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सऊदी अरब अपने इस क़दम से दुबई को पटखनी दे पाएगा

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Feb 19, 2021
सऊदी अरब अपने इस क़दम से दुबई को पटखनी दे पाएगा

तेल निर्यात करने वाला दुनिया का सबसे बड़ा देश सऊदी अरब अपनी अर्थव्यवस्था की तेल पर निर्भरता को कम करने के लिए कई क़दम उठा रहा है. क्योंकि सरकार को अहसास है कि तेल हमेशा के लिए नहीं रहेगा.

सऊदी सरकार के ताज़ा क़दम के अनुसार ऐसी कोई भी विदेशी कंपनी और वाणिज्यिक संस्था के लिए, जो सरकारी ठेका/कॉन्ट्रैक्ट हासिल करना चाहती है, उसे अपना क्षेत्रीय मुख्यालय सऊदी अरब में खोलना ज़रूरी होगा. इसे सऊदी सरकार 2024 से लागू करने जा रही है.

क्षेत्र में सऊदी अरब की अर्थव्यवस्था सबसे बड़ी है और सियासी दृष्टिकोण से भी सऊदी अरब एक क्षेत्रीय ताक़त है. क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान सऊदी की राजधानी रियाद को 2030 तक एक आर्थिक और व्यापारिक गढ़ बनाना चाहते हैं.

सऊदी अरब की ताज़ा घोषणा ने पड़ोसी देशों में काफ़ी हलचल मचा दी है. इसके क़रीबी मित्र संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) को भी चिंता है. यूएई में लोग इसे सऊदी अरब की दुबई से मुक़ाबला करने की एक कोशिश के रूप में देख रहे हैं.

तेल से मालामाल खाड़ी देशों में दुबई एक अंतरराष्ट्रीय स्तर का बड़ा व्यापारिक और आर्थिक गढ़ है. दुनिया की बड़ी कंपनियों का क्षेत्रीय मुख्यालय यहाँ सालों से है और यहाँ पश्चिमी देशों के लोग लाखों की संख्या में छुट्टियाँ मनाने आते हैं. ऐसा कुछ बद तक आबूधाबी में भी होता है.

खाड़ी देशों में इन दोनों शहरों का कोई मुक़ाबला नहीं है. लेकिन ये सब अब बदल सकता है.

क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान रियाद को उन ऊँचाइयों तक ले जाना चाहते हैं, जहाँ इस समय दुबई है. रियाद की आबादी 75 लाख है लेकिन क्राउन प्रिंस इसे 2030 तक दोगुना बढ़ाना चाहते हैं.

रियाद तेज़ी से फैल रहा है. शहर में काँच की जगमगाती इमारतें, मॉल, बड़ी कंपनियों के शोरूम और चौड़ी सड़कें वहाँ की अमीरी को दर्शाते हैं. यहाँ कई विदेशी कंपनियाँ पहले से ही मौजूद हैं.

भारतीयों के लिए नौकरियों के अधिक अवसर
दिल्ली में मिडिल ईस्ट वर्कर्स और माइग्रेशन की विशेषज्ञ डॉक्टर महज़बीन बानू सऊदी अरब के इस क़दम का स्वागत करती हैं और वो इस बात को समझती हैं कि सऊदी अरब ये क़दम क्यों उठा रहा है.

वो कहती हैं, “तेल के गिरते दाम, महामारी और लॉकडाउन ने अर्थव्यवस्था और जॉब मार्केट में चुनौतियाँ और अनिश्चितता पैदा कर दी है.” उनके अनुसार ऐसी स्थिति में ये क़दम एक बहुत ही अच्छा आइडिया है. डॉक्टर महज़बीन बानू का तर्क ये है कि इससे हज़ारों नौकरियों के अवसर पैदा होंगे.

वो कहती हैं, “अर्थव्यवस्था को खोलने का मतलब है कि इस क्षेत्र में अधिक एफ़डीआई आएगा और नौकरियों के अवसर भी बढ़ेगे. उदाहरण के लिए, क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान की योजना शहर (रियाद) के आकार को दोगुना करने की है, जिसके लिए 800 अरब डॉलर का बजट है. निर्माण श्रमिकों सहित ज्ञान, कौशल और क्षमताओं जैसे विभिन्न क्षेत्रों के लिए ये आकर्षक लगता है.”

