इजराइल की सबसे बड़ी दुश्मनी फिलिस्तीन, गाजा को लेकर है. यहीं वो लंबी लड़ाई लड़ता आ रहा है. पिछले साल अक्टूबर में जो जंग शुरू हुई वो भी गाजा को लेकर ही थी. ये ऐसा मुद्दा रहा है जिसपर अरब वर्ल्ड के सुन्नी देश फिलिस्तीन के साथ एकजुट रहे हैं. लेकिन इजराइल किसी सुन्नी देश को अपना दुश्मन नहीं मानता जबकि मिडिल ईस्ट की हर हलचल के लिए वो ईरान को कसूरवार ठहराता है. ऐसा क्यों हुआ, आइये समझते हैं.
इजराइल अपनी स्थापना के बाद से ही तनाव से घिरा रहा है. अरब देशों से कई युद्ध के बाद इजराइल के साथ 1979 में मिस्र ने संबंध स्थापित किए. इसके बाद इजराइल-जॉर्डन ट्रीटी साइन करते हुए 1994 में जॉर्डन ने इजराइल के साथ राजनयिक संबंध बनाए. फिर एक लंबे अरसे के बाद 2020 में 4 और सुन्नी अरब देशों (UAE, बहरीन, मोरक्को और सूडान) ने इजराइल को स्वीकार्यता दी.
इजराइल लगातार अपने रिश्ते सुन्नी देशों से बढ़ा रहा है. पिछले महीने संयुक्त राष्ट्र की जनरल असेंबली में इजराइली पीएम नेतन्याहू ने मध्य पूर्व के दो नक्शे दिखाए, जिसमें एक तरफ ‘द कर्स’ (अभिशाप) से शिया देश ईरान, इराक, सीरिया, यमन और लेबनान को दिखाया गया, तो दूसरे नक्शे में ‘द ब्लेसिंग’ (वरदान) में मध्यपूर्व के सुन्नी देश दिखाए गए.
इस मैप से एक बात साफ हुई है कि नेतन्याहू इजराइल के लिए अब सुन्नी अरब देशों को खतरा नहीं मानते हैं. वहीं इस नक्शे में एक बात और गौर कि गई कि नेतन्याहू ने अपने नक्शें में फिलिस्तीन को नहीं दिखाया था. जिसके बाद लोगों ने ये भी प्रतिक्रियाएं दी कि इजराइल के साथ नॉर्मलाइजेशन डील करने का मतलब फिलिस्तीन का अस्तित्व खत्म करना है.
इतिहास में सुन्नी देशों ने लड़ी फिलिस्तीन की लड़ाई
इजराइल के साथ अरब देशों के युद्धों के इतिहास पर नजर डालें, तो सारी लड़ाइयों में मुख्य भूमिका सुन्नी देशों ने ही निभाई है. यहां तक कि फिलिस्तीनी लोगों के लिए सबसे ज्यादा मदद भी सऊदी अरब और कतर जैसे देशों से की जाती है, जो आज के समय में भी ये जारी है. इजराइल की स्थापना के बाद से ईरान आज तक इजराइल के साथ सीधे लड़ाई में नहीं कूदा है.
1979 की इस्लामी क्रांति के बाद ईरान ने फिलिस्तीन मुद्दे पर खुलकर बोलना शुरू किया और समय के साथ-साथ आक्रामक होता गया. अरब में अमेरिका के बढ़ते प्रभाव के बाद जहां सुन्नी देशों का रवैया इजराइल के लिए नरम हुआ, वहीं ईरान का रुख और सख्त होता गया है.
इस्लामिक क्रांति के बाद 5 नवंबर 1979 को तत्कालीन सुप्रीम लीडर अयातुल्लाह खुमैनी ने अमेरिका को बड़ा शैतान (Great Satan) बताया था और इजराइल को छोटा शैतान. इस्लामिक क्रांति के बाद से ईरान मध्य पूर्व में तनाव की जड़ अमेरिका को मानता है और फिलिस्तीन के अधिकारों के लिए लड़ना खुद की जिम्मेदारी समझता है.
कैसे इजराइल बना ईरान की जान का दुश्मन?
धीरे-धीरे सुन्नी अरब देशों ने फिलिस्तीन के अधिकार के लिए सैन्य लड़ाई छोड़ दी और अपना फोकस डिप्लोमेटिक तरीके से इजराइल के साथ एक फिलिस्तीनी राष्ट्र की स्थापना की तरफ किया.
जहां इजराइल को अरब देशों से राहत मिली, वहीं ईरान की तरफ से खतरा बढ़ने लगा. ईरान ने धीरे-धीरे क्षेत्र की शिया मिलिशिया को मजबूत किया और इजराइल के खिलाफ इसका इस्तेमाल करना शुरू किया. जानकार मानते है गाजा में सुन्नी संगठन हमास को भी ईरान हथियार देता है. साथ ही अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी ईरान इजराइल के लिए सिरदर्द बना हुआ है.
मध्य पूर्व में हाल ही में चल रहे तनाव में ईरान को घसीटने के पीछे इजराइल अमेरिका की मंशा पर कई जानकार कहते हैं कि ईरान को घसीटकर इजराइल और अमेरिका ईरान के परमाणु प्रोग्राम पर सीधे हमला करना चाहते हैं. ताकि भविष्य में ईरान की तरफ से संभावित परमाणु खतरे को खत्म किया जा सके.
ईरान के खतरों से सुन्नी देश भी अछूते नहीं
ईरान अपने शिया इस्लाम के प्रभाव को मध्य पूर्व के साथ-साथ पूरी दुनिया फैलाना चाहता है. कुछ जानकार मानते हैं कि ईरान फिलिस्तीन मुद्दे का इस्तेमाल सुन्नी देशों की जनता में अपनी लोकप्रियता बढ़ाने के लिए कर रहा है. इसमें ईरान काफी हद तक कामयाब भी हुआ है. वहीं अली खामनेई का ये भी मानना है कि फिलिस्तीन में स्थित अल-अक्सा मस्जिद ही सुन्नी-शिया मुसलमानों को एक प्लेटफार्म पर ला सकती है.इजर
SOURCE – PROMPT TIMES