पश्चिम बंगाल के सुंदरबन के घोरमारा द्वीप की जमीन 1970 से अब तक घटकर आधी रह गई है. तब द्वीप 8.51 किलोमीटर के दायरे में फैला हुआ था जो 2012 में 4.43 किलोमीटर तक सिमट गया. द्वीप के लगातार छोटा होते जाने की वजह से यहां के रहवासियों को काफी परेशानी उठानी पड़ रही है. आखिर क्या है द्वीप के लगातार गायब होने की वजह.
साझा करते हैं भारत और बांग्लादेश सीमा
सुंदरबन, जहां घोरमारा द्वीप स्थित है, भारत और बांग्लादेश का साझा द्वीप है, जिसका कुछ हिस्सा भारत तो कुछ बांग्लादेश में लगता है. यहीं दुनिया का सबसे बड़ा सदाबहार वन है. साथ ही ये जगह विलुप्त होने की कगार पर पहुंच चुके शेरों, दुर्लभ किस्म की डॉल्फिनों और बेहद जहरीले सांपों के लिए भी जानी जाती है.
जलस्तर बढ़ने के कारण डूब रहा
बंगाल की खाड़ी से 30 किलोमीटर उत्तर में स्थित घोरमारा द्वीप डेल्टा के उन कई द्वीपों में से है जो समुद्रस्तर के लगातार ऊपर आने के कारण डूबता जा रहा है. वैज्ञानिक प्रदूषण की वजह से हो रहे क्लाइमेट चेंज को इसका दोषी मानते हैं. उनका कहना है कि नदी और तटीय इलाक़ों का कटाव, बाढ़, चक्रवात और हरे-भरे जंगलों के विनाश के कारण समुद्र का जलस्तर इन्हीं कुछ दशकों में तेजी से बढ़ा है. पास ही का एक द्वीप लोहाचारा पूरी तरह से डूब चुका है, जबकि एक पड़ोसी खासीमारा डूबने की कगार पर है.
ऐसे स्थानीय निवासियों को लगा पता
सुंदरबन में ही घोरमारा द्वीप के पास ही सागर द्वीप भी स्थित है. 20वीं सदी में ये दोनों जुड़े हुए थे. धीरे-धीरे अलग हुए लेकिन तब भी ये दूरी इतनी ही थी कि लोग तैरकर कुछ मिनटों में एक से दूसरी जगह पहुंच जाते. अब एक अच्छे तैराक को भी सागर से घोरमारा जाने में 40 मिनट से ज्यादा वक्त लग जाता है. दोनों द्वीपों के बीच इस दूरी की वजह घोरमारा का डूबता जाना है.
क्या कहते हैं जानकार
कोलकाता की जादवपुर यूनिवर्सिटी में लंबे वक्त से समुद्र विज्ञान में शोध कर रही शोधकर्ता सुगाता हाजरा के अनुसार पिछले 30 सालों में घोरमारा द्वीप सिकुड़कर आधा रह गया है. यहां पर समुद्र का जलस्तर वैश्विक जलस्तर से ढाई सौ प्रतिशत ज्यादा है. दुनियाभर में तटीय इलाकों में समुद्र का स्तर 3.23 मिलीमीटर है तो इस द्वीप पर 8 मिलीमीटर है.
लगभग आधी आबादी गरीबी रेखा से नीचे जी रही
चूंकि ये द्वीप लगातार पानी में डूबता जा रहा है तो यहां रहने वाले परिवार भी शरणार्थी की जिंदगी जीने को मजबूर हैं. पश्चिम बंगाल के सरकारी आंकड़ों के अनुसार द्वीप पर रहने वाले ज्यादातर परिवारों की यही हालत है. द्वीप पर रहने वाली 45 प्रतिशत आबादी गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन कर रही है. ऐसे में घरों के लगातार डूबने के कारण उनकी हालत और खराब होती जा रही है.
लगभग 3 हजार लोग रह रहे
घोरमारा में पहले 40 हजार की आबादी हुआ करती थी, जबकि 2001 में जनगणना में ये घटकर केवल 5 हजार रह गई और साल 2016 के आंकड़े कहते हैं कि अब इस द्वीप पर केवल 3 हजार लोग रहते हैं. समुद्र का जलस्तर तेजी से बढ़ने की वजह से यहां के रहने वाले हर दिन सुनामी के हालातों में जीने को मजबूर हैं और यही वजह है कि वे केरल और चेन्नई जैसी जगहों पर पलायन कर रहे हैं.
आर्थिक के अलावा सामाजिक परेशानियां भी
द्वीप के पानी में डूबते जाने की वजह से आर्थिक, मानसिक परेशानियां तो हैं ही, साथ ही सामाजिक हालात भी कुछ खास अच्छे नहीं. घोरमारा के विवाह योग्य लड़कों को लड़कियां नहीं मिल रही हैं क्योंकि कोई भी एक डूबते हुए द्वीप और खत्म होते घर के लड़के को अपनी बेटी नहीं देना चाहता. द्वीप के मूल निवासियों को राहत के लिए सरकारी और गैरसरकारी स्तर पर मुहिम चल रही है, हालांकि अब भी बड़े स्तर पर प्रयास की जरूरत है.