डॉक्टर महज़बीन बानू के मुताबिक़, सऊदी अरब में इस समय जितने भारतीय श्रमिक काम करते हैं (लगभग 28 लाख), उनमें से 30 प्रतिशत कौशल की श्रेणी में आते हैं, बाक़ी सब अर्ध-कुशल और अकुशल हैं.

वो कहती हैं, “सऊदी अरब के इस ऐलान से न केवल भारत के कुशल श्रमिकों को बल्कि अर्ध-कुशल और अकुशल लोगों को भी आकर्षित करने में मदद मिलेगी.”

भारत सरकार और राज्य सरकारों को उनकी सलाह ये है कि वो खाड़ी देशों से वापस लौटे श्रमिकों की ट्रेनिंग और स्किल डेवलपमेंट का इंतजाम करें, ताकि उन्हें सऊदी अरब की योजनाओं में नौकरियाँ मिलें.

श्रमिक भेजने वाले देशों के बीच मुक़ाबला सख़्त होगा. इसलिए वो श्रमिकों की ट्रेनिंग पर ज़ोर दे रही हैं. उनके अनुसार समाज और स्थानीय श्रम बाज़ार में सुधार सऊदी अरब के लिए एक चुनौती है.

दुबई से मुक़ाबले में कामयाब होगा सऊदी?
दुबई में रहने वाली आर्थिक विशेषज्ञ आददायो बालाजी आडिओ कहती हैं, दुबई से मुक़ाबला आसान नहीं होगा. द इकोनॉमिस्ट इंटेलिजेंस यूनिट पब्लिक पॉलिसी और थॉट लीडरशिप से जुड़ीं आददायो बालाजी आडिओ कहती हैं, “सऊदी ने एक रणनीतिक, उच्चस्तरीय चाल चली है, सभी कंपनियों को अपने मुख्यालय को देश में स्थापित करने के लिए मजबूर किया है और उसे लगता है कि यह ऐसा कर सकता है क्योंकि यह क्षेत्र का सबसे बड़ा मार्केट है.”

वो आगे कहती हैं, ” लेकिन कंपनियों को क़ानून के माध्यम से देश में स्थापित करने के लिए मजबूर करना, अमीरात जैसी जगह से कंपनियों को हटने पर मजबूर करना पर्याप्त नहीं होगा. अमीरात लंबे समय से एक ऐसी जगह है, जहाँ विदेशी कंपनियों ने अपने मुख्यालय स्थापित कर रखे हैं. अमीरात विदेशी निवेश और उच्च कुशल प्रवासियों को बनाए रखने और अधिक आकर्षित करने के प्रयासों को भी आगे बढ़ा रहा है और साथ ही ये अपने वाणिज्यिक कंपनी क़ानून, नागरिकता क़ानून और नागरिक एवं परिवार क़ानून में सुधार भी ला रहा है.”
उनका कहना था कि कुछ कंपनियाँ सऊदी जाएँगी और कुछ केवल नाम के वास्ते जाएँगी. कुछ कंपनियाँ अपने मुख्यालय को सऊदी अरब में स्थापित कर सकती हैं, हालांकि कई कंपनियाँ नाम मात्र परिवर्तन करेंगी. उनके सऊदी अरब के अंदर मौजूद मुख्यालय को ही क्षेत्रीय हेडक्वार्टर में बदल देंगी.

साथ ही विशेषज्ञ कहते हैं कि अमीरात में प्रवासियों के लाइफ़स्टाइल और जीवन शैली को सऊदी अरब के लिए मैच करना आसान नहीं होगा. दुबई में सिनेमा घर, नाइट क्लब और शराबखाने भरे पड़े हैं, जिन पर सऊदी अरब में पाबंदी लगी हुई है.

इसके आसपास के इलाक़ों में दर्जनों ऐसे होटल और जगहें हैं, जहाँ पश्चिमी देशों के पर्यटक और व्यापारी आकर कुछ समय बिताना पसंद करते हैं. इसके अलावा अमीरात में काम कर रहे विदेशियों में जिस स्तर की कौशल और क्षमताएँ मौजूद हैं, वो सऊदी अरब में फिलहाल नहीं हैं.

