रांची, जेएनएन। आर्गेनिक खेत से आगे बढ़कर आजकल जीरो बजट प्राकृतिक खेती की हर ओर चर्चा हो रही है। देशभर में इसके लिए किसान अपनी खेतों को तैयार करने में जुटे हैं। झारखंड में भी करीब 3500 हेक्टेयर भूमि पर प्राकृतिक खेती के तौर-तरीके आजमाए जा रहे हैं। इस तरह की खेती में फसल उपजाने के लिए रासायनिक खाद और कीटनाशक का प्रयोग पूरी तरह वर्जित होता है। इस विधि से की जाने वाली खेती में सिर्फ गाय के गोबर और मूत्र पर आधारित खेत तैयार किए जाते हैं। जिसमें अति गुणवत्तापूर्ण उपज प्राप्त होती है। बहरहाल, प्राकृतिक खेती को इंसानों को जहरमुक्त भोजन उपलब्ध करने का कारगर और विशेष स्वदेशी तरीका माना जा रहा है। यह खेती की ऐसी खास तकनीक है, जिसमें रासायनिक खाद और कीटनाशक का इस्तेमाल पूरी तरह प्रतिबंधित है।
प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए केंद्र सरकार के कृषि मंत्रालय की ओर से किसानों को आर्थिक मदद भी दी जाती है। सरकार ने इसके लिए प्रति हेक्टेयर 12 हजार 200 रुपये का अनुदान देने का प्रविधान किया है। पूरे देश की बात करें तो अभी 4 लाख हेक्टेयर में जीरो बजट प्राकृतिक खेती में किसान अपना हाथ आजमा रहे हैं। इस तरह की खेती की खासियत यह है कि इसमें खाद और कीटनाशक पर होने वाला खर्च किसानों को बच जाता है। जिससे उपज का लागत मूल्य कम आता है। और फसल पर अधिक मुनाफा कमाया जा सकता है।
केंद्रीय कृषि मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक जीरो बजट प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए देशभर के आठ राज्यों में 40 करोड़ रुपये से अधिक बजटीय प्रविधान किया गया है। जीरो बजट खेती में सब्जियों की अधिकाधिक उपज के बीच रबी और गेहूं की फसल के लिए भी पायलट प्रोजेक्ट शुरू किए गए हैं। इसके प्रायोगिक परीक्षण सफल होने पर अधिक से अधिक किसानों को जीरो बजट प्राकृतिक खेती से जोड़ा जाएगा।
जीरो बजट प्राकृतिक खेती वाले प्रमुख राज्यों में आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, केरल, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, ओडिशा, मध्य प्रदेश और तमिलनाडु शामिल हैं। इस तरह की खेती में खाद के तौर पर गोबर, गौमूत्र, चने के बेसन, गुड़ और पानी से बनाए गए मिश्रण का प्रयोग खेतों में किया जाता है। खेतों में फसल तैयार किए जाने के क्रम में कीटनाशक के बदले किसान नीम और गौमूत्र का छिड़काव करते हैं। महाराष्ट्र के पद्मश्री से सम्मानित किसान सुभाष पालेकर को जीरो बजट प्राकृतिक खेती का विशिष्ट माना जाता है।
पालेकर बताते हैं कि अगर आप रासायनिक खाद से पैदा होने वाले कृषि उत्पादों का इस्तेमाल कर परेशान हो गए हैं, तो जीरो बजट प्राकृतिक खेती की उपज को आहार के तौर पर अपना सकते हैं। इस तरह की खेती में फसल के उत्पादन में कोई खास खर्च नहीं आता। प्राकृतिक खेती में सारी उपज स्वास्थ्यकर होती हैं। इस तरह की खेती को बढ़ावा देने के लिए कृषि मंत्रालय सरकारी मदद उपलब्ध करा रही है। केंद्र सरकार प्राकृतिक खेती करने वाले किसानों को तीन साल के लिए प्रति हेक्टेयर 12200 रुपये की आर्थिक मदद दे रही है। यह रकम इस खेती को प्रमाणित करने के लिए मिलती है।