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मानव संग्रहालय द्वारा महाराष्ट्र के पुनीत वन ‘देवराई’ की ऑनलाइन प्रदर्शनी

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Feb 12, 2021
मानव संग्रहालय द्वारा महाराष्ट्र के पुनीत वन 'देवराई' की ऑनलाइन प्रदर्शनी

भोपाल (Bhopal) . इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय द्वारा अपनी ऑनलाइन प्रदर्शनी श्रृंखला के पैंतीसवें सोपान के तहत पुनीत वन मुक्ताकाश प्रदर्शनी से देवराई महाराष्ट्र (Maharashtra) के पुनीत वन की जानकारी को ऑनलाईन प्रदर्शनी श्रृंख्‍ला के तहत प्रदर्शित किया गया है. इससे सम्बंधित विस्तृत जानकारी तथा छायाचित्रों एवं वीडियों को ऑनलाईन प्रस्तुत किया गया है.

इस संदर्भ में संग्रहालय के निदेशक डॉ. प्रवीण कुमार मिश्र ने बताया कि- महाराष्ट्र(Maharashtra) राज्य के सिन्धुदुर्ग व रत्नागिरी जिले के प्रत्येक गांवो में करीब एक पुनीत वन अवश्य पाया जाता है, कुछ एक निजी पुनीत वनों या देवराई को छोड़कर बाकी सभी पुनीत वनों की भूमि शासकीय होती है. यद्यपि इसे प्रबंधन व प्रशासन के लिये संबंधित ग्राम पंचायत को सौंप दिया गया है. गांवों के पारंपरिक फैसले लिये जाने वाले संस्था जिसे मनकरिज व गावकर्स कहा जाता है, विशेष रूप से सामाजिक-धार्मिक मामलों मे अत्यंत सशक्त है. व्यक्तिगत उपयोग के लिये देवराई से वृक्षों की लकड़ी, छाल, पत्ती इत्यादि को बाहर ले जाना पूर्ण रूप से वर्जित है.

इस सम्बन्ध में धीर सिंह, बागवानी अधिकारी ने बताया कि इस क्षेत्र के ग्रामीणों का विश्वास है कि पुनीत वन की सभी सम्पत्ति वन-देवता की होती है. इन वनों मे कई महत्वपूर्ण और दुर्लभ वृक्ष प्रजातियाँ पायी जाती है विशेष रूप से पश्चिमी घाट में औषधीय पौधे पाये जाते है, जो कहीं और नहीं पायी जाती या फिर वनों के विनाश या आवश्यकता से अधिक उपभोग के कारण विलुप्त हो गयी हैं.

विभिन्न देवराई में विशालकाय वृक्ष जैसे लुप्तप्रायः- पेड-पौधों जैसे- एन्टीएरिसटोक्सीकेरिया, टरमिनालियाबेल्लारिका, टेट्रामेलेस न्युडिफ्लोरा, इंटाडा आदि पाये जाते हैं. इसके अलावा देवराई मे लुप्तप्रायः पेड-पौधे जैसे सैगरेइयालौरिफोलिया, होलीगरनारनौटियाना, अनैमिरटैकोकुलश, ब्युटियापार्विफ्लोरा व एमोफर्रोफाइलस की कई प्रजातीयाँ यहाँ आज भी संरक्षित है. प्राकृतिक संपदा का भंडार होने के अलावा देवराई गांववालों के सामाजिक-सांस्कृतिक जीवन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. उत्सव व निर्णय लेने के अवसरों पर गांव वालों को इकट्ठा होने का स्थान भी प्रदान करता है. बहुत से गांवों मे अन्तेष्टि हेतु जंगल का कुछ भाग आरक्षित किया जाता है. इन पुनीत वनों मे पेड़ों की कटाई व संरक्षण केवल अन्तेष्टि हेतु ही किया जाता है. देवराई क्षेत्रों मे जल का सतत स्त्रोत होता है. देवराई अपने आस-पास के कुँओं को पुनर्जीवित करते हैं तथा शुष्क मौसम में पानी का एकमात्र स्त्रोत होते हैं.दर्शक इसका अवलोकन मानव संग्रहालय की अधिकृत साईट एवं फेसबुक के अतिरिक्त यूट्यूब लिंक पर ऑनलाइन के माध्यम से घर बैठे कर सकते हैं.

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