• April 25, 2024 8:49 pm

क्या अफ़ग़ानिस्तान को मिलने वाली अंतरराष्ट्रीय मदद कम हो जाएगी?

ByPrompt Times

Nov 25, 2020

अफ़ग़ानिस्तान के हालात को सुधारने के लिए हर चार साल पर होने वाली बैठक 23-24 नवंबर को जेनेवा में हो रही है. इस बीच ऐसी अपुष्ट ख़बरें आ रही हैं कि इस बार दानकर्ता देश अफ़ग़ानिस्तान को दी जाने वाली मदद में कटौती करने वाले हैं.

इस बैठक में 70 देशों के प्रतिनिधि हिस्सा ले रहे हैं. ‘2020 अफ़ग़ानिस्तान कॉफ्रेंस’ नाम के इस बैठक का आयोजन संयुक्त तौर पर संयुक्त राष्ट्र और अफ़ग़ानिस्तान और फ़िनलैंड की सरकारें कर रही हैं.

कोविड-19 की वजह से यह कॉन्फ्रेंस वर्चुअली किया जा रहा है और जेनिवा स्थित पैलेस ऑफ़ नेशन्स से इसका आयोजन किया जाएगा.

पिछली बार यह बैठक ब्रसेल्स में 2016 में हुई थी. उस आयोजन के दौरान दानकर्ता देश 15.2 बिलियन डॉलर अफ़ग़ानिस्तान को मदद के तौर पर देने पर सहमत हुए थे.

अफ़ग़ानिस्तान में संयुक्त राष्ट्र सहायता मिशन के एक बयान के मुताबिक़ ऐसी उम्मीद है कि इस बार सहायता राशि के अलावा दानकर्ता देश अफ़ग़ानिस्तान के लिए ‘विकास की नई रूपरेखा’ भी लेकर आएंगे.

अफ़ग़ानिस्तान में लड़कियों के स्कूल के लिए किसान ने दी ज़मीन

स्वतंत्र टीवी चैनल टोलो न्यूज़ की वेबसाइट पर 18 नवंबर को छपी रिपोर्ट के मुताबिक इसमें इस बात का भी उल्लेख किया गया है कि दानकर्ता देश मदद देने की नई शर्तें भी लागू करेंगे.

ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, डेनमार्क, फ़िनलैंड, जर्मनी, इटली, जापान, नीदरलैंड, नॉर्वे, स्वीडन, ब्रिटेन, अमेरिका और यूरोपीय संघ ने सहायता जारी रखने के लिए पहले ही शर्तों की सूची अफ़ग़ानिस्तान सरकार को सौंप दी हुई है.

रिपोर्ट के मुताबिक,”दानकर्ताओं ने कहा है कि पिछले 19 सालों में देश ने जो उपलब्धि हासिल की है उसे बचा कर रखने की ज़रूरत है. अफ़ग़ान सरकार और तालिबान दोनों से उन्होंने अपने वादे निभाने को कहा है.”

टोलो न्यूज़ से 31 अक्तूबर को फिनलैंड के विदेश मंत्री पेका हैविस्टो ने कहा कि हिंसा के मामलों में कमी अफ़ग़ानिस्तान को अंतरराष्ट्रीय सहायता जारी रखने की एक शर्त होगी.

इसके अलावा अफ़ग़ान सरकार में व्याप्त भ्रष्टाचार के मामले दानकर्ता देशों की ओर से मिलने वाली सहायता को प्रभावित कर सकते हैं.

अफ़ग़ानिस्तान के राष्ट्रपति मोहम्मद अशरफ ग़नी ने कॉफ्रेंस शुरू होने से महज़ 10 दिन पहले 12 नवंबर को प्रशासनिक स्तर पर व्याप्त भ्रष्टाचार से निपटने के लिए एक स्वतंत्र आयोग की स्थापना की है.

कॉफ्रेंस की अहमियत

यह अफ़ग़ानिस्तान के लिए परिवर्तन के दशक (2016-24) का आख़िरी सम्मेलन है. इसके तहत अफ़ग़ानिस्तान को आत्मनिर्भर बनाने का लक्ष्य रखा गया है. टोलो न्यूज़ ने 6 अक्तूबर को छपी एक रिपोर्ट में आयोजनकर्ताओं के हवाले से यह जानकारी दी है.

यह आयोजन ऐसे वक्त में हो रहा है जब अमेरिका तालिबान के साथ हुए शांति समझौते के तहत अफ़ग़ानिस्तान से पीछे हटने की तैयारी में जुटा हुआ है.

