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ब्रिटेन के बैंक पर ‘टेरर फ़ंडिंग से जुड़े लेन-देन’ के आरोप

ByPrompt Times

Sep 23, 2020
ब्रिटेन के बैंक पर 'टेरर फ़ंडिंग से जुड़े लेन-देन' के आरोप

ब्रिटेन के स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक (एससीबी) ने साल 2014 से 2016 के बीच क़रीब एक करोड़ 20 लाख डॉलर जॉर्डन के अरब बैंक को भेजे थे.

साल 2016 में एससीबी ने एक रिपोर्ट के ज़रिए अधिकारियों को अलर्ट किया था कि 900 से ज़्यादा ट्रांज़ैक्शन के बारे में बैंक को शक़ है कि वो चैरिटी करने की आड़ में अवैध गतिविधियों के लिए किए गए हैं.

बैंक ने अपनी रिपोर्ट में ‘संभावित टेरर फ़ंडिंग’ की आशंका जताई थी.

साल 2014 में अमरीका की एक ज्यूरी ने पाया था कि अरब बैंक ने जानबूझकर फ़लस्तीनी आंदोलन समूह हमास को इस सदी के शुरुआती दशक में बैंकिंग सेवाएं मुहैया कराया था.

उसके बाद से ही ब्रिटेन के एससीबी ने उसके यहां से अरब बैंक भेजे गए पैसों की जाँच शुरू की थी.

हालांकि बाद में अदालत के इस फ़ैसले को बदल दिया गया था, लेकिन साल 2015 में अरब बैंक ने इसराइल में हमास के ज़रिए किए गए 22 हमलों में मारे गए लोगों के परिजनों (कुल 697 लोग) से एक समझौता किया था.

अभी जो दस्तावेज़ लीक हुए हैं उनके बारे में प्रतिक्रिया देते हुए अरब बैंक ने कहा है कि “वो आतंकवाद से नफ़रत करता है और किसी भी तरह आतंकवादी गतिविधियों को न तो मदद करता है और न ही इसे बढ़ावा देता है.”

अरब बैंक ने कहा कि एससीबी ने उसे कभी भी इस बात की जानकारी उपलब्ध नहीं कराई कि उसने अपने ग्राहकों के लिए पैसों की जो लेन-देन की थी उसको लेकर उसे कभी कोई शक़ पैदा हुआ था.

लेकिन एससीबी का कहना है कि उसने वित्तीय अपराध से लड़ने की अपनी ज़िम्मेदारी को बहुत गंभीरता से लिया था.

लीक हुए दस्तावेज़ को फ़िनसेन फ़ाइल्स कहा जा रहा है. बज़फीड न्यूज़ ने इन दस्तावेज़ों को इंटरनेशनल कॉन्शोर्टियम ऑफ़ इन्वेस्टिगेटिव जर्नलिस्ट्स (आईसीआईजे) और बीबीसी अरबी सेवा के साथ शेयर किया था.

अरब बैंक पर क्या आरोप हैं?

अरब बैंक दुनिया के सबसे बड़े बैंकों में से एक है जिसके पाँच महाद्वीपों में 600 ब्रांच हैं. साल 2015 में बैंक ने हमास के हमलों में मारे गए लोगों के परिजनों के साथ समझौता किया था.

ये सारे लोग इसराइल में साल 2001 से 2004 के बीच मारे गए थे.

उससे एक साल पहले यानी कि साल 2014 में अमरीका की एक सिविल ज्यूरी ने पाया था कि अरब बैंक ने हमास के नेताओं और उनके ज़रिए संचालित चैरिटी संस्थाओं को जानबूझकर बैंकिंग सेवाएं मुहैया कराया था.

बाद में ज्यूरी के इस फ़ैसले को बदल दिया गया था क्योंकि जज ने ज्यूरी को ग़लत निर्देश दिए थे.

10 साल तक चली क़ानूनी लड़ाई में इस बात के सुबूत मिले थे कि हमास ने इस शताब्दी के शुरुआती दशक में अरब बैंक का इस्तेमाल अपने पैसों की लेन देन और हमास के आत्मघाती हमलावरों के परिवार वालों को पैसे देने के लिए किया था.

इसराइल में मारे गए लोगों के परिजनों के वकील गैरी ओसेन ने बीबीसी से कहा, “एक आतंकवादी संगठन उतने पैसों की लेन देन नहीं कर सकता जितना कि हमास जैसे संगठनों को ऑपरेट करने के लिए ज़रूरत होती है. आपको बैंकिंग सर्विस की ज़रूरत होती है और अरब बैंक सबसे बड़ा और सबसे आसान रास्ता था.”

अमरीका, इसराइल, यूरोपीय यूनियन और कई दूसरे देश हमास को एक आतंकवादी संगठन मानते हैं क्योंकि हमले करने का इसका लंबा रिकॉर्ड रहा है और वो हिंसा को छोड़ने से इनकार करता रहा है.

साल 2005 में अमरीकी नियामकों के ज़रिए किए गए जाँच के बाद अरब बैंक को अमरीकी डॉलर में किए गए पेमेंट को प्रोसेस करने से रोक दिया गया था. मनी लॉन्ड्रिंग और टेरर फ़ंडिंग को रोकने में नाकाम रहने और संदिग्ध वित्तीय गतिविधियों की तुरंत ख़बर देने में असफल रहने के कारण अरब बैंक पर दो करोड़ 40 लाख डॉलर का जुर्माना भी लगाया गया था.

दस्तावेज़ क्या बताते हैं?

