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सिमलिपाल के जंगलों में लगी आग की वजह क्या है

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Mar 11, 2021
सिमलिपाल के जंगलों में लगी आग की वजह क्या है

उत्तर ओडिशा के मयूरभंज ज़िले में फैले सिमिलिपाल जैव मण्डल (बाइयोसफ़ेयर रिज़र्व) में पिछले एक पखवाड़े से लगी आग के कारण भारी तबाही हुई है.

पर्यावरण की दृष्टि से बेहद संवेदनशील मयूरभंज ज़िले में 5,569 वर्ग किलोमीटर इलाक़े में फैला सिमिलिपाल एशिया का दूसरा सबसे बड़ा जैव मण्डल है. सिमिलिपाल राष्ट्रीय उद्यान (नेशनल पार्क) और टाइगर रिज़र्व इस जैव मण्डल के हिस्सा हैं. केवल टाइगर रिज़र्व 2750 वर्ग किलोमीटर इलाक़े में फैला हुआ है.

चिंता का विषय यह है कि सभी कोशिशों के बावजूद अभी तक आग पर नियंत्रण नहीं पाया जा सका है.

आग बुझाने के काम में 1,000 से भी अधिक वन और अग्निशमन कर्मचारी लगे हुए हैं. लेकिन आग बुझने के बजाय नए इलाक़ों में फैल रही है और अब तेज़ी के साथ सबसे संवेदनशील ‘कोर एरिया’ की तरफ़ बढ़ रही है.

ताज़ा सैटेलाइट चित्र के अनुसार इस विशाल जंगल के क़रीब सौ स्थानों में आग अभी भी तबाही मचा रही है. सैकड़ों पेड़ (जिनमें कई औषधीय पेड़ हैं) और ऑर्किड आग की चपेट में आकर नष्ट होने और भारी संख्या में जीव जन्तु के मारे जाने की ख़बर है.

बीबीसी के साथ बातचीत में ओडिशा के मुख्य वन संरक्षक (पीसीसीएफ) शशि पॉल ने कहा, “फ़िलहाल हमारी पहली प्राथमिकता आग बुझाने में है. उसके बाद ही हम आग से हुई क्षति का आकलन कर सकते हैं. वैसे इस संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है कि कुछ छोटे जीव जन्तु मारे गए होंगे. लेकिन हमारे पास अभी तक ऐसी कोई रिपोर्ट नहीं है.”

जानकार क्या कहते हैं?
सिमिलिपाल में ख़रगोश, माउस डियर, पैंगोलिन सहित भारी संख्या में अन्य वन्य प्राणी और कई सरीसृप पाए जाते हैं.

वैसे सिमिलिपाल में आग कोई नई बात नहीं है. लगभग हर साल यहाँ आग लगती है. लेकिन जानकारों का मानना है कि इस साल आग का जो प्रकोप है, वह पहले कभी नहीं देखा गया.

पिछले 28 सालों से सिमिलिपाल की सुरक्षा के लिए काम कर रहे जानेमाने पर्यावरणविद भानुमित्र आचार्य कहते हैं, “आग का यह प्रकोप मैंने पहले कभी नहीं देखा. बहुत ही डरावनी स्थिति है क्योंकि आग अब कोर एरिया को अपनी चपेट में ले रही है. अब तो इन्द्र भगवान ही सिमिलिपाल को बचा सकते हैं”. उनके कहने का आशय है कि बारिश होने पर ही आग बुझेगी.

आचार्य का कहना है कि अगर आग लगते ही जंगल विभाग ने आवश्यक क़दम उठाए होते तो आज यह स्थिति नहीं होती.

वे कहते हैं, “सरकार ने घाव का तत्काल इलाज करने के बजाय उसके कैंसर का रूप धारण करने का इंतज़ार किया और तब जाकर हरकत में आई. लेकिन तब तक काफ़ी देर हो चुकी थी.”

आचार्य ही नहीं, कई अन्य पर्यावरणविदों ने भी यह आरोप लगाया है कि आग लगने के एक हफ़्ते तक जंगल विभाग सो रहा था.

मयूरभंज राज परिवार की वारिस राजकुमारी अक्षिता मंजरी भंजदेव ने पहली मार्च को आग के बारे में ट्वीट किया था.

इस ट्वीट ने केन्द्रीय मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान, केन्द्रीय पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर और मुख्यमंत्री नवीन पटनायक का ध्यान आकर्षित किया तब जाकर विभाग ने इस हादसे को संज्ञान में लिया.

