में सामने आया. अंबानी की रिलायंस डिफेंस और डासो एविएशन ने संयुक्त उद्यम की घोषणा की.
सितंबर, 2018: केंद्र को पहला झटका तब लगा जब फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद ने ख़ुलासा किया कि उनके पास भारतीय ऑफ़सेट साथी (रिलायंस डिफेंस) का चयन करने के लिए कोई विकल्प नहीं था और भारतीय पक्ष द्वारा रिलायंस का नाम फ्रांसीसी प्रकाशन मीडियापार्ट को दिया गया था.
इसी महीने सर्वोच्च न्यायालय ने एक जनहित याचिका पर सुनवाई के लिए सहमति व्यक्त की जिसमें अंतर-सरकारी समझौते को रद्द करने की माँग की गई थी.
14 दिसंबर, 2018: भारत की सुप्रीम कोर्ट ने मोदी सरकार को क्लीन चिट देते हुए कहा कि रफ़ाल सौदे में कोई भ्रष्टाचार का मामला सामने नहीं आया है.
मई, 2019: सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व केंद्रीय मंत्रियों यशवंत सिन्हा, अरुण शौरी, वकील प्रशांत भूषण और अन्य कई लोगों के शीर्ष अदालत के फ़ैसले के ख़िलाफ़ दायर याचिका पर आदेश सुरक्षित रखा.
14 नवंबर, 2019: सुप्रीम कोर्ट ने फ्रांसीसी फ़र्म डासो एविएशन के साथ रफ़ाल फ़ाइटर जेट सौदे में सरकार को क्लीन चिट देने वाले 2018 में फ़ैसले की समीक्षा की माँग वाली याचिकाओं को ख़ारिज कर दिया.
BBC