अफ़ग़ान सरकार और तालिबान के बीच भी 12 सितंबर को दोहा में शांति वार्ता हुई है. इस वार्ता के तहत देश भर में शांति कायम करने को लेकर दोनों पक्षों के बीच सहमति जताई गई है.

कोविड-19 ने अफ़ग़ानिस्तान की अर्थव्यवस्था को बुरी तरह से प्रभावित किया है. वर्ल्ड बैंक की एक रिपोर्ट के मुताबिक अफ़ग़ानिस्तान की अर्थव्यवस्था इस साल महामारी की वजह से कम से कम 5.5 फ़ीसद सिकुड़ जाएगी.

चूंकि अफ़ग़ानिस्तान बड़े पैमाने पर विदेशी सहायता पर निर्भर है इसलिए उसे मिलने वाली सहायता में किसी भी तरह की कटौती का उसकी अर्थव्यवस्था और विद्रोहियों के साथ उसकी लड़ाई पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है.

एमनेस्टी इंटरनेशनल ने कटौती नहीं करने की अपील की

इसे देखते हुए एमनेस्टी इंटरनेशनल ने दानकर्ता देशों से अपील की है कि वो सहायता राशि में किसी तरह की कोई कटौती न करें.

एमनेस्टी इंटरनेशनल के दक्षिण एशिया के प्रमुख उमर वैराक ने कहा है, “यह वक्त अंतरराष्ट्रीय दानकर्ताओं के पीछे हटने का नहीं है.” उन्होंने यह कहते हुए जारी हिंसा और महामारी का भी हवाला दिया.

लेकिन अफ़ग़ानिस्तान की सरकार कॉफ्रेंस से निकलने वाले निर्णयों को लेकर आशान्वित है.

राष्ट्रपति के प्रवक्ता सादिक सिद्दीक़ी को निजी समाचार चैनल 1टीवी पर कहते हुए दिखाया गया है, “इस बार अफ़ग़ानिस्तान अंतरराष्ट्रीय समुदाय के साथ नियमित, लंबे समय तक और आत्म निर्भर विकास कार्यकर्मों को ध्यान में रखते हुए अगले चार सालों के लिए उनका समर्थन प्राप्त करेगा.”

जानकारों का क्या है मानना?

हालांकि अफ़ग़ानी विश्लेषकों का मानना है कि हिंसा और भ्रष्टाचार की वजह से दानकर्ताओं की ओर से मिलने वाली मदद प्रभावित हो सकती है.

यूनिवर्सिटी लेक्चरर नेमातुल्लाह बिजहान ने एक निजी चैनल एरियाना से कहा कि हिंसा के मामलों में कमी नहीं लाने की नाकामयाबी से अगर अंतरराष्ट्रीय सहायता प्रभावित होती है तो इसकी क़ीमत अफ़ग़ानिस्तान की जनता को चुकानी पड़ेगी.

अफ़ग़ानी सांसद मोहम्मद अज़ीम केबरजानी ने 1TV से 14 नवंबर को कहा कि, “हम चाहते हैं कि अफ़ग़ान सरकार को इस कॉनेफ्रेंस से लाभ मिले लेकिन हमें यह भी महसूस होता है कि हमें भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ लड़ाई में उम्मीद के मुताबिक कामयाबी हासिल नहीं हुई है.”

एक अख़बार एतिलात-ए-रोज़ ने अपने संपादकीय में कुछ ऐसा ही नज़रिया पेश किया है.

14 नवंबर के संस्करण में अख़बार ने लिखा, “यह वैसे देश के लिए अच्छी ख़बर नहीं है जो ग़रीबी और भ्रष्टाचार के साथ-साथ लड़ाई भी झेल रहा है. पिछले चार सालों में अफ़ग़ानिस्तान की उपलब्धियों की रिपोर्ट कार्ड को देखते हुए इसकी संभावना बहुत कम है कि उसे पूरी सहायता मिलेगी.”

तालिबान को कॉफ्रेंस में आमंत्रित नहीं किया गया लेकिन उसने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से अपील की कि वे सहायता राशि के वितरण में समूह के साथ भी समन्वय स्थापित करें.

18 नवंबर को वेबसाइट वॉयस ऑफ़ जिहाद पर जारी एक बयान में समूह ने कहा है, “लोगों तक सहायता पारदर्शी और न्यायोचित तरीके से पहुँच सके इसके लिए ज़रूरी है कि अंतरराष्ट्रीय संस्थाएँ इस्लामी अमीरात के साथ समन्वय स्थापित करें.”















BBC

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *