• June 28, 2024 3:11 pm

ड्रैगन फ्रूट की खेती से श्रीनिवास की कमाई 1.5 करोड़, तो जसवंत कमा रहे 8 लाख; आप भी जानिए पूरा प्रोसेस

13 अप्रैल2022 | ड्रैगन फ्रूट की खेती यानी कम लागत में ज्यादा कमाई। अभी सीजन भी है। मई-जून महीने में इसकी प्लांटिंग की जाती है और साल भर बाद यानी कमोबेश इसी सीजन में प्रोडक्शन भी होने लगता है। पिछले कुछ सालों में इसकी डिमांड बढ़ी है। खास कर कोरोना के बाद इसका इस्तेमाल इम्यूनिटी बूस्टर के रूप में किया जा रहा है। आज की पॉजिटिव खबर में हम आपको ऐसे ही दो किरदारों के बारे में बता रहे हैं जो ड्रैगन फ्रूट की खेती से बंपर कमाई कर रहे हैं।

1. पेशे से डॉक्टर, खेती का जुनून ऐसा कि वियतनाम में किसान के घर रहकर ड्रैगन फ्रूट उगाना सीखा

हैदराबाद के रहने वाले श्रीनिवास राव माधवराम पेशे से एक डॉक्टर हैं। हर दिन सुबह 7 बजे से दोपहर 12 बजे तक मरीजों का इलाज करते हैं। इसके बाद वे निकल पड़ते हैं अपने खेतों की तरफ। पिछले 5 साल से वे ड्रैगन फ्रूट की खेती कर रहे है। उन्होंने 12 एकड़ जमीन पर ड्रैगन फ्रूट लगाया है। इससे सालाना 1.5 करोड़ रुपए की कमाई हो रही है।

श्रीनिवास कहते हैं कि पहली बार ड्रैगन फ्रूट साल 2016 में देखा। उनके भाई एक पारिवारिक आयोजन के लिए ड्रैगन फ्रूट लेकर आए थे। मुझे यह फ्रूट पसंद आया। फिर मैंने इसको लेकर रिसर्च करना शुरू किया कि यह कहां बिकता है, कहां से इसे इम्पोर्ट किया जाता है और इसकी फार्मिंग कैसे होती है। रिसर्च के बाद मुझे पता चला कि इसकी सैकड़ों प्रजातियां होती हैं, लेकिन, भारत में कम ही किसान इसकी खेती करते हैं।

पहली बार नहीं मिली कामयाबी

इसके बाद उन्होंने महाराष्ट्र के एक किसान से 1000 ड्रैगन फ्रूट के पौधे खरीदे, लेकिन उनमें से ज्यादातर खराब हो गए। वजह यह रही कि वो प्लांट इंडिया के क्लाइमेट में नहीं उगाए जा सकते थे। 70 से 80 हजार रुपए का नुकसान हुआ। इसके बाद श्रीनिवास ने गुजरात, कोलकाता सहित कई शहरों का दौरा किया। वहां की नर्सरियों में गए, हॉर्टिकल्चर से जुड़े लोगों से मिले, एक्सपर्ट्स से राय ली। तब उन्हें पता चला कि वियतनाम में इसकी बड़े लेवल पर खेती की जाती है। फिर क्या था वे वियतनाम के लिए निकल गए।

श्रीनिवास बताते हैं कि सबसे पहले मैं वहां की एक हॉर्टिकल्चर यूनिवर्सिटी में गया, करीब 7 दिन तक रहा और वहां के प्रोफेसर से ड्रैगन फ्रूट के बारे में जानकारी ली। इसके बाद मैं एक किसान के घर गया जो ड्रैगन फ्रूट की खेती करता था। उससे पूरी प्रक्रिया सिखाने की बात 21 हजार रु में तय हुई। मैं रोज उसके साथ खेतों पर जाता था और उससे ट्रेनिंग लेता था। वहां मैं एक हफ्ते रुका।

वियतनाम से आने के बाद श्रीनिवास ने ताइवान, मलेशिया सहित 13 देशों का दौरा किया। वहां के ड्रैगन फ्रूट के बारे में जानकारी हासिल की। फिर भारत आकर उन्होंने खुद के नाम पर ड्रैगन फ्रूट की एक वैराइटी तैयार की, जो भारत के क्लाइमेट के हिसाब से कहीं भी उगाई जा सकती है।