मुख्य वन संरक्षक क्या कहते हैं?
ओडिशा के मुख्य वन संरक्षक (पीसीसीएफ) शशि पॉल इस आरोप का खंडन करते हुए कहते हैं, “सिमिलिपाल में आग का सीज़न फ़रवरी 15 से शुरू होता है. हर साल की तरह इस साल भी हमने पूरी तैयारी की थी. नियमित स्टाफ़ के अलावा क़रीब 250 वन कर्मचारियों, 40 गाड़ियों और ‘फ़ायर लाइन’ (आग को फैलने से रोकने के लिए पत्तों के बीच लकीर खींचना) बनाने के लिए 240 ब्लोअर्स नियोजित किये गए थे और स्थानीय आदिवासियों के साथ क़रीब 300 जागरूकता मीटिंग की गई थी.”

वे कहते हैं, “सच तो यह है कि इस साल सिमिलिपाल में आग की पहली घटना सात फ़रवरी को हुई और तभी से हमारे लोग आग बुझाने के काम में जुटे हुए हैं. इसलिए यह कहना सरासर ग़लत है कि जंगल विभाग सो रहा था.”

आग नियंत्रित करने का दावा… फिर क्या हुआ?
पॉल चाहे कुछ भी कहें. लेकिन यह ज़रूर सच है कि प्रधान की ट्वीट के एक दिन बाद तीन मार्च को ही मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने स्थिति का जायज़ा लेने के लिए आला अधिकारियों की उच्च स्तरीय बैठक बुलाई.

बैठक के बाद सरकार की ओर से कहा गया कि आग अब नियंत्रण में है.

लेकिन अगले पाँच दिनों में यह स्पष्ट हो गया है कि सरकार का यह दावा सच्चाई से काफ़ी दूर है.

सोमवार को सरकार ने सिमिलिपाल समेत राज्य के अन्य जंगलों में लगी आग पर क़ाबू पाने के लिए और इस समस्या का स्थायी समाधान ढूंढने के लिए पूर्व पीसीसीएफ़ संदीप त्रिपाठी की अध्यक्षता में एक नौ सदस्यीय ‘टास्क फ़ोर्स’ बनाने की घोषणा की.

साथ ही आग बुझाने के काम में तेज़ी लाने के लिए ओडिशा राज्य त्वरित कार्यवाही बल (ओडराफ़) के कर्मचारियों को नियोजित करने का भी निर्णय लिया.
क्यों लगती है आग?
हर साल सिमिलिपाल में आग लगने के कई कारण हैं. जंगल विभाग के अनुसार इसका एक मुख्य कारण यह है कि महुआ चुनने के लिए स्थानीय आदिवासी पत्तों में आग लगा देते हैं.

पॉल की मानें तो “कई बार लोग जंगल विभाग के स्थानीय कर्मचारियों से किसी कारण से नाराज़ होकर उन्हें मज़ा चखाने के लिए भी आग लगा देते हैं.”

लेकिन अक्षिता भंजदेव, जिन्होंने सिमिलिपाल में लगी आग के बारे में बाहरी दुनिया को बताया, आग के लिए आदिवासियों को ज़िम्मेदार नहीं ठहरातीं.

बीबीसी के साथ फ़ोन पर बातचीत के दौरान उन्होंने कहा, “यह कहना ग़लत है कि आग के लिए आदिवासी ही ज़िम्मेदार हैं. कहा जा रहा है कि महुआ के लिए वे आग लगाते हैं. लेकिन ऐसा होता तो आग केवल जंगल के इर्दगिर्द गाँवों में ही लगती, ‘कोर एरिया’ में नहीं.”

वे कहती हैं, “क्या केवल आग लगाने के लिए वे पहाड़ की चोटियों पर जाएंगे? ऐसा करने से उन्हें क्या मिलेगा? सच्चाई यह है कि चोटी पर आग अक्सर शिकारी (‘पोचर्स’) लगाते हैं ताकि जंगली जानवर नीचे आएं और उनका शिकार किया जाए. हाल ही में सिमिलिपाल में 50 किलो से भी अधिक वज़न के हाथी के दांत बरामद किए गए, जो इस बात का प्रमाण है कि यहाँ शिकारियों और तस्करों को खुली छूट मिली हुई है.”

अक्षिता का मानना है कि जैव मण्डल से स्थानीय आदिवासियों को खदेड़ने के बाद उनकी रोज़ी, रोटी के लिए कोई वैकल्पिक व्यवस्था न किया जाना और उन्हें विश्वास में न लिया जाना आग का प्रमुख कारण है.

वे कहती हैं, “समस्या के स्थायी हल के लिए स्थानीय आदिवासियों, स्वयंसेवी संगठनों और जंगल विभाग के बीच समन्वय ज़रूरी है.”

लेकिन जंगल विभाग के रवैये को देखते हुए फ़िलहाल यह संभव नहीं लगता.

BBC

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