कवर्धा। इस साल सोयाबीन लगी फसल खराब हो गई है, जिससे किसानों को काफी नुकसान उठाना पड़ रहा है, क्योंकि अगस्त-सितंबर माह में हुई बारिश सोयाबीन की फसल के लिए आफत बन कर टूटी थी, जिससे पूरी तरह से खराब हो गई। कलेक्टोरेट से मिली जानकारी अनुसार जिले के करीब 17 हजार हेक्टेयर में लगी फसल को नुकसान हुआ है। इसे लेकर आरबीसी के तहत शुरूआती दिनों में सर्वे भी किया, लेकिन अभी तक कुछ नहीं हुआ है। इसी प्रकार कई किसान प्रधानमंत्री फसल बीमा के तहत बीमा भी कराए हुए थे, इन किसानों को भी मुआवजा नहीं मिल सका है। इसके चलते बीमा रहित किसानों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।
बीमा कंपनी के द्वारा प्रीमियम तो पूरा वसूल किया जाता है, लेकिन उन्हें बीमा का लाभ देने के समय नुकसान का आकलन कम कर दिया जाता है। वर्ष 2019 के फसल बीमा का लाभ भी 26 हजार रुपये प्रति हेक्टेयर प्रदान किए जाने की जानकारी मिल रही है, जबकि फसलें शत-प्रतिशत तबाह हो गई थी। फसल कटाई प्रयोग करने में भी राजस्व और कृषि विभाग का अमला कोताही बरतता है, इसके कारण उन्हें पूरा लाभ नहीं मिल पाता है। वर्ष 2018 में भी फसल बर्बाद हुई थी।
इस बार किसान मांग रहे मुआवजा
इस बार भी लगातार बारिश के कारण खरीफ मौसम की फसलें शत प्रतिशत बर्बाद हो गई है, लेकिन राजस्व अमला द्वारा केवल सर्वे ही किया गया है। किसानों की मांग है कि उन्हें सरकार द्वारा तत्काल मुआवजा दिया जाना चाहिए, ताकि वे रबी मौसम की फसलों की बुवाई के लिए बीज-खाद का इंतजाम कर पाएं। किसानों का आरोप है कि हर बार की तरह इस बार भी प्रशासन द्वारा किसानों को फसल बीमा का ही लाभ मिलने का हवाला दिया जा रहा है।
इस तरह मिलता है लाभ
यह बीमा फसलों की कटाई के बाद अधिकतम दो सप्ताह 14 दिन के लिए चक्रवात, चक्रवातीय वर्षा और बेमौसम वर्षा के मामले में दिया जाएगा, जिन्हें फसल कटाई के बाद खेत में सूखने के लिए छोड़ा गया हो। अधिसूचित क्षेत्र में पृथक कृषक भूमि को प्रभावित करने वाली ओलावृष्टि, भूस्खलन और जलभराव के अभिचिन्हित स्थानीयकृत जोखिमों से होने वाले क्षति से भी यह सुरक्षा प्रदान करेगा। इस संबंध में बताया गया है कि युद्ध , नाभिकीय जोखिमों से होने वाली हानियों, दुर्भावनाजनित क्षतियों और निवारणीय जोखिमों को इस बीमा आवरण में शामिल नहीं किया गया है।