• April 25, 2024 3:32 pm

शिवमंगल सिंह ‘सुमन’- ‘क्या हार में क्या जीत में, किंचित नहीं भयभीत मैं’

5 अगस्त 2022 हिंदी काव्यधारा के बड़े हस्ताक्षर शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ की आज जयंती है. प्रगतिशील लेखन के अग्रणी कवि सुमन जी का जन्म 5 अगस्त 1915 को उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले में हुआ था. उनके पिता का नाम ठाकुर बख्श सिंह था. उनका परिवार कई पीढ़ियों से देश की सेवा में समर्पित रहा है. शिवमंगल सिंह सुमन के दादा ठाकुर बलराज सिंह रीवा सेना में कर्नल थे और परदादा ठाकुर चन्द्रिका सिंह 1857 की क्रांति में वीरगति को प्राप्त हुए थे.

शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ अपनी रचनाओं के माध्यम से सीधे-सपाट शब्दों में संवाद करते हैं.

इस जीवन में बैठे ठाले ऐसे भी क्षण आ जाते हैं
जब हम अपने से ही अपनी बीती कहने लग जाते हैं।

तन खोया-खोया-सा लगता मन उर्वर-सा हो जाता है
कुछ खोया-सा मिल जाता है कुछ मिला हुआ खो जाता है।

लगता; सुख-दुख की स्‍मृतियों के कुछ बिखरे तार बुना डालूं
यों ही सूने में अंतर के कुछ भाव-अभाव सुना डालूं।

कवि की अपनी सीमाएं है कहता जितना कह पाता है
कितना भी कह डाले, लेकिन-अनकहा अधिक रह जाता है।

यों ही चलते-फिरते मन में बेचैनी सी क्‍यों उठती है?
बसती बस्‍ती के बीच सदा सपनों की दुनिया लुटती है।

जो भी आया था जीवन में यदि चला गया तो रोना क्‍या?
ढलती दुनिया के दानों में सुधियों के तार पिरोना क्‍या?

जीवन में काम हजारों हैं मन रम जाए तो क्‍या कहना!
दौड़-धूप के बीच एक-क्षण, थम जाए तो क्‍या कहना!

कुछ खाली खाली होगा ही जिसमें निश्‍वास समाया था
उससे ही सारा झगड़ा है जिसने विश्‍वास चुराया था

फिर भी सूनापन साथ रहा तो गति दूनी करनी होगी
सांचे के तीव्र-विवर्त्‍तन से मन की पूनी भरनी होगी।

जो भी अभाव भरना होगा चलते-चलते भर जाएगा
पथ में गुनने बैठूंगा तो जीना दूभर हो जाएगा।

Source;-“न्यूज़ 18 हिंदी”   

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