2016 के अंत में उन्होंने एक हजार ड्रैगन फ्रूट के प्लांट लगाए। वे रोज खुद खेत पर जाकर प्लांट की देखभाल करते थे, उन्हें ट्रीटमेंट देते थे। पहले ही साल उन्हें बेहतर रिस्पॉन्स मिला। अच्छा खासा उत्पादन हुआ। आज डॉ. श्रीनिवास 12 एकड़ जमीन पर ड्रैगन फ्रूट की खेती कर रहे हैं। करीब 30 हजार प्लांट्स हैं। वे 80 टन तक का प्रोडक्शन करते हैं। वो बताते हैं कि एक एकड़ जमीन पर इसकी खेती से 10 टन फ्रूट का उत्पादन होता है। जिससे प्रति टन 8-10 लाख रुपए की कमाई हो जाती है।

गुजरात के सूरत में रहने वाले जसवंत पटेल रिटायरमेंट के बाद पिछले 4 साल से ड्रैगन फ्रूट की खेती कर रहे हैं। उनके पास अलग-अलग वैराइटी के 7 हजार से ज्यादा ड्रैगन फ्रूट के प्लांट हैं, जिसकी मार्केटिंग वे गुजरात के साथ ही MP, राजस्थान और बाकी राज्यों में कर रहे हैं। इससे वे हर साल 8 लाख रुपए का मुनाफा कमा रहे हैं।

जसवंत कहते हैं कि 2014 में रिटायर होने के बाद मुझे कुछ नया करने के लिए वक्त मिल गया। कुछ दिनों तक मैंने अलग-अलग प्लांट के बारे में रिसर्च किया और फिर तय किया कि ड्रैगन फ्रूट की खेती करेंगे। हालांकि, तब इसका कॉन्सेप्ट बिल्कुल नया था और बहुत कम किसान इसकी खेती करते थे। इसलिए मैंने भी 15 प्लांट के साथ शुरुआत की ताकि अगर कामयाबी न भी मिले तो नुकसान कम हो।

साल 2017 में जसवंत ने कॉमर्शियल लेवल पर ड्रैगन फ्रूट की खेती शुरू की। उन्होंने देश की अलग-अलग जगहों से अच्छी वैराइटी के प्लांट मंगाए और करीब 6 एकड़ जमीन पर खेती शुरू की। दो साल बाद, यानी 2019 में उन्हें अच्छा रिस्पॉन्स मिलने लगा। उनके ज्यादातर प्लांट तैयार हो गए और फ्रूट निकलने लगे। इसके बाद वे सूरत और आसपास के इलाकों में इसकी मार्केटिंग करने लगे।

जसवंत कहते हैं कि फिलहाल हमारे पास 1800 पोल हैं। एक पोल पर करीब 4 प्लांट लगते हैं। इस तरह 7 हजार से ज्यादा प्लांट अभी हमारे पास हैं। इसके साथ ही हमने हाल ही में ट्रैली सिस्टम से भी 500 प्लांट लगाए हैं। अगर वैराइटी की बात करें तो हमारे पास अभी कुल 7 वैराइटी हैं। इनमें थाईलैंड, वियतनाम और ऑस्ट्रेलिया की वैराइटीज हैं। हमारे पास रेड, यलो और व्हाइट तीनों ही तरह के प्लांट हैं।

अब तीसरी कहानी का किरदार आप बनिए, ड्रैगन फ्रूट की खेती का तरीका हम बता रहे हैं…

ड्रैगन फ्रूट होता क्या है, इसकी डिमांड क्यों है?

ड्रैगन फ्रूट कैक्टस फैमिली का प्लांट है। इसे पिताया या स्ट्रॉबेरी पियर भी कहते हैं। इसका तना गूदेदार और रसीला होता है। ऊपर से इसका फल हल्का पिंक होता है, जिस पर कांटे लगे होते हैं। आमतौर पर अंदर से ये सफेद या पिंक होता है। हालांकि, अब इसकी कई नई वैराइटी की खेती हो रही है। इसमें एंटीऑक्सीडेंट के साथ-साथ फ्लेवोनोइड, फेनोलिक एसिड, एस्कॉर्बिक एसिड, फाइबर और एंटी इंफ्लेमेटरी एलिमेंट्स होते हैं। इन दिनों बड़ी-बड़ी कंपनियां ड्रैगन फ्रूट खरीदकर उससे प्रोसेसिंग के बाद सॉस, जूस, आइसक्रीम सहित कई प्रोडक्ट तैयार कर रही हैं।

कोरोना में ज्यादातर लोगों ने इम्यूनिटी बढ़ाने के लिए इसका इस्तेमाल करना शुरू किया है। इसके साथ ही कोलेस्ट्रॉल लेवल घटाने के लिए, हीमोग्लोबिन बढ़ाने के लिए, हृदय रोग के लिए, स्वस्थ बालों के लिए, स्वस्थ चेहरे के लिए, वेट लॉस और कैंसर जैसी बीमारियों को ठीक करने में भी इसका उपयोग होता है।

पहले अमेरिका, वियतनाम, थाईलैंड जैसे देशों से भारत में आता था, लेकिन पिछले कुछ सालों से भारत में भी बड़े लेवल पर इसका प्रोडक्शन हो रहा है। गुजरात तो इसका हब है। यहां सरकार ने इसका नाम ‘कमलम’ रखा है। इसके अलावा UP, MP, केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र में भी इसकी खेती होने लगी है।

कब और कैसे करें ड्रैगन फ्रूट की खेती?

ड्रैगन फ्रूट उगाने के लिए बीज अच्छे किस्म का होना चाहिए। ग्राफ्टेड प्लांट हो तो ज्यादा बेहतर होगा, क्योंकि उसे तैयार होने में समय कम लगता है। अप्रैल से जुलाई महीने के बीच इसकी प्लांटिंग की जाती है। अगर किन्हीं कारणों से इस सीजन में प्लांटिंग नहीं हो सके तो दूसरे सीजन में भी इसकी खेती शुरू की जा सकती है।

जहां तक मिट्टी की बात है। इसके लिए किसी विशेष किस्म की जमीन की जरूरत नहीं होती है। बस हमें इस बात का ध्यान रखना होता है कि पानी या जलजमाव वाली जगह न हो। प्लांटिंग के बाद नियमित रूप से कल्टीवेशन और ट्रीटमेंट की जरूरत होती है। महीने में एक बार सिंचाई की जरूरत होती है। इसके लिए ड्रिप इरिगेशन ज्यादा बेहतर तरीका होता है।

ड्रैगन फ्रूट के प्लांट लतर वाले होते हैं। इसलिए सहारे के लिए खेत में सीमेंट के खंभे की जरूरत होती है। एक खंभे के साथ 3-4 प्लांट लगाए जा सकते हैं। जैसे-जैसे प्लांट बढ़ता है उसे रस्सी से बांधते जाते हैं। एक-सवा साल बाद प्लांट तैयार हो जाता है। दूसरे साल से फ्रूट निकलने लगते हैं। हालांकि, तीसरे साल से ही अच्छी मात्रा में फल का प्रोडक्शन होता है।

इसके लिए टेम्परेचर 10 डिग्री से कम और 40 डिग्री के बीच हो तो प्रोडक्शन बढ़िया होता है। बेहतर प्रोडक्शन के लिए हमें ऑर्गेनिक खाद का इस्तेमाल करना चाहिए। खाद को प्लांट की जड़ के पास अच्छी तरह से मिट्टी में मिला देना चाहिए।

इसके लिए कहां से ले सकते हैं ट्रेनिंग?

ड्रैगन फ्रूट की खेती की ट्रेनिंग स्थानीय कृषि विज्ञान केंद्र से ली जा सकती है। इसके साथ ही इंडियन काउंसिल फॉर एग्रीकल्चर रिसर्च (ICAR) जो देश में कई शहरों में स्थित है, वहां से भी ट्रेनिंग ली जा सकती है। इसके साथ ही ड्रैगन फ्रूट की खेती करने वाले किसानों से भी इसके बारे में जानकारी ली जा सकती है। इसके अलावा इंटरनेट की मदद से भी जानकारी जुटाई जा सकती है। कई संस्थान सेमिनार और वर्कशॉप भी आयोजित करवाते रहते हैं।

Source;- ‘’दैनिकभास्कर’’

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