सरगुजा जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में खेती-बाड़ी का दौर शुरू हो गया है, जिस किसान के पास जो साधन, संसाधन है, उसी से खेती का काम कर रहा है। वर्तमान समय में ट्रैक्टर व अन्य मशीनरी से खेतों की जोताई किसान कराता है, किंतु बैलों से भी जोताई का काम कम नहीं हुआ है। जोतों का आकार भले ही छोटा हो, समय अधिक लगता हो, परिश्रम अधिक लगता हो पर किसानों के लिए बैल अभी भी खेत जोताई के प्रमुख साधन हैं। ग्रामीण क्षेत्र में किसान को जोताई के लिए अच्छा मजबूत बैल मिल जाता है तो किसान का सीना भी चौड़ा रहता है। मजबूत व तेज तर्रार बैलों से किसान खूब जोताई करता है। न बैल थकतें हैं न किसान थकता है। किसान तब मुसीबत में पड़ जाता है, जब उसे कमजोर या ऐसा बैल मिल जाता है जो उसे मुसीबत में डाल देता है। ऐसे बैलों को काम में लाने के लिए कई तरह की तरकीबें किसान अपनाने लगता है। जोताई के काम में न आने वाले बैल को सरगुजा में ‘कोड़िहा बैल’ के नाम से पुकारने लगते हैं। सरगुजा के इन कोड़िहा बैलों को कामकाजी बनाने उसे जोताई के उपयोग में लाने के लिए कई बार किसान अत्याचार भी करने लगते हैं। शहर से लगे खैरबार गांव में पिछले कुछ दिनों से ऐसा ही एक मामला देखने को मिल रहा है। जोताई के काम में नही आ रहे बैल को कई दिनों से खूंटे में बांध धूप और बारिश में खुले में रख कंधे में वजनदार लकड़ी जुआठ की तरह लगा दी गई है। एक हिस्से में लकड़ी का खूंटा और दूसरे हिस्से में अकेला बैल जोत कर छोड़ दिया गया है ताकि उसका कंधा मजबूत हो सके और वह इतना प्रताड़ित हो जाए कि किसान जब उसे जोताई के उपयोग में लाए तो वह खेतों में चलने लगे। निश्चित रूप से यह किसी पशु के लिए अत्याचार हो सकता है, पर गांव का किसान बैल को सीधा करने काम पर लाने ऐसी तरकीब अपनाने में कोई संकोच नहीं करता। मूक पशुओं पर किसान अत्याचार की सीमाएं पार कर देता है पर उसे दया नहीं आती। किसानों का मानना है कि बैल ऐसे तरकीबों से कामकाजी बैल बन जाता है।