• March 28, 2024 1:51 pm

NEET दाखिले में EWS आरक्षण को लेकर पूरा विवाद क्या है?

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23 अक्टूबर 2021 | आर्थिक रूप से कमज़ोर (ईडब्ल्यूएस) वर्ग को परिभाषित करने के केंद्र सरकार के तरीक़े पर सुप्रीम कोर्ट ने सवाल खड़ा किया है.सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा है कि ईडब्ल्यूएस आरक्षण के लिए पात्रता निर्धारित करने के लिए ‘आठ लाख रुपए की सालाना आय’ को आधार क्यों और कैसे बनाया गया है? इसके बाद से ईडब्ल्यूएस आरक्षण का मुद्दा एक बार फिर सुर्ख़ियों में आ गया है. पूरा मामला नेशनल एलिजिबिलिटी एंट्रेंस टेस्ट (नीट) में दाखिले को लेकर केंद्र सरकार की ओर से जुलाई में जारी अधिसूचना से जुड़ा है. केंद्र सरकार ने इस साल 29 जुलाई को नीट परीक्षा में आरक्षण को लेकर अहम फ़ैसला किया. इस फ़ैसले में कहा गया है कि अंडर ग्रैजुएट और पोस्ट ग्रैजुएट के सभी मेडिकल और डेंटल कॉलेजों में अखिल भारतीय कोटा योजना के तहत ओबीसी वर्ग के 27% और ईडब्ल्यूएस वर्ग के 10% छात्रों को आरक्षण मिलेगा.

क्या है पूरा मामला?

भारत के सभी राज्यों के मेडिकल संस्थानों में साल 1986 में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर ‘ऑल इंडिया कोटा’ (AIQ) लागू किया गया.ये ऑल इंडिया कोटा राज्य के अधीन आने वाले मेडिकल कॉलेज में सीटों का वो हिस्सा है, जो राज्य के कॉलेज, केंद्र सरकार को देते हैं. 2007 तक इसमें आरक्षण का कोई प्रावधान नहीं था. फिर सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्देश में कहा था कि सभी राज्य अपने मेडिकल कॉलेज की 15 फ़ीसदी अंडर ग्रैजुएट सीटें और 50 फ़ीसदी पोस्ट ग्रैजुएट सीटें केंद्र सरकार को देंगी. इसमें पहले एससी और एसटी का आरक्षण लागू किया गया. उसके बाद से ही इसमें ओबीसी आरक्षण को लेकर मुहिम शुरू हुई. 2021 में केंद्र सरकार ने इस माँग को स्वीकार किया और 10 प्रतिशत ईडब्ल्यूएस आरक्षण भी जोड़ दिया. केंद्र सरकार के मुताबिक़ ईडब्ल्यूएस के तहत आरक्षण का लाभ वही छात्र उठा सकते हैं, जिनके परिवार की सालाना आय 8 लाख रुपए से कम है. केंद्र सरकार का तर्क है कि नीट में आरक्षण के फ़ैसले से एमबीबीएस में लगभग 1,500 और पोस्ट ग्रैजुएट में 2,500 ओबीसी छात्रों को हर साल इसका लाभ मिलेगा. वहीं ईडब्ल्यूएस वर्ग के लगभग 550 छात्रों को एमबीबीएस में जबकि 1,000 छात्रों को पोस्ट ग्रैजुएट की पढ़ाई में लाभ होगा.लेकिन फ़ैसले के तुरंत बाद नीट पोस्ट ग्रैजुएट एग्ज़ाम में बैठने की तैयारी करने वाले तकरीबन 45 छात्र, दो समूहों में सुप्रीम कोर्ट पहुँचे और सरकार के इस फ़ैसले को पीजी एग्ज़ाम में इस साल लागू करने से रोकने की माँग की.इनमें से एक गुट के याचिकाकर्ता छात्रों की वकील तन्वी दुबे के मुताबिक़ कई आधार हैं, जिन पर केंद्र के फ़ैसले को चुनौती दी गई है. वो कहती हैं, “ईडब्ल्यूएस और ओबीसी वर्ग के ताज़ा आरक्षण के बाद कुल आरक्षण 50 फ़ीसदी से ज़्यादा हो जाएगा, जो सुप्रीम कोर्ट के पुराने फ़ैसले के ख़िलाफ़ है. ईडब्ल्यूएस की पात्रता किस आधार पर निर्धारित की गई है, इसकी जानकारी सार्वजनिक नहीं है. पोस्ट ग्रैजुएशन में कितनी सीटें बढ़ाई गई हैं, इसके बारे में छात्रों के साथ जानकारी साझा नहीं की गई है. साथ ही ईडब्ल्यूएस आरक्षण पर किए गए संविधान संशोधन पर भी सुनवाई संवैधानिक पीठ में पहले से चल रही है.”

अब कोर्ट में सभी याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई चल रही है.

छात्रों की याचिका पर पिछली सुनवाई के दौरान (7 अक्तूबर) को भी कोर्ट ने ईडब्ल्यूएस के पैमाने को लेकर सवाल उठाए थे. लेकिन समय रहते केंद्र सरकार की तरफ़ से जवाब दाखिल नहीं किए जाने पर जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस बीवी नागरत्ना की पीठ ने केंद्र सरकार को जवाब देने के लिए कहा है.इस साल मेडिकल कॉलेज में दाखिले के लिए नीट परीक्षा हो चुकी है और परिणाम की घोषणा हो गई है लेकिन पोस्ट ग्रैजुएट काउंसलिंग की तारीख़ की घोषणा नहीं हुई है, क्योंकि मामला कोर्ट में है.

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से पूछा सवाल

गुरुवार को मामले की सुनवाई के दौरान तीन जजों की बेंच ने केंद्र से पूछा, “क्या केंद्र सरकार ने ईडब्ल्यूएस निर्धारित करने के लिए मानदंड पर पहुँचने से पहले कोई अभ्यास किया? अगर हाँ, तो वो रिपोर्ट रिकॉर्ड में रखें. क्या इस सीमा को तय करते समय ग्रामीण और शहरी क्षेत्र के अंतर को ध्यान में रखा गया है?”

हालाँकि सुनवाई के दौरान जस्टिस चंद्रचूड़ ने ये भी कहा कि ईडब्ल्यूएस मानदंड तय करना केंद्र सरकार का काम है, ये नीतिगत फ़ैसला है लेकिन इसकी संवैधानिकता निर्धारित करने के लिए इसके पीछे के वजहें जानने का कोर्ट को हक़ है.

केंद्र की तरफ़ से एडिशनल सॉलिसिटर जनरल केएम नटराज ने कोर्ट को आश्वस्त किया कि दो तीन दिन के अंदर केंद्र सरकार अपना जवाब दाखिल कर देगी.

ईडब्लूएस की पात्रता

संविधान के 103वें संशोधन के तहत केंद्र सरकार ने जनवरी 2019 सरकारी नौकरी और शिक्षण संस्थानों में आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्गों (ईडब्ल्यूएस) के लिए 10 फ़ीसदी आरक्षण का प्रावधान किया था.

इस संविधान संशोधन को भी कोर्ट में चुनौती दी गई है और पूरा मामला संवैधानिक पीठ के पास है, जिस पर सुनवाई चल रही है और फ़ैसला नहीं आया है.

इस बीच ईडब्ल्यूएस के लिए पात्रता के लिए केंद्र सरकार ने जो अधिसूचना जारी की थी, उसमें कहा गया था जिस परिवार की सालाना आय 8 लाख से कम है वो इस आरक्षण का लाभ उठा सकते हैं.

परिवार में वो व्यक्ति शामिल है, जो इस आरक्षण का लाभ लेना चाहता है, उसके माता-पिता, 18 साल से कम उम्र के उसके भाई-बहन, उसकी पत्नी और उसके बच्चे जो 18 साल से कम उम्र के हों.

साथ ही कुछ अपवाद भी जोड़े गए हैं. अगर परिवार के पास

• पाँच एकड़ की कृषि ज़मीन या उससे ज़्यादा हो

• 1000 स्क्वायर फीट या उससे बड़ा फ़्लैट हो

• 100 स्क्वायर यार्ड या उससे बड़ा प्लॉट अधिसूचित नगरपालिका इलाके में हो

• 200 स्क्वायर यार्ड या उससे बड़ा प्लॉट ग़ैर अधिसूचित नगरपालिका इलाक़े में हो.

तो वो व्यक्ति ईडब्ल्यूएस कोटे का तहत आरक्षण का लाभ नहीं उठा सकता.

केंद्र सरकार इस पात्रता तक कैसे पहुँची?

ये तो हुई ईडब्ल्यूएस के लिए पात्रता तय करने की बात. लेकिन सुप्रीम कोर्ट का सवाल ईडब्ल्यूएस की इसी परिभाषा को लेकर है. कोर्ट, केंद्र सरकार से जानना चाहती है कि इस परिभाषा तक सरकार कैसे पहुँची?

इसका जवाब सामाजिक न्याय मंत्री ने संसद में इसी साल अगस्त में दिया था.

यूपीए सरकार ने साल 2006 में आर्थिक रूप से पिछड़ों पर एक कमिशन का गठन किया था. इसके अध्यक्ष रिटायर्ड मेजर जनरल एसआर सिन्‍हो थे. 2010 में इस कमिशन ने अपनी रिपोर्ट सौंपी. रिपोर्ट के आधार पर सरकार सलाह-मशविरा करके ईडब्ल्यूएस की परिभाषा पर पहुँची है.

मेडिकल में सीटों की संख्या

नीट में ईडब्ल्यूएस और ओबीसी आरक्षण के फ़ैसले के वक़्त केंद्र सरकार ने इस बात पर ख़ास ज़ोर दिया था कि पिछले सात सालों में मेडिकल में सीटों की संख्या काफ़ी बढ़ाई गई है. 2014 से 2020 के बीच एमबीबीएस सीटों की संख्या 56 फ़ीसदी बढ़ी है. वहीं इसी दौरान पीजी कोर्स में सीटों की संख्या 80 फ़ीसदी तक बढ़ी है. केंद्र सरकार का दावा है कि पिछले सात सालों में तकरीबन 179 मेडिकल कॉलेज जोड़े गए हैं. आज की तारीख़ में भारत में 558 मेडिकल कॉलेज हैं, जिनमें सरकारी 289 और प्राइवेट 269 हैं. याचिकाकर्ता में से एक छात्र डॉ. नील का कहना है, “हम आरक्षण के ख़िलाफ़ नहीं है. सरकार ने प्रेस रिलीज़ में सीट बढ़ाने की बात तो की है, लेकिन छात्रों को किस कॉलेज में कितनी सीटें बढ़ाई गई हैं इसकी जानकारी नहीं दी गई है. परीक्षा की प्रक्रिया की शुरुआत में इसकी घोषणा नहीं की गई थी, जिससे आरक्षण के दायरे में नहीं आने वाले छात्रों को काफ़ी नुक़सान होगा. अगर कोरोना महामारी नहीं होती, तो इस बार की नीट परीक्षा सरकार के फ़ैसले के पहले हो गई होती. इसलिए इस बार के दाखिले में इस आरक्षण को लागू नहीं किया जाना चाहिए.” इस याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में अगली सुनवाई 28 अक्तूबर को होनी है. इस साल नीट की परीक्षा हो चुकी है और नतीजे भी घोषित किए जा चुके हैं. पोस्ट ग्रैजुएट कोर्स में दाखिले के लिए काउंसलिंग की तारीख़ का एलान अभी तक नहीं हुआ है. छात्रों को उम्मीद है कि अगली तारीख़ में इस पर कोर्ट की ओर से कोई फ़ैसला आएगा.

Source :- बीबीसी न्यूज़ हिंदी


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