रांची-वर्ष 2006 से पहले किसानों के लिए बड़े स्तर पर जमीन से जुड़कर काफी कम काम हो रहा था। किसान खेती तो कर रहे थे, मगर तकनीक और आर्थिक स्थिति के मामले में काफी पिछड़े हुए थे। पेशे से एग्रीकल्चर इंजीनियर ओमप्रकाश गुप्ता ने ऐसे किसानों की हालत देखी और जमीन से जुड़कर काम करना शुरू किया। अब वे पांच हजार से ज्यादा किसानों को तकनीकी और बुनियादी सुविधा के साथ मदद पहुंचा रहे हैं। ओमप्रकाश गुप्ता बताते हैं कि मैंने रांची में सबसे पहले 2006 में टपक सिंचाई से किसानों को खेती के लिए प्रेरित करना शुरू किया। उस वक्त यहां टपक सिंचाई के बारे में लोगों को जानकारी नहीं थी। अब सरकारी अधिकारियों और किसानों को खेती और उससे जुड़ी तकनीक का प्रशिक्षण देने के लिए सरकार के द्वारा बुलाया जाता है। ओमप्रकाश गुप्ता ने खेती की उन्नत तकनीक की ट्रेनिंग इजराइल में ली है।
राज्य में क्राॅपिंग पैटर्न में किया बदलाव
झारखंड में किसान पारंपरिक रूप से एक ही फसल उपजाते हैं। मगर ओमप्रकाश गुप्ता ने किसानों की हालत को देखते हुए बदलाव लाने का फैसला किया। इसके लिए उन्होंने यहां के क्राॅप पैटर्न में बदलाव किया। उन्होंने ग्रीनरी के नाम से एक संस्था बनाई। वर्ष 2009-10 में ओरमांझी के किसानों की मदद से कई एकड़ जमीन पर तरबूज की खेती की। इससे पहले यहां कभी किसी ने तरबूज की खेती नहीं की थी। फिर वर्ष 2011 में उन्होंने किसानों को एक बार फिर से प्रेरित करके केले की खेती शुरू करवाई। यह पहली बार था जब झारखंड राज्य में केले की खेती शुरू हुई। आज सैकड़ों एकड़ जमीन में राज्य के किसान केले और तरबूज की खेती कर रहे हैं।
आरा केरम गांव में खेती तकनीक पर वर्षों से कर रहे काम
ओमप्रकाश गुप्ता बताते हैं कि आरा केरम गांव में बदलाव की किरण एक दिन में नहीं आई। वहां वर्षों से लोगों ने अलग-अलग स्तर पर काम किया है। मैं वहां खेती की तकनीक और टपक सिंचाई पर वर्षों से काम कर रहा हूं। वक्त-वक्त पर किसानों के लिए प्रशिक्षण और डेमो का आयोजन भी किया जाता है। इसमें अब आसपास के गांव के लोग भी शामिल होते हैं। पहले लोग नया प्रयोग करने से डरते थे। मगर अब अच्छी बात यह है कि कई लोग यहां से दिन में खेती और उससे जुड़ी समस्या के सामाधान के लिए फोन करते हैं।
देशभर के लोगों को देते हैं प्रशिक्षण
ओमप्रकाश गुप्ता वर्तमान में बिरसा कृषि विश्वविद्यालय और आइसीएआर पलांडू के रिसोर्स पर्सन हैं। वे बताते हैं कि उन्होंने वर्ष 2007 में राज्य हार्टिकल्चर अधिकारी और राज्य कृषि पदाधिकारियों को नए तकनीक का प्रशिक्षण दिया था। उसके बाद से वे बिरसा कृषि विवि और आइसीएआर की मदद से हर वर्ष सैकड़ों किसानों और लोगों को खेती की तकनीक के बारे में प्रशिक्षित कर रहे हैं। इसके साथ ही आइआइटी खड़गपुर में खेती पर रिसर्च का कार्य भी कर रहे हैं।
किसानों के साथ फार्म डेवलपमेंट पर कर रहे हैं काम
राज्य भर में टपक सिंचाई की योजना पर काम करने के साथ ओमप्रकाश गुप्ता किसानों के साथ मिलकर इंटीग्रेटेड फार्म डेवलपमेंट पर काम कर रहे हैं। वे बताते हैं कि किसानों का एफपीओ (फार्म प्रोड्यूसर ऑर्गेनाइजेशन) बनाकर छोटे फार्म में कैसे ज्यादा से ज्यादा शुद्ध खेती (बिना या कम से कम केमिकल के) की जाए, इस पर काम चल रहा है। इसमें किसानों का एक आत्मनिर्भर समूह बनाकर खेती के विकास और उनके उत्पाद की बिक्री पर काम किया जा रहा है। इसमें उनकी संस्था ग्रीनरी किसानों की हर स्तर पर मदद कर रही है।