24 जून 2022 | हाल में हुई घटनाओं के आधार पर राजनीतिक विश्लेषकों के द्वारा अनुमान लगाए जाने लगे हैं। कुछ विश्लेषकों का मत है कि अग्निवीर योजना भाजपा को नुकसान पहुंचाएगी। वहीं ईडी के द्वारा राहुल गांधी से जिस तरह से लम्बी पूछताछ की गई, वह उनके लिए कुछ हद तक सहानुभति पैदा करेगी। मेरा मानना यह है कि इन दोनों ही घटनाओं का भाजपा या कांग्रेस की राजनीतिक सम्भावनाओं पर कोई खास असर नहीं होगा। आज मतदाताओं में विचारधारागत आधार पर तीखा विभाजन हो चुका है।
अब इन दो धाराओं के बीच विचारों के लेनदेन के लिए कोई मध्यमार्ग शेष नहीं रह गया है। हाल ही में हुई घटनाएं मतदाता की राजनीतिक पसंद तो क्या उसकी सोच भी नहीं बदलेंगी। ऊपर से भले ही राहुल गांधी से ईडी के द्वारा की गई पूछताछ कठोर और अतिरंजित मालूम हो या अग्निवीर योजना पर हुए देशव्यापी आंदोलनों से ऐसा लगे कि हवा भाजपा के विरुद्ध हो गई हो, लेकिन इनसे बहुसंख्य मतदाताओं का मानस नहीं बदलने वाला।
आज देश के मतदाता की प्राथमिकता इससे कहीं बड़े विचारधारागत मसले हैं, जैसे कि राष्ट्रवाद या राष्ट्रीय सुरक्षा। नेशनल हेराल्ड मामले में राहुल गांधी से ईडी ने अनेक दिनों तक घंटों पूछताछ की। इस पर आम धारणा यह बनी है कि ईडी को सरकार के द्वारा राजनीतिक मकसद से इस्तेमाल किया गया है और इससे कांग्रेस पार्टी के प्रति सहानुभूति पैदा हुई है।
इसके विरोध में कांग्रेस कार्यकर्ताओं द्वारा देशभर में बड़े पैमाने पर प्रदर्शन किए गए। लेकिन प्रदर्शन कार्यकर्ताओं तक ही सीमित रहे, आमजन इसमें शामिल नहीं हुए। वास्तव में आम मतदाता तो इस विषय पर बात तक नहीं कर रहा है। हमें भूलना नहीं चाहिए कि सोनिया गांधी और राहुल गांधी पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं, जिसके बाद ही ईडी हरकत में आई है। आज देश में भ्रष्टाचार भले ही सर्वव्यापी माना जाता हो, लेकिन कांग्रेस पार्टी और गांधी परिवार के साथ भ्रष्टाचार का नाता लोकप्रिय-धारणा में गहरे पैठा हुआ है।
इससे सामान्यतया सहानुभूति पैदा नहीं होती। वैसे भी आज चुनावों में भ्रष्टाचार कोई अहम मुद्दा नहीं रह गया है। अतीत में भी यह तभी मुद्दा बना है, जब बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार हुआ और मतदाताओं को महसूस होने लगा कि अब बात देश की सुरक्षा से समझौते तक चली गई है। 1989 के लोकसभा चुनावों में राजीव गांधी की लोकप्रिय सरकार भ्रष्टाचार के आरोपों पर ही हारी थी। 2014 में कांग्रेस को फिर इसका खामियाजा भुगतना पड़ा। तब यूपीए की सरकार बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार का पर्याय बन गई थी।
अगर राहुल गांधी से किसी ऐसे मसले पर कठोर पूछताछ की गई होती, जिसका भ्रष्टाचार से सम्बंध नहीं है तो शायद उनके प्रति सहानुभूति की लहर जनता में पैदा होती। लेकिन भ्रष्टाचार के मसले पर मतदाता की कांग्रेस के प्रति पहले से ही निर्मित एक धारणा है। अग्निवीर योजना के विरोध में जिस तरह से देश के युवाओं ने उग्र प्रदर्शन किया, उसने भाजपा को अवश्य चिंतित किया होगा कि इससे उसकी लोकप्रियता को क्षति पहुंचेगी।
युवाओं में बेहद गुस्सा था, उन्होंने सार्वजनिक सम्पत्तियों को नुकसान पहुंचाया और भारत-बंद का भी आह्वान किया गया। इसके बावजूद वास्तविकता भिन्न है। प्रदर्शनकारियों में युवाओं का एक वर्ग ही शामिल हुआ है, इनमें भी ग्रामीण युवा बहुतायत में हैं। देश के आम युवा में इस योजना के प्रति इतना सर्वव्यापी गुस्सा नहीं है, जितना कि लगता है।
2014 और 2019 के आम चुनावों में भाजपा की जीत में युवाओं के वोट का केंद्रीय योगदान था। शायद अग्निवीर योजना से नाराज होकर उनमें से कुछ भाजपा से दूरी बना लें, लेकिन ऐसे युवाओं की संख्या इतनी नहीं होगी कि इससे भाजपा की चुनावी सम्भावनाओं को पलीता लग सके। युवाओं का एक वर्ग ऐसा भी है, जो इस योजना के समर्थन में है।
अतीत की सरकारें महंगाई और बेरोजगारी के मुद्दे पर चुनाव हारती रही हैं। ऐसे मसलों पर मतदाताओं ने गुस्सा जाहिर करने में कभी कोताही नहीं बरती है। लेकिन बीते कुछ सालों से मतदाताओं के रवैए में बदलाव देखा जा रहा है। अब इन चीजों से उसके वोटिंग-पैटर्न पर ज्यादा असर नहीं पड़ता।
अतीत में भ्रष्टाचार तभी अहम मुद्दा बना है, जब बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार हुआ और मतदाताओं को महसूस होने लगा कि अब बात राष्ट्रीय सुरक्षा से समझौते तक चली गई है। 1989 और 2014 में यही हुआ था।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
सोर्स;- ‘’दैनिकभास्कर’’