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भारत और चीन नेपाल के लगातार दौरे क्यों कर रहे हैं

ByPrompt Times

Nov 27, 2020
भारत और चीन नेपाल के लगातार दौरे क्यों कर रहे हैं

भारत और चीन के लिए नेपाल एक नए युद्धक्षेत्र में तब्दील हो गया है. चीन के रक्षा मंत्री वे फंगख नेपाल दौरे पर जाने वाले हैं. वहीं, भारत के विदेश सचिव हर्ष वर्धन श्रृंगला नेपाल के दौरे पर हैं.

श्रृंगला ने दिन में अपने समकक्ष भरतराज पौड्याल से बातचीत की जबकि शाम को उन्होंने नेपाली प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली से काठमांडु में उनके निवास स्थान पर मुलाक़ात की.

काठमांडु में भारतीय दूतावास ने श्रृंगला और पौड्याल के बीच मुलाक़ात को बेहद उपयोगी बताते हुए कहा कि दोनों पक्षों ने द्विपक्षीय सहयोग का जायज़ा लिया और आपसी हित के मुद्दों पर चर्चा की.

भारतीय दूतावास ने श्रृंगला का एक वीडियो भी ट्वीट किया जिसमें वो नेपाली भाषा में बैठक के बारे में बता रहे हैं.

विदेश नीति के जानकारों का कहना है कि भारत के शीर्ष राजनयिक का नेपाल जाना महत्वपूर्ण है क्योंकि दोनों देश विवादित इलाक़ों को लेकर तनाव के बाद आपसी रिश्तों को सामान्य करने की कोशिश कर रहे हैं.

चीन के रक्षा मंत्री की 29 नवंबर को होने वाली नेपाल यात्रा दिखाती है कि चीन लगातार नेपाल को अपने साथ रखने की कोशिश कर रहा है.

वहीं, नेपाल से संबंधों में सुधार के लिए भारत ने अपनी ख़ुफ़िया एजेंसी ‘रॉ’ के प्रमुख सामंत कुमार गोयल और सेना प्रमुख मनोज मुकुंद नरवणे को नेपाल भेजा था.

क्या सीमा विवाद होगा मुख्य मुद्दा

भारत और नेपाल दोनों ने इस हफ़्ते बयान जारी किया है कि भारतीय विदेश सचिव की यात्रा दो मैत्रीपूर्ण पड़ोसियों के बीच उच्च स्तरीय यात्राओं के नियमित आदान-प्रदान का हिस्सा है जिसमें कई द्विपक्षीय मसलों पर चर्चा की जाएगी.

जानकारों का कहना है कि भारत के शीर्ष राजनयिक की नेपाल यात्रा एक सकारात्मक क़दम है जो सीमा विवाद के बाद भारत और नेपाल के संबंधों को सामान्य करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है.

नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री सुशील कोइराला के पूर्व विदेश नीति सलाहकार दिनेश भट्टाराई कहते हैं कि नेपाली अधिकारियों को सीमा विवाद के जल्द निपटारे के लिए भारत से आग्रह करना चाहिए.

भट्टाराई ने बीबीसी नेपाली को बताया, ”ऐसा लगता है कि भारत के विदेश सचिव का ये दौरा सामान्य संबंधों को लेकर है जिसमें महत्वपूर्ण मुद्दों पर ठीक से चर्चा होने की संभावना बहुत कम है. मैं सीमा संबंधी मुद्दे को उठाने के लिए भारत से उम्मीद नहीं करता लेकिन मुझे लगता है कि नेपाल को इसे उठाना चाहिए. मेरे ख़याल से दोनों देशों की सरकारों को आगे बढ़ने के लिए अतिरिक्त उच्च स्तरीय बातचीत करनी चाहिए.”

”नेपाल की संसद में कालापानी, लिपुलेख और लिम्पियाधुरा को अपने इलाक़े में दिखाने वाले नक्शे को स्वीकृति देने और संविधान में संशोधन करने को लेकर सर्वसम्मति थी. मेरा मानना है कि अब भी इसे लेकर राष्ट्रीय सहमति है. लेकिन, सत्ताधारी पार्टी के शीर्ष नेताओं के बीच कई मुद्दों पर बढ़ रहे मतभेदों से हो सकता है कि अच्छा संदेश ना जाए.”

हालांकि, नेपाल की सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी के अंतरराष्ट्रीय संबंध विभाग के सदस्य विष्णु रिजाल इससे सहमति नहीं रखते हैं.

वह कहते हैं, ”पार्टी में हो रहे वाद-विवाद हमारे आंतरिक मुद्दे हैं. हमारी पार्टी ने प्रधानमंत्री को भारत के क़ब्ज़े वाले क्षेत्रों सहित नया नक्शा लाने के निर्देश दिए थे. हमारी पार्टी को गर्व है कि इस मुद्दे पर राष्ट्रीय सहमति थी. मुझे लगता है कि जब दोनों तरफ़ के अधिकारी बातचीत करेंगे तो वो द्विपक्षीय संबंधों में रुकावट पैदा करने वाले मसलों को नज़रअंदाज़ नहीं कर पाएंगे. इस मसले पर चर्चा होनी चाहिए.”

बातचीत की शुरुआत

नेपाल आधारित थिंकटैंक नेपाल इंस्टीट्यूट फ़ॉर इंटरनेशनल कॉरपोरेशन एंड एंगेजमेंट के रिसर्च डायरेक्टर प्रमोद जायसवाल कहते हैं कि भारत और नेपाल के बीच बातचीत शुरू होना एक सकारात्मक क़दम है.

वह कहते हैं, ”कालापानी को लेकर किए जा रहे दावे से जुड़े विवाद को तुरंत सुलझाना मुश्किल हो सकता है. हालांकि, भारत नेपाल को सुझाव दे सकता है कि सीमा से संबंधित अन्य मुद्दों को मौजूदा प्रक्रिया द्वारा सुलझाया जा सकता है.”

”ये इलाक़े भारत के नियंत्रण में हैं और ये हमारी समस्या है. अगर हम इसे उठाते हैं तो भारत को प्रतिक्रिया देनी होगी. लेकिन, अगर नेपाल ऐसा नहीं करता तो भारत क्यों ऐसी जटिल समस्या पर बातचीत करना चाहेगा.”

नेपाल के अख़बारों का कहना है कि नेपाल हर्ष वर्धन श्रृंगला की यात्रा के दौरान संशोधित नक्शे और सीमा निर्धारण के मुद्दे को उठाना चाहता है. भारत ये दावा करते हुए नेपाल के नक्शे को ख़ारिज करता आया है कि कालापानी, लिपुलेख और लिम्पियाधुरा के इलाक़े को शामिल करने का फ़ैसला ‘अनुचित मानचित्रण दावा’ है.

स्थानीय मीडिया ने ये भी सुझाव दिया है कि नेपाल द्विपक्षीय संबंधों को फिर से स्थापित करने के लिए दोनों देशों द्वारा बनाए गए विशिष्ट व्यक्तियों के समूह की रिपोर्ट पर भारत की स्थिति जानने की कोशिश करेगा.

साल 2016 में बने इस समूह ने साल 2018 में अपनी रिपोर्ट दी थी. इस रिपोर्ट में भारत-नेपाल संबंधों का एक नया ख़ाका बनाने की सिफ़ारिश की गई थी.

चीनी रक्षा मंत्री की यात्रा

नेपाल और चीन दोनों ने मंगलवार शाम तक वे फंगख की यात्रा की आधिकारिक घोषणा नहीं की थी.

लेकिन, सुरक्षा सूत्रों ने बीबीसी को बताया कि चीन के सबसे शक्तिशाली सेंट्रल मिलिट्री कमिशन के चौथे शीर्ष अधिकारी रविवार को नेपाल में होंगे.

”वे फंगख का दर्जा उप प्रधानमंत्री के बराबर है. इसलिए हम उसी तरह के प्रोटोकॉल और सुरक्षा की तैयार कर रहे हैं. चीन के रक्षा मंत्री सुबह नेपाल पहुंचेंगे और शाम को वहां से रवाना हो जाएंगे.”

वे फंगख नेपाली पीएम केपी शर्मा ओली से मुलाक़ात करेंगे. ओली नेपाल के रक्षा मंत्रालय के प्रमुख भी हैं. नेपाल के सेना प्रमुख पुर्ना चंद्र थापा भी उनसे मुलाक़ात करेंगे.

दोनों देशों की सेनाओं ने अप्रैल 2017 में संयुक्त सैन्य अभ्यास की शुरुआत की थी. इससे एक महीने पहले चीन के तत्कालीन रक्षा मंत्री चांग वानच्विएन ने नेपाल की यात्रा की थी.

नेपाली रक्षा मंत्रालय के अधिकारियों के अनुसार, चीन ने नेपाली रक्षा मंत्रालय को 2018 और 2019 में मानवीय और आपदा राहत उपकरण के लिए 300 मिलियन आरएमबी (लगभग तीन अरब 37 करोड़ रुपये) की सहायता प्रदान की थी.

चीनी रक्षा मंत्री के दौरे पर सवाल

नेपाल में भारत के पूर्व राजदूत रनजीत रे ने चीनी रक्षा मंत्री की नेपाल यात्रा के समय को लेकर सवाल उठाए हैं क्योंकि ये दौरा उस समय हो रहा है जब सत्ताधारी पार्टी के अंदर गंभीर मतभेदों की स्थिति है और शीर्ष भारतीय राजनयिक नेपाल यात्रा से लौट रहे हैं.

इस हफ़्ते एक वेबिनार में बोलते हुए उन्होंने कहा, ”मुझे ये नेपाल की ओर से असंवेदनशीलता लगती है, ख़ासतौर से ऐसे समय पर जब भारत चीन के रिश्तों में रक्षा और सैन्य स्तर पर तनाव बना हुआ है. चीन के रक्षा मंत्री को बुलाना दिखाता है कि नेपाल भारत की संवेदनाओं की कोई ख़ास परवाह नहीं करता.”

उन्होंने कहा, ”हो सकता है कि वो हमारे सैन्य प्रमुख के साथ चीन के रक्षा मंत्री की यात्रा के ज़रिए रिश्तों में संतुलन बनाना चाहते हों. लेकिन, मुझे ये असामान्य लगता है.”

वहीं दिनेश भट्टाराई कहते हैं कि चीनी रक्षा मंत्री की यात्रा प्रतीकात्मक है.

वह कहते हैं, “कुछ सालों पहले तक, नेपाल से संबंधों पर चीन अक्सर ‘इंडिया फ़र्स्ट (भारत पहले)’ की बात कहता था (नेपाल को सलाह देता था कि जो भी सत्ता में हो, उन्हें भारत के साथ अच्छे संबंध बनाए रखने चाहिए). मुझे लगता है कि अब चीन ने अपनी स्थिति बदल दी है. वे संदेश दे रहे हैं कि चीन अब मुखर है, निष्क्रिय नहीं.”

नेपाल के हितों की रक्षा

नेपाल इंस्टीट्यूट ऑफ़ इंटरनेशनल एंड स्ट्रैटेजिक स्टडीज़ के डायरेक्टर भास्कर कोइराला इस विचार से सहमति जताते हैं.

वह कहते हैं कि भारत और चीन दोनों नेपाल को अपने प्रभाव में रखने की कोशिश कर रहे हैं और नेपाल दोनों के बीच संतुलन बनाए रखने की बड़ी चुनौती का सामना कर रहा है.

भास्कर कोइराला कहते हैं, ”अगर नेपाल राजनीतिक रूप से अस्थिर रहता है और सरकार निर्माण, विकास और रोज़गार को उच्च प्राथमिकता नहीं देती है तो चीन और भारत दोनों का नेपाल की आंतरिक राजनीति में दख़ल तेज़ी से बढ़ सकता है ताकि देश में उनके प्रभाव को बढ़ाया जा सके.”

”इसका कारण साफ़ है. अगले 10 से 20 सालों में चीन एशिया में संभावित सर्वोच्च शक्ति के रूप में उभरेगा. लेकिन, भारत इस संभावना से सहज नहीं होगा और इसलिए वो अपनी ताक़त और प्रभाव का दावा करना चाहेगा. वहीं, इस बात में कोई संदेह नहीं कि उसे अमेरिका और उसके सहयोगियों से इसमें बढ़ावा भी मिलेगा.”

वह कहते हैं कि अगर नेपाल राजनीतिक स्थिरता और आर्थिक विकास लाने में विफल होता है तो वो अपने राष्ट्रीय हितों को बचाने में नाकाम हो सकता है.

भारत-नेपाल के बीच ‘नक्शे’ की दरार

भास्कर कोइराला का मानना है, ”नेतृत्व के लिए प्रतिस्पर्धा कर रहे एशिया के दो बड़े देशों के साथ हम इस तरह के परिदृश्य की कल्पना कर सकते हैं, जिसमें भारत और चीन नेपाल को एक ऐसे क्षेत्र के तौर पर इस्तेमाल करना चाहते हैं जहां से वो ना सिर्फ़ अपने हितों की रक्षा कर सकें बल्कि एक-दूसरे के लिए विघटनकारी गतिविधियां भी संचालित कर सकें.”

कोइराला कहते हैं कि नेपाल को भारत और चीन के साथ मज़बूत संबंध बनाने चाहिए और ये सुनिश्चित करना चाहिए कि दोनों देश एक-दूसरे के ख़िलाफ़ उसके क्षेत्र का इस्तेमाल ना कर सकें.

पिछले साल नेपाल यात्रा के दौरान, चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने विरोधियों को कड़ी चेतावनी देते हुए कहा था कि चीन को बांटने की कोशिश करने वालों को ‘मसल दिया जाएगा और हड्डियों का चूरमा बना दिया जाएगा.’

नेपाल की भारत से खुली सीमा है और नेपाल में लगभग 20 हज़ार तिब्बती शरणार्थी रहते हैं.

हाल के सालों में नेपाल की सत्ताधारी पार्टी ने चीन की कम्युनिस्ट पार्टी से मेलजोल बढ़ाया है और ‘राष्ट्रपति शी जिनपिंग के विचार’ के बारे में वैचारिक चर्चा भी की है.

नेपाल में चीन की राजूदत हाओ यांकी ने नेपाल की सत्तारूढ़ पार्टी के शीर्ष नेताओं के बीच मेतभेदों को सुलझाने के लिए व्यक्तिगत तौर पर उनसे मुलाक़ात भी की थी.




















BBC

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