• December 13, 2024 4:13 am

शासक को अपने खिलाफ की बातों को भी सुनना पड़ता है…विरोध है तो राजा आत्ममंथन करे, नितिन गडकरी की किसको सलाह?

ByPrompt Times

Sep 21, 2024
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गडकरी ने कहा कि लेखकों, विचारकों और कवियों को खुलकर और निडर होकर अपनी बात रखनी चाहिए और उनसे यह अपेक्षा भी की जाती है. लोकतंत्र की यदि कोई अंतिम कसौटी है तो वह यही है कि शासक को अपने खिलाफ की बातों को भी सुनना पड़ता है.

 

हमारे लोकतंत्र की असली परीक्षा यह है कि सत्ता में बैठा व्यक्ति अपने खिलाफ सबसे मजबूत राय को भी बर्दाश्त करे और विरोध है तो आत्ममंथन करें। यह बात केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने कही। उन्होंने विचारकों, दार्शनिकों और लेखकों से बिना किसी डर के अपनी राय रखने का आग्रह किया। मंत्री ने कहा, ‘इस समय हमारा देश मतभेदों की नहीं, बल्कि मतभेदों की कमी की समस्या से जूझ रहा है। अगर विचारकों, दार्शनिकों और लेखकों को लगता है कि उनके विचार देश और समाज के हित में हैं, तो उन्हें अपनी राय रखनी चाहिए।’

 

नितिन गडकरी ने संविधान का हवाला देते हुए कहा कि संविधान सभी को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता देता है। उन्होंने यह भी कहा, ‘हमें लोकतंत्र की जननी कहा जाता है, जो विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका और मीडिया के चार स्तंभों पर खड़ा है। हमारा संविधान सभी के अधिकारों और जिम्मेदारियों को निर्दिष्ट करता है। यही संविधान विचारकों को बिना किसी डर के राष्ट्रहित में अपनी राय रखने की अनुमति देता है।’

 

पुणे के एमआईटी वर्ल्ड पीस यूनिवर्सिटी में बोले

पुणे के एमआईटी वर्ल्ड पीस यूनिवर्सिटी में एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए मराठी में बोलते हुए गडकरी ने कहा, ‘लोकशाहीचि सबसे गंभीर परीक्षा ही असल की राजा विरुद्ध कितिही प्रखर विचार मंडले तारी राजाने ते सहन केले पाहिजे, त्याग चिंतन केले पाहिजे।’ (लोकतंत्र की सबसे बड़ी परीक्षा यह है कि राजा अपने खिलाफ सबसे मजबूत राय को सहन करने और आत्मनिरीक्षण करने में सक्षम है।)

 

सामाजिक समरसता की कही बात

गडकरी ने कहा कि अगर हम चाहते हैं कि भारत ‘विश्वगुरु’ बने तो हमें सामाजिक समरसता का रास्ता अपनाना होगा। उन्होंने कहा कि हमें लोकतंत्र की जननी कहा जाता है, जो विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका और मीडिया के चार स्तंभों पर खड़ा है। हमारा संविधान प्रत्येक के अधिकारों और जिम्मेदारियों को निर्दिष्ट करता है। गडकरी ने कहा कि यही संविधान विचारकों को बिना किसी डर के राष्ट्रहित में अपनी राय रखने की अनुमति देता है।

 

सामाजिक सद्भाव से ही बन सकते हैं विश्वगुरु

छत्रपति शिवाजी महाराज का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा, ‘शिवाजी महाराज से बड़ा धर्मनिरपेक्ष व्यक्तित्व का कोई उदाहरण नहीं हो सकता। उन्होंने कभी भी अन्य धर्मों के पूजा स्थलों को नष्ट नहीं किया। अगर हम चाहते हैं कि हमारा देश ‘विश्वगुरु’ बने, तो हमें सामाजिक सद्भाव का रास्ता अपनाना चाहिए।’

गडकरी ने भारत में सामाजिक असमानता को एक चिंताजनक प्रवृत्ति बताया और कहा कि लोगों को यह समझना चाहिए कि किसी व्यक्ति का कद जाति, भाषा, धर्म या लिंग पर निर्भर नहीं करता है।

 

परिवारवाद-जातिवाद पर जताया ऐतराज

गडकरी इन दिनों महाराष्ट्र में अलग अलग कार्यक्रमों में हिस्सा लेते हैं और अलग-अलग तरह का बयान देते हैं. हाल ही में उन्होंने नागपुर में एक कार्यक्रम में परिवारवाद और जातिवाद पर हमला बोला था. परिवारवाद पर ऐतराज जताते हुए उन्होंने कहा, हमारी संस्कृति में कहा गया है वसुदेव कुटुंबकम, विश्व का कल्याण हो. हमारी संस्कृति में यह नहीं कहा गया है कि पहले मेरा कल्याण हो, पहले मेरे बेटे का कल्याण हो. कुछ भी हो, लेकिन मेरी पत्नी और मेरे बेटे को टिकट दे दो.

गडकरी ने कहा कि यह इसलिए हो रहा है, क्योंकि लोग उन्हें वोट देते हैं, लेकिन जिस दिन लोगों ने यह ठान लिया कि ऐसे लोगों को वोट नहीं देना है तो वे एक मिनट में ठीक हो जाएंगे. बीजेपी नेता ने कहा कि लोगों को अपनी काबिलियत प्रूफ करना चाहिए.

 

 

SOURCE – PROMPT TIMES

 

 


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