• June 23, 2024 8:38 am

वो हीरो जिन्होंने दी थी करोड़ रुपये कमाने वाली पहली हिन्दी फ़िल्म

अक्टूबर 13 2023 ! इसकी इकलौती वजह यह है कि आप जब भी कोई पुरानी फ़िल्म देखने की कोशिश करते हैं तो हर दूसरी फ़िल्म में आपको कहीं ना कहीं अशोक कुमार दिख ही जाते हैं.

छह दशक लंबे करियर में उन्होंने क़रीब 300 फ़िल्मों में काम किया. उन्होंने ऐसे-ऐसे चरित्रों को पर्दे पर साकार किया, जिन्हें भुला पाना सहज नहीं है.

उन्होंने दिलीप कुमार, राजकपूर और देवानंद की तिकड़ी बनने से पहले काम शुरू किया और राजेश खन्ना, अमिताभ बच्चन के सुपरस्टार बन जाने के बाद तक काम करते रहे.

उनकी फ़िल्में 1936 से 1955 तक कमाई का रिकॉर्ड बनाती रहीं. इस दौरान उन्होंने 47 फ़िल्मों में काम किया.

इनमें से तीन दर्जन फ़िल्में बॉक्स ऑफ़िस पर हिट मानी गई थीं. ‘अछूत कन्या’ से शुरू हुए अशोक कुमार के सफ़र को ‘नया संसार’, ‘वचन’, ‘बंधन’, ‘किस्मत’, ‘महल’, ‘तमाशा’, ‘मशाल’, ‘खिलाड़ी’, ‘परिणीता’, ‘दीदार’ और ‘बंदिश’ जैसी फ़िल्मों ने नया मुकाम दिया.

साल 1943 में आई ‘किस्मत’ ने तो बॉक्स ऑफ़िस पर धमाल ही मचा दिया था. कमाई के मामले में एक करोड़ का शिखर छूने वाली पहली हिंदी फ़िल्म साबित हुई थी. इस फ़िल्म में अशोक कुमार का निगेटिव किरदार था. उस दौर में यह बहुत रिस्क था, लेकिन अशोक कुमार ने करने की चुनौती स्वीकार कर ली.

नतीज़ा ये रहा कि फ़िल्म 186 सप्ताह तक बॉक्स ऑफ़िस पर कमाई करती रही. शुरुआती कमाई के मामले में इस फ़िल्म के रिकॉर्ड को आख़िरकार ‘शोले’ ने तोड़ा.

1956 में शक्ति सामंत की ‘इंस्पेक्टर’ में वे पुलिस की वर्दी में दिखते हैं.

यह हिंदी सिनेमा के इतिहास में पहली बार हुआ था, जब फ़िल्म का नायक पुलिस वर्दी में दिखा था. इसके बाद सिगरेट सुलगाते अपराधी या पुलिस इंस्पेक्टर के तौर पर अशोक कुमार कई फ़िल्मों में नज़र आए. इसे बाद में हिंदी सिनेमा ने ख़ूब अपनाया.

इस दौर में ‘शतरंज’, ‘एक ही रास्ता’, ‘आरती’, ‘हावड़ा ब्रिज़’, ‘चलती का नाम गाड़ी’, ‘गृहस्थी’, ‘सेवरा’, ‘गुमराह’, ‘बंदिनी’, ‘मेरे महबूबट, ‘ये रास्ते हैं प्यार के’, ‘दीदार’, ‘कंगन’, ‘आकाशदीप’, ‘कल्पना’, ‘ऊंचे लोग’ जैसी फ़िल्मों अशोक कुमार फैंस के साथ-साथ आलोचकों को चौंका रहे थे.

इन फ़िल्मों में वे नायकत्व का चोला उतार कर पूरी तरह से परिपक्व अभिनेता के रूप में नज़र आ रहे थे. हर नई फ़िल्म में वे अभिनय के आयाम गढ़ते दिखे थे.

यह बतौर अभिनेता अशोक कुमार का ऐसा दौर था, जहाँ वे मुश्किल से मुश्किल भूमिकाओं को गहराई के साथ सहज रूप से पर्दे पर उतार दे रहे थे. आज अगर उस दौर की फ़िल्मों को देखें