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बाइडन प्रशासन में छाये रह सकते हैं भारतीय मूल के ये अमेरिकी

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Jan 20, 2021
बाइडन प्रशासन में छाये रह सकते हैं भारतीय मूल के ये अमेरिकी
  • पिछले साल राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ ह्यूस्टन में एक रैली की थी जिसमें क़रीब 50,000 भारतीय मूल के अमेरिकी शामिल हुए थे.

इस कार्यक्रम को आयोजकों ने ‘हाउडी मोदी‘ का नाम दिया था. इस रैली में प्रधानमंत्री मोदी ने ऐसा अनुमान लगाया था कि राष्ट्रपति ट्रंप नवंबर 2020 में चुनाव जीत रहे हैं. मोदी ने फ़रवरी 2020 में ट्रंप का अहमदाबाद में ह्यूस्टन से भी बड़ी रैली करके भरपूर स्वागत किया.

मोदी-ट्रंप की गहरी दोस्ती से ऐसा लगने लगा कि भारतीय मूल के अमेरिकी समुदाय का परम्पगत झुकाव डेमोक्रैटिक पार्टी से हटकर रिपब्लिकन पार्टी की तरफ़ हो रहा है. चुनाव के निकट एक सर्वे के अनुसार रिपब्लिकन पार्टी की तरफ़ ये झुकाव संपूर्ण समर्थन में नहीं बदला है.

चुनाव के बाद किये गए एक सर्वेक्षण में साफ़ हो गया कि रिपब्लिकन पार्टी को यक़ीनन 2016 की तुलना में भारतीय मूल के थोड़े अधिक लोगों का वोट पड़ा लेकिन 72 प्रतिशत भारतीय मूल के अमेरिकियों ने डेमोक्रैटिक पार्टी के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार जो बाइडन और उप-राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार कमला हैरिस को अपना मत दिया.
‘हाउडी मोदी’ रैली काम ना आई
‘हाउडी मोदी’ रैली में शामिल होने वाले एम.आर. रंगास्वामी भी थे जो ‘इंडियास्पोरा’ संस्था के संस्थापक हैं. उन्होंने न्यूयॉर्क टाइम्स अख़बार को दिए एक इंटरव्यू में कहा कि रैली में शामिल होने वालों का बहुमत पहली पीढ़ी के भारतीय-अमेरिकी से था जिसने 2016 में ट्रंप को अपना समर्थन दिया था.
भारतीय मूल के अमेरिकी नागरिक देश की 32 करोड़ आबादी का 1.5 प्रतिशत से भी कम हैं लेकिन इनका शुमार अमेरिका के कामयाब समुदायों में होता है. साल 2015 में औसत आय एक लाख डॉलर प्रति व्यक्ति थी जो राष्ट्रीय औसत का दोगुने से थोड़ा कम है.

ये समुदाय रिपब्लिकन पार्टी और डेमोक्रेटिक पार्टी दोनों को चुनावी चंदा दिल खोल कर देता है इसलिए नेता इनकी अहमियत को समझते हैं. लगभग 20-25 साल पहले इस समुदाय ने सिलिकन वैली के उदय में अपने भारी योगदान से नाम कमाया. इससे पहले स्थानीय अमेरिकियों ने इस समुदाय की पढ़ाई में कामयाबी, परिश्रम और व्यवसाय में विकास का लोहा माना था.
इस बार के चुनाव में भी भारतीय मूल के अमेरिकी वोटरों ने डेमोक्रेटीक पार्टी का साथ नहीं छोड़ा. इसकी एक बड़ी वजह कमला हैरिस बनीं, जिनकी स्वर्गीय माँ तमिलनाडु से थीं और पिता का संबंध कैरिबियाई देश जमैका से है

नतीजा ये निकला कि जो बाइडन-कमला हैरिस की टीम ने अपने प्रशासन के लिए भारतीय मूल के 20 अमेरिकी सदस्यों की या तो घोषणा की या उन्हें नियुक्त किया है.

अमेरिकी सिस्टम के अनुसार, नामित किये गए उम्मीदवारों के नामों को सीनेट से स्वीकृति मिलनी ज़रूरी होती है. इस टीम में 13 महिलायें हैं और इसमें डॉक्टरों की संख्या अच्छी है. इनमें से कई ओबामा प्रशासन में काम करने का अनुभव रखते हैं और लगभग सभी लिबरल विचारधारा के हैं.

