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पहाड़ों पर ट्राउट मछली का बिजनेस कर कमा सकते हैं लाखों जानिए इससे जुड़ी हर बात

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Jan 21, 2021
पहाड़ों पर ट्राउट मछली का बिजनेस कर कमा सकते हैं लाखों जानिए इससे जुड़ी हर बात

ट्राउट मछली का नाम सुना होगा आपने. औषधीय गुणों से संपन्न होने के साथ ही यह मछली अपने टेस्ट के लिए जानी जाती है. इसे मीठे पानी में पाला जाता है जिसके लिए किसी पोखर या तालाब की भी मदद ली जा सकती है. इस मछली की खासियत ऐसी है कि देश-विदेश के फाइल स्टार होटलों में भी भारी मांग है. औषधीय गुण होने के कारण भी लोग इसे चाव से खरीदते हैं. इससे मछली पालन करने वाले लोगों को अच्छी कमाई होती है.

इस मछली की डिमांड बहुत है लेकिन सप्लाई सीमित है. इस कारण यह हमेशा महंगे रेट पर बिकती है. राज्य के कुछ राज्यों में जहां इसका पालन होता है, उनमें हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड का नाम प्रमुख है. हिमाचल प्रदेश के मंडी में कुछ किसान हैं जो इसका पालन करते हैं. किसानों का कहना है कि यह विदेश से आई मछली है, इसलिए शुरू में उन्हें कुछ भी पता नहीं था कि इसका पालन कैसे करना है. किसान बताते हैं कि दिल्ली में पहले ट्राउट मछली विदेशों से आती थी, लेकिन हिमाचल प्रदेश में जब से इसका उत्पादन शुरू हुआ है, तब से विदेश पर इस मछली की निर्भरता कम हुई है. इससे किसानों को अच्छी कमाई भी हो रही है.

700 रुपये किलो तक रेट
मछली पालन के खर्च के बारे में किसान बताते हैं कि लगभग 400 रुपये में एक किलो ट्राउट मछली तैयार होती है. लेकिन दिल्ली जैसे महानगरों में यही मछली 700 रुपये प्रति किलो तक बिक जाती है. 1 किलो मछली पालन पर 400 रुपये का खर्च इसलिए आता है क्योंकि मछलियों को खिलाया जाने वाला दाना मुख्य रूप से विदेशों से आयात करना पड़ता है. मछलियों का दाना हिमाचल प्रदेश में नहीं मिलता, इसे दिल्ली जैसे शहर से मंगाना पड़ता है. इसके साथ ही दाने में खराबी आने की भी गुंजाइश होती है. इन सभी बातों को देखते हुए मछली पालन पर ज्यादा खर्च आता है.

जहां तक दाने की बात है तो वह लगभग 165 रुपये प्रति किलो के हिसाब से आता है. एक किलो मछली तैयार करने में 3 किलो तक दाना लगता है. मझली पालन के लिए खास गड्ढे बनाए जाते हैं जो कंक्रीट के होते हैं. इसे रेसमा बोलते हैं. एक रेसमे में लगभग 3 हजार मछली पाली जा सकती है. मछली का स्टैंडर्ड साइज ढाई से तीन सौ ग्राम का होता है जिसे फाइव स्टार होटलों में सप्लाई किया जाता है. हालांकि इस वजन की मछली तैयार करने में डेढ़ साल तक का वक्त लग जाता है. ट्राउट का कल्चर ठंडा है, इसलिए वह तैयार होने में काफी समय लेती है. 8-9 महीने में मछली का वजन 100 ग्राम के आसपास होता है.

सरकार से मिलती है सहायता राशि
ठंडे पानी की ट्राउट की बढ़ने की दर काफी धीमी है, इसलिए बिकने लायक बनने में साल डेढ़ साल का वक्त लग जाता है. ट्राउट का वजन एक किलो से लेकर तीन किलो तक हो सकता है लेकिन होटलों में इसकी मांग नहीं होती. भारी मछलियों की मांग बहुत कम है. होटलों में छोटी मछलियों की ही सप्लाई की जाती है. ट्राउट मछली के लिए हमेशा ताजा ठंडे पानी की जरूरत होती है. मछली पालन के लिए सरकार की तरफ से भी सहायता राशि मिलती है. पहले प्रति रेसवे (जिस तालाब में पालन किया जाता है) 20 हजार रुपये की सहायता राशि मिलती थी.

किसानों का कहना है कि मौजूदा मोदी सरकार में किसानों को अच्छी खासी मदद मिल रही है और प्रति रेसवे अब डेढ़ से 2 लाख रुपये तक का ऋण मिल जाता है. इसके अलावा दाने के लिए अलग से सहायता राशि मिलती है. रेसवे और दाने की राशि मिला दें तो आज की तारीख में सरकार की तरफ से 3-3.5 लाख रुपये तक मिलते हैं. रेसवे का मतलब टैंक से है जिसका साइज 17 मीटर लंबा 2 मीटर चौड़ा और डेढ़ मीटर गहरा.

दाने पर कितना खर्च
एक टैंक या रेसवे में 3-4 हजार ट्राउट का पालन होता है और 2-3 लाख रुपये दाने पर खर्च हो जाते हैं. इस हिसाब से प्रति टैंक डेढ़ से 2 लाख रुपये की इनकम हो जाती है. टैंक में बराबर पानी की सप्लाई चाहिए, इसके लिए पहाड़ी इलाके होने से इसमें मदद मिल जाती है. हिमाचल और उत्तराखंड जैसे पहाड़ी इलाके के नदी-नालों में साल भर ठंडा पानी मिलता रहता है, इसलिए पानी की कोई दिक्कत नहीं आती.

अंडे से भी अच्छी कमाई
मछली के अलावा ट्राउट मछली का अंडा भी जुटाया जाता है. ये अंडे विदेशों में रिसर्च के लिए जाते हैं और इस पर अच्छी कमाई हो जाती है. मछली का सीड भी अच्छी दर पर बिक जाता है. छोटे किसान मछली पालन के लिए इसे खरीदते हैं. बाकी राज्यों में भी इसकी सप्लाई की जाती है. ट्राउट मछली की ब्रीडिंग का खास सीजन होता है जो नवंबर से लेकर फरवरी तक. मछलियों के तैयार होने पर नर और मादा की पहचान की जाती है. मादा मछली से अंडे निकाले जाते हैं. इसके बाद मादा मछली का मिल्ट निकाला जाता है और अंडे के साथ मिलाकर फर्टिलाइज किया जाता है. एक मादा मछली एक बार में 1 हजार से लेकर 2 हजार तक अंडे देती है. 2 से 3 साल की मछली ही अंडे देने के लिए मैच्योर होती है.
ऑर्डर के हिसाब से मछली पालन
यह मछली मांसाहारी है इसलिए इसके दाने का भी उसी हिसाब से खयाल रखना होता है. ट्राउट मछली के पालन में तापमान का बड़ा रोल है. पानी का तापमान गर्मियों में 12 डिग्री से ज्यादा नहीं होना चाहिए और ठंडे में 5 डिग्री से कम नहीं होना चाहिए. तापमान कम होने से मछली खाना नहीं खाएगी और उसका ग्रोथ धीमा हो जाएगा. मछली महंगी है इसलिए इसके खराब होने पर घाटे की आशंका ज्यादा होती है. इसलिए किसान होटल के ऑर्डर के मुताबिक ही मछली तैयार करते हैं.

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