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हजारों साल से बनी हुई है लोहबान की मांग, एक लीटर तेल की कीमत 4.5 लाख, आखिर क्या बनाता है इन्हें खास?

ByPrompt Times

Apr 13, 2021

लोहबान का नाम तो आपने सुना ही होगा. धार्मिक अनुष्ठानों से लेकर रूप सज्जा के काम में आने वाले लोहबान की मांग हजारों वर्षों से बनी हुई है. रोमन कैथोलिक चर्चों में इसका इस्तेमाल विशेष रूप से होता है. हजारों साल पहले इथोपिया से भारत और इथोपिया से इरान तक अलग-अलग रास्तों से व्यापारी इसकी आपूर्ति किया करते थे. मांग बढ़ने के कारण लोहबान और इसके पेड़ों से बनने वाले तेल की कीमत अंतरराष्ट्रीय बाजार में करीब 4.50 लाख रुपए प्रति लीटर है.

लोहबान का धर्म ग्रंथों में भी जिक्र मिलता है. कम से कम 6000 साल से इनकी मांग बनी हुई है. सुगंधित लोहबान बरसेरेसिया (Burseraceae) परिवार के पेड़ों में पाया जाता है. यह पेड़ भारत के पहाड़ी क्षेत्रों, अफ्रीका और अरब द्वीप के कुछ इलाकों में पाया जाता है. इन्हें बचाने के लगातार प्रयास हो रहे हैं, लेकिन आशंका है कि कुछ ही समय बाद ये विलुप्ति की कगार पर पहुंच जाएंगे.

इन पेड़ों की 500 प्रजातियां हैं

बरसेरेसिया के पेड़ों की करीब 500 प्रजातियां हैं. इन्हें सुगंधित पेड़ों का परिवार कहा जाता है. इनके पेड़ से निकलने वाले रस से लोहबान बनता है, लेकिन यह सभी पेंड़ों में नहीं पाया जाता है.

सुगंधित पेड़ों के परिवार में इनका मात्रा काफी कम है. बिजनेस इनसाइडर के मुताबिक, इथोपिया में 6 प्रकार के पेड़ हैं, जिनके रस से लोहबान बनता है. अंतरराष्ट्रीय बाजार में इनकी काफी मांग है. ये पहाड़ों पर भी उग जाता है.

कैसे बनता है लोहबान

इनके पेड़ के हिस्से को या छाल को काट दिया जाता है. इससे रस निकलता है. उसे कुछ समय के लिए छोड़ देते हैं. जब रस सूख जाता है तो उससे लोहबान या अन्य सुगंधित चीजों का निर्माण किया जाता है. यह 15 दिन की प्रक्रिया है. सूखने के बाद किसान उस पदार्थ को घर लाते हैं. इसे फिर आकार के हिसाब से अलग-अलग किया जाता है. कम गुणवत्ता वाला लोहबान स्थानीय बाजारों में बेचा जाता है. जबकि अच्छी क्वालिटी वाला अंतरराष्ट्रीय बाजार में बेचा जाता है. इसकी कीमत 430 डॉलर है.

रोमन कैथोलिक चर्चों में हर साल 50 मिट्रिक टन लोहबान की खपत

धार्मिक कार्यों से लेकर सुगंधित पदार्थ बनाने तक के लिए कई देशों में इसका इस्तेमाल किया जाता है. रोमन कैथोलिक चर्चों में हर साल 50 मिट्रिक टन लोहबान की खपत है. पुरातन सभ्यता में यह काफी महंगे बिकने वाले उत्पादों में से एक था. इनकी खरीद-बिक्री के लिए उस सयम इथोपिया से भारत और इथोपिया से सऊदी अरब होते हुए व्यापारी ईरान तक जाते थे. इन रास्तों से हर साल 3000 टन सुगंधित लोहबान का व्यापार होता था.

इन कारणों से हुई मांग में बढ़ोतरी

हाल के समय में कॉस्मेटिक और दवाई के कामों के इस्तेमाल के चलते इसकी मांग में काफी तेजी आई है. इसके तेल की मांग सबसे ज्यादा है. लोहबान और इन पेड़ से बने तेल की कीमत 6000 डॉलर प्रति लीटर तक है. 2018 में सिर्फ तेल का व्यापार 190 मिलियन डॉलर का हुआ. 2028 तक तेल के कारोबार को 406 मिलियन डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है.

विलुप्ति की कगार पर पहुंच रहे हैं पेड़

एक पेड़ से हर साल तीन या चार बार ही लोहबान निकाला जाता है. लेकिन अब इस पर भी संकट के बादल छाने लगे हैं. हर साल जंगलों में लगने वाली आग के कारण इसके व्यापार से जुड़े किसान परेशान हैं. कई बार इन पेड़ों के लोहबान उत्पादन लायक होने में दशकों लग जाते हैं. इसलिए काफी सावधानी से पेड़ के हिस्से को काटकर लोहबान के उत्पादन लायक बनाना पड़ता है. मांग में बढ़ोतरी के कारण भारी मात्रा में उत्पादन का असर भी पेड़ों पर पड़ रहा है. कई इलाकों में यह विलुप्ती की कगार पर पहुंच चुका है.

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