सऊदी में दुबई जैसी रौनक नहीं
दुबई-स्थित आर्थिक विशेषज्ञ आददायो बालाजी आडिओ कहती हैं कि जो कंपनियाँ सऊदी अरब में अपना दफ़्तर खोलेंगी भी तो, इसकी कमान दुबई में होगी. वो कहती हैं, “सऊदी अरब में फ़िलहाल वो लाइफ़स्टाइल नहीं है, जो दुबई में है. कौशल और क्षमताएँ भी मौजूद नहीं हैं, जो यहाँ हैं.”

लेकिन सऊदी क्राउन प्रिंस ने हाल के वर्षों में कई सुधार वाले क़दम उठाए हैं. उन्होंने संगीत कार्यक्रमों पर प्रतिबंधों में ढील दी है, महिलाओं को ड्राइव करने की अनुमति दी है और सिनेमाघरों पर 40 साल का प्रतिबंध समाप्त कर दिया है.

सऊदी अरब की राजधानी रियाद में 30 साल से काम करने वाले बिहार के मसूद आलम कहते हैं, ”ये सऊदी अरब के लिए नाटकीय क़दम हैं. मैं यहाँ 30 साल पहले एक युवा के तौर पर आया था, एक फ़ैक्टरी का मैनेजर बन कर. उस वक़्त कई तरह की सामाजिक पाबंदियाँ थीं. ज़िंदगी अच्छी थी, लेकिन इसमें कोई फ़न नहीं था. देखते ही देखते सब चीज़े बदल रही हैं और अब यहाँ कैफ़े हैं, चमक-दमक है, रौनक़ है. हमारे पास वो सभी आधुनिक चीज़े हैं, जो पश्चिमी देशों में हैं. लेकिन अब भी कुछ ‘नो गो एरिया’ हैं, जैसे कि दुबई की तरह यहाँ नाइट क्लब नहीं हैं या बीच पर बिकिनी पहन कर महिलाएँ नहीं आ सकती हैं.”

लेकिन सऊदी अरब ने दुबई से मुक़ाबले वाले तर्क को नकारने के बाद कहा कि रियाद और दुबई दोनों अपनी-अपनी जगह पर फल-फूल सकते हैं.

कुछ विशेषज्ञों के अनुसार सऊदी अरब को इस बात का पूरा अधिकार है कि वो बाहर की कंपनियों को आकर्षित करने के लिए क़दम उठाए. सऊदी अरब में मुल्क के अंदर क्षेत्रीय हेडक्वार्टर खोलने वाली कंपनियों को लुभाने के लिए कई तरह की छूट की घोषणा की है.

उदाहरण के तौर पर 50 साल तक के लिए कॉरपोरेट टैक्स में माफ़ी और अगले 10 सालों तक स्थानीय लोगों के लिए नौकरियों में रखने को अनिवार्य नहीं बनाना.

पेशकश पर सहमति
इस काम के लिए सऊदी सरकार ने एक संस्था की स्थापना की है, जिसे ‘रियाद सिटी फ़ॉर रॉयल कमिशन’ (The Royal Commission for Riyadh City) कहा जाता है. इसने क्षेत्रीय मुख्यालय की स्थापना के लिए 500 विदेशी कंपनियों को आकर्षित करने का लक्ष्य रखा है

सऊदी अरब की सरकार का दावा है कि 24 बड़ी विदेशी कंपनियाँ रियाद में अपना दफ़्तर खोलने के लिए समझौता कर चुकी हैं. स्थानीय अंग्रेज़ी अख़बार ‘द अरब न्यूज़’ ने एक दर्जन ऐसे विदेशी कंपनियों के बड़े अधिकारियों के बयान भी छापे हैं, जो इस बात की घोषणा कर रहे हैं कि उन्होंने रियाद में अपनी कंपनियों के क्षेत्रीय हेडक्वार्टर खोलने के लिए सरकार से समझौते किए हैं.

BBC

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