दुनिया भर के बैंक अमरीकी डॉलर में पैसों की लेन-देन करने के लिए एससीबी जैसे पश्चिमी देशों के बड़े बैंकों पर निर्भर रहते हैं.

बैंकिंग दुनिया में इस सेवा को ‘कॉरेस्पॉडेन्ट बैंकिंग’ कहा जाता है.

फ़िनसेन फ़ाइल्स के ज़रिए पता चला है कि 2014 में अमरीका में हुए ट्रायल के बाद एससीबी ने अमरीकी डॉलर में हुई पेमेंट की जाँच शुरू की जो उसने अरब बैंक को पेमेंट किए थे.

साल 2016 की शुरुआत में एससीबी ने संदिग्ध गतिविधि रिपोर्ट (एसएआर) जारी की जिसके ज़रिए उसने अधिकारियों को अलर्ट किया कि मनी लॉन्ड्रिंग और टेरर फ़ंडिंग की आशंका है.

एसएआर ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि 900 से ज़्यादा ऐसी पेमेंट हुई है जिसके बारे में एससीबी को आशंका है कि वो चैरिटी की आड़ में अवैध गतिविधियों के लिए किए गए हैं.

पेमेंट करते समय उनके बारे में बताया गया था कि वो चैरिटी, दान, मदद, या तोहफ़े के लिए हैं लेकिन भेजी गई रक़म का एक बड़ा हिस्सा वैसे लोगों के ज़रिए किया गया था जिनकी सार्वजनिक रूप से पहचान नहीं हो पाई थी.

कुछ दूसरी पेमेंट के बारे में अलर्ट कर बताया गया कि ये ‘आतंकवादी’ गतिविधियां हो सकती हैं.

कुछ पेमेंट वैसे कुछ ख़ास लोगों के लिए भेजे गए थे जिनपर अमरीका ने प्रतिबंध लगा रखा था.

एसएआर के अनुसार संदिग्ध लेने-देन के कारण एससीबी के न्यूयॉर्क ब्रांच ने 2016 में अरब बैंक से अपने बिज़नेस संबंध को समाप्त कर दिया था.

बैंको का क्या कहना है?

अरब बैंक का कहना है, “जिस देश में भी अरब बैंक ऑपरेट करता है, वो वहां की सरकार के नियामकों के साथ अच्छे संबंध बनाकर रखता है और उस देश के आतंक-निरोधी और मनी लॉन्ड्रिंग के क़ानून का पूरी तरह पालन करता है. किसी भी सरकार या नियामक ने आज तक यह पाया है कि अरब बैंक के किसी खाते या पैसों की लेन-देन ने आतंक-निरोधी क़ानून का उल्लंघन किया है.”

अरब बैंक ने कहा कि उनपर लगे बहुत सारे आरोप क़रीब 20 साल पुराने हैं और उनमें से जो भी खाते शामिल थे, उस समय भी उनका किसी आतंकवादी गतिविधियों से कोई लेना देना नहीं था.

अरब बैंक ने ये भी कहा कि एससीबी ने भी उसे कभी सूचित नहीं किया कि अरब बैंक के खाताधारकों के लिए पैसों की ट्राज़ैक्शन करते समय उसे किसी तरह का कोई शक हुआ था.

अरब बैंक के अनुसार एससीबी ने अरब बैंक के लिए अमरीकी डॉलर में हुई पेमेंट को प्रोसेस करना ज़रूर बंद कर दिया था, लेकिन बावजूद इसके अरब बैंक ने एससीबी के साथ अच्छे बिज़नेस संबंध बनाए रखे थे.

स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक ने कहा है कि उसने 2014 के बाद से ही अरब बैंक के साथ खाता बंद करने की शुरुआत कर दी थी लेकिन इस प्रक्रिया में कुछ समय लगा.

बैंक ने कहा कि एसएआर ”बैंक की किसी ग़लती की स्वीकृति नहीं हैं, और न ही ये कोई ऐसा सुबूत है कि कुछ ग़लत हुआ है.”

बैंक के अनुसार “इस नतीजे तक पहुँचने का अधिकार सिर्फ़ उचित अधिकारियों को ही है.”

बैंक ने कहा कि ”उसने वित्तीय अपराध से लड़ने की अपनी ज़िम्मेदारी को पूरी गंभीरता से लिया है और सभी मानदंडों के पालन करने में उसने ”काफ़ी पैसा ख़र्च किया है.”

बैंक के अनुसार उसके क़रीब 2000 स्टाफ़ किसी भी संदिग्ध लेने-देन की निगरानी करते हैं जिन्होंने पिछले साल एक अरब 20 करोड़ ट्रांज़ैक्शन की निगरानी की जिनके बारे में संदिग्ध गतिविधि में शामिल होने का शक़ था.

फ़िनसेन फ़ाइल्स के ज़रिए गोपनीय दस्तावेज़ सामने आए हैं और इनसे पता चलता है कि कैसे बड़े बैंकों ने अपराधियों को दुनिया भर में पैसों की लेनदेन की अनुमति दे रखी है. इससे यह भी पता चलता है कि ब्रिटेन की वित्तीय व्यवस्था में कई छेद हैं और कैसे लंदन में रूसी कैश का जमावड़ा है.

बज़फ़ीड़ ने इन दस्तावेज़ों को हासिल किया है और फिर उन्होंने आईसीआईजे और दुनिया भर के क़रीब 400 पत्रकारों के साथ इन दस्तावेज़ों को शेयर किया. बीबीसी के लिए पैनोरमान ने शोध का नेतृत्व किया था.
















BBC

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