• July 1, 2024 11:44 am

जब अब्दुल कलाम बने मेजर जनरल पृथ्वीराज… 1998 परमाणु परीक्षण में इस तरह भारत ने दिया ‘सुपरपावर’ को चकमा

11 मई 1998 को राजस्थान के पोखरण में अचानक तेज धमाके के साथ आसमान पर धूल के गुबार छा गए थे. कारण था भारत का परमाणु परीक्षण, जिसने पूरी दुनिया को चौंका दिया था. अमेरिका तक को इसकी भनक नहीं लगी थी. पोखरण में भारत ने एक के बाद एक तीन परमाणु परीक्षण किए थे. इसके बाद से 11 मई को देश में राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी दिवस (नेशनल टेक्नोलॉजी डे) मनाया जाने लगा.

भारत ने बड़ी सतर्कता से परमाणु परीक्षण को अंजाम दिया था. इसे नाम दिया गया ऑपरेशन शक्ति. आइए जानते हैं कि परमाणु परीक्षण के लिए पोखरण को ही क्यों चुना गया और पूरे ऑपरेशन को अंजाम देते समय अमेरिका को किस तरह से चकमा दिया गया.

ऑपरेशन शक्ति के तहत लगातार तीन धमाके से दहला था पोखरण

भारत ने अपने परमाणु परीक्षण के लिए खेतोलाई गांव के पास पोखरण फील्ड फायरिंग रेंज को चुना था. पूर्व राष्ट्रपति और महान वैज्ञानिक मिसाइल मैन एपीजे अब्दुल कलाम इस पूरे ऑपरेशन के अगुवा थे. 11 मई को तय समय पर खेतोलाई से करीब पांच किमी दूर स्थित फायरिंग रेंज में एक के बाद एक तीन धमाके हुए तो पूरा इलाका दहल उठा. आसमान की ओर बादल का गुबार दिखने लगा और तब पूरे पोखरण के साथ दुनिया को पता चला कि अब भारत परमाणु ताकत वाले देशों की सूची में शामिल हो चुका है. इसके बाद भारत ने 13 मई को भी परमाणु परीक्षण किया था.

अमेरिका न रोकता तो भारत पहले ही कर लेता परीक्षण

यह भारत का दूसरा परमाणु परीक्षण था. इससे पहले 18 मई 1974 को भारत अपना पहला परीक्षण कर चुका था. तब इस ऑपरेशन को नाम दिया गया था स्माइलिंग बुद्धा. इसके साथ ही भारत दुनिया का छठवां देश बन गया था जिसके पास परमाणु बम बनाने की क्षमता थी. हालांकि, इसके लिए और परीक्षणों की जरूरत थी. इसको देखते हुए भारत ने 1995 में एक बार फिर से परीक्षण की योजना बनाई. तब भारत पर सैटेलाइट के जरिए नजर रखने वाले अमेरिका को इसका पता चल गया और उसने दबाव बनाकर परीक्षण नहीं करने दिया.

 

सैटेलाइट और CIA को चकमा देने के लिए बनी थी गुप्त योजना

ऐसे में भारत ने दोबारा दूसरे परीक्षण की योजना बनाई तो सबकुछ पूरी तरह से गुप्त रखा गया. अमेरिका के सैटेलाइट के साथ ही उसकी खुफिया एजेंसी सीआईए को भी चकमा देने की तैयारी की गई. वैज्ञानिकों ने फौजियों का वेष धारण किया, जिससे सैटेलाइट के जरिए उनको पहचाना न जा सके. सभी वैज्ञानिकों को कोड नाम दिया गया. मिसाइल मैन अब्दुल कलाम को मेजर जनरल पृथ्वीराज के रूप में इस मिशन का अगुवा नियुक्त किया गया. फिर 11 मई को दोपहर 3:45 बजे भारत ने अपना मिशन पूरा कर लिया और परमाणु प्रौद्योगिकी में दुनिया के दादा देशों की कतार में खड़ा हो गया.

 

आबादी से दूर पोखरण में रेत के बीच बनाए गए थे कुएं

पोखरण को परमाणु परीक्षण के लिए इसलिए चुना गया था, क्योंकि वहां से आबादी बहुत दूर है. दूसरे रेत के बीच परमाणु परीक्षण के लिए कुएं बनाने से रेडिएशन आदि का खतरा भी बेहद कम था. जैसलमेर से पोखरण की दूरी 110 किलोमीटर है, जो जैसलमेर-जोधपुर मार्ग पर महज एक कस्बा है. इसीलिए वहां रेगिस्तान की रेत में बड़े-बड़े कुएं खोदकर उनमें परमाणु बम रखे गए और इन कुओं पर रेत के पहाड़ खड़े कर दिए गए थे. ऊपर से उन्हें ऐसे ढका गया था, जिससे लगे कि सैनिक साज-ओ-सामान है.

 

अटल बिहारी वाजपेयी ने मौके पर जाकर किया था ऐलान

इसीलिए भारत के परमाणु परीक्षण के बाद अमेरिकी एजेंसी सीआईए ने स्वीकार किया था कि भारत उसको चकमा देने में सफल रहा. वास्तव में अमेरिका की खुफिया एजेंसी सीआईए पहले परमाणु परीक्षण के बाद से भारत की हर हरकत पर नजर रख रही थी. अरबों डॉलर खर्च कर चार सैटेलाइट केवल भारत की गतिविधियों पर नजर रखने के लिए तैनात किए थे. फिर भी ऑपरेशन शक्ति को पकड़ नहीं पाया और भारत ने दुनिया भर में अपनी शक्ति दिखा दी. इसके बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी खुद परीक्षण वाले स्थान पर गए और ऐलान किया कि अब वह परमाणु संपन्न देश है.

 

 

 

 

 

 

Source tv9 bharatvarsh

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