नीरा टंडन: प्रबंधन और बजट कार्यालय डायरेक्टर
उप राष्ट्रपति कमला हैरिस के बाद सबसे अहम भारतीय मूल की अधिकारी होंगी नीरा टंडन. जो बाइडन ने सेंटर फ़ॉर अमेरिकन प्रोग्रेस संस्था की अध्यक्ष और मुख्य कार्यकारी अधिकारी नीरा टंडन को प्रबंधन और बजट कार्यालय का निदेशक चुना है. यदि सीनेट ने उनकी नियुक्ति की पुष्टि कर दी तो वो इस कार्यालय का नेतृत्व करने वाली काले नस्ल की पहली महिला होंगी.

प्रबंधन और बजट कार्यालय के निदेशक के रूप में वो प्रशासन के ख़र्च और नीतिगत योजनाओं के लिए ज़िम्मेदार होंगी. नीरा टंडन के माता-पिता का संबंध भारत से था लेकिन उनके बीच तलाक़ के बाद नीरा को उनकी माँ ने पाला और उनकी देख-भाल की.
ग़रीबी के दिनों को याद करके हाल में उन्होंने एक ट्वीट में कहा था कि जब उनके माता-पिता के बीच तलाक़ हुआ तो वो कम उम्र की थीं, उनकी माँ सरकारी भोज और निवास के सहयोग वाले प्रोग्राम पर निर्भर थी. “अब हमें उसी तरह के सरकारी प्रोग्रामों की सहायता और ये सुनिश्चित करने के लिए नियुक्त किया गया है कि हमारे जैसे परिवार की तरह के लोग गौरव के साथ रह सकें.”

इस पद को हासिल करने के लिए उन्हें सीनेट की मंज़ूरी मिलनी ज़रूरी है जो एक कठिन काम हो सकता है क्योंकि उन्होंने रिपब्लिकन पार्टी के कई नेताओं के ख़िलाफ़ कई ऐसे ट्वीट किये हैं जो उन्हें पसंद नहीं हैं. उन्होंने नॉमिनेशन के बाद से ऐसे पुराने 1,000 से अधिक ट्वीट को डिलीट कर दिया है लेकिन रिपब्लिकन पार्टी उन्हें भूली नहीं है.

पार्टी के एक सीनियर नेता और सीनेटर लिंडसे ग्राहम ने उनके नाम की घोषणा के बाद उन्हें ‘अजीब और मानसिक रूप से असंतुलित’ व्यक्ति कहा. पार्टी के एक दूसरे सीनेटर ने उन्हें ‘रेडियोएक्टिव’ कहा जिसका मतलब ये हुआ कि वो इतनी विभाजित करने वाली शख़्सियत हैं कि उनसे दूर रहना ही बेहतर है.
डॉक्टर विवेक मूर्ति: अमेरिकी सर्जन जनरल
कोरोना महामारी के फैलाव को रोकना जो बाइडन के प्रशासन की पहली प्राथमिकता होगी और इस कोशिश में भारतीय मूल के कुछ डॉक्टर आगे हैं जिनका नेतृत्व डॉक्टर विवेक मूर्ति कर रहे हैं. उनकी भूमिका बहुत महत्वपूर्ण होगी.

वो राष्ट्रपति के कोविड-19 टास्क फ़ोर्स के सह-अध्यक्ष भी घोषित किये गए हैं और अमेरिका के सर्जन जनरल भी. इस पद पर वो 2014 से 2017 तक पहले भी काम कर चुके हैं.

उनका जन्म ब्रिटैन में यॉर्कशायर के हडर्सफ़ील्ड शहर में 1977 में हुआ था लेकिन वो तीन साल की उम्र में अपने माता-पिता के साथ मियामी आ गए थे. उनके माता-पिता, जो ख़ुद भी डॉक्टर थे, मूल रूप से कर्नाटक से थे.

डॉक्टर मूर्ति का कोविड-19 टास्क फ़ोर्स में साथ देंगे सह-अध्यक्ष डॉक्टर डेविड केसलर और डॉक्टर मार्सेला नुनेज-स्मिथ. इन तीनों को डॉक्टरों की एक टीम सहयोग देगी जिसमें भारतीय मूल के अतुल गावंडे का नाम अहम है.

वो न केवल एक सर्जन और प्रोफ़ेसर हैं बल्कि 1998 से न्यूयॉर्कर पत्रिका के लिए एक कॉलम भी लिखते आ रहे हैं. इस टास्क फ़ोर्स में भारतीय मूल की सेलीन गाउंडर का नाम भी शामिल है.

अतुल गावंडे के माता-पिता भी डॉक्टर हैं जिनका संबंध महाराष्ट्र से है. उनकी मेडिकल की पढ़ाई हार्वर्ड मेडिकल स्कूल में हुई, इसके अलावा उन्होंने रोड्स स्कॉलर की हैसियत से ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी से पॉलिटिक्स और फ़िलोस्फ़ी में भी डिग्री हासिल की. वो पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन के स्वास्थ्य टास्क फ़ोर्स का एक अटूट अंग थे.

सेलीन गाउंडर के नाम से तमिलनाडु के नेताओं में उत्साह आया है और कई ने ट्वीट करके उन्हें मुबारकबाद दी है. कमला हैरिस की तरह उनका आधा परिवार तमिलनाडु से है. उनके पिता डॉक्टर राज नटराजन गाउंडर तमिलनाडु के इरोड ज़िले में एक गांव से आते हैं जबकि उनकी माँ फ़्रांसीसी मूल की हैं.

उज़रा ज़ेया: विदेश मंत्रालय
उज़रा ज़ेया भारतीय मूल की अकेली मुस्लिम अमेरिकी हैं जिन्हें जो बाइडन ने विदेश मंत्रालय के अहम रोल के लिए चुना है. वो विदेश मंत्रालय में नागरिक सुरक्षा, लोकतंत्र और मानव अधिकारों के सचिव की हैसियत से नियुक्त की गयी हैं.

जब 2018 में उन्होंने राष्ट्रपति ट्रंप की विदेश नीतियों से दुखी होकर इस्तीफ़ा दिया था तो उस समय उनके दोस्तों ने समझा कि उनका करियर अब ख़त्म हो गया है लेकिन जो बाइडन ने उन्हें एक बार फिर से विदेश नीतियों को मूर्त रूप देने की ज़िम्मेदारी दी है.
अगर सीनेट ने उनके नाम को मंज़ूरी दे दी तो वो प्रशासन के मानवाधिकार पर तय होने वाली नीतियों में अहम भूमिका निभाएंगीं. अपने नाम की घोषणा सुनाने के बाद उन्होंने ट्वीट करके कहा कि अमेरिका विविधता और लोकतांत्रिक आदर्श के लिए जाना जाता है और उनकी कोशिश होगी कि वो इन आदर्शों की रक्षा कर सकें.

वो कई देशों में अमेरिकी राजदूत और राजनयिक के रूप में काम कर चुकी हैं जिनमें उनके पूर्वजों का देश भारत भी शामिल है. उनका परिवार भारत प्रशासित कश्मीर से अमेरिका गया था.

वनिता गुप्ता: सहयोगी अटॉर्नी जनरल
45 वर्षीय वनिता गुप्ता एक प्रसिद्ध नागरिक अधिकार कार्यकर्ता के रूप में देश भर में जानी जाती हैं. उन्होंने ओबामा प्रशासन के तहत न्याय विभाग के नागरिक अधिकार प्रभाग के प्रमुख के रूप में काम किया है.

जो बाइडन ने वनिता गुप्ता के बारे में कहा, “वो अमेरिका में सबसे सम्मानित नागरिक अधिकार के वकीलों में से एक हैं.”

वनिता दूसरी पीढ़ी की भारतीय मूल की अमेरिकी हैं और नस्लीय भेदभाव का ख़ुद शिकार होने के बाद इसके ख़िलाफ़ लड़ने में आगे रही हैं. आमतौर से दूसरी और तीसरी पीढ़ी के भारतीय मूल के अमेरिकी भारत से अधिक संबंध नहीं रखते लेकिन वनिता अब भी अपने माता-पिता के देश से जुड़ी हुई हैं.
न्यूयॉर्क टाइम्स से वनिता गुप्ता ने एक विशेष घटना के बारे में बात की थी जिसने उन्हें सामाजिक न्याय को लेकर प्रेरित किया था.

वह अपने पूरे परिवार के साथ लंदन में एक मैकडॉनल्ड्स आउटलेट के बाहर बैठी हुई खा रही थीं कि ठीक उसी समय कुछ लोग एक बग़ल के टेबल पर बैठे थे और वो कहने लगे कालों अपने देश वापस जाओ. वनिता ने कहा, “ये एक बहुत ही परेशान करने वाली घटना थी जिसने मुझ पर गहरा असर छोड़ा.

बाइडन प्रशासन में 20 भारतीय मूल के लोगों में कई और नाम हैं जिनमें वेदांत पटेल का नाम भी लिया जा रहा है जिन्हें व्हाइट हाउस का एक सहयोगी प्रेस सेक्रेटरी घोषित किया गया है.

सीनेट को उनके नाम की पुष्टि करने की ज़रूरत नहीं है. वो बाइडन की चुनावी मुहिम के एक टीम मेंबर रहे हैं और इन दिनों उनके एक प्रवक्ता की हैसियत से काम कर रहे हैं.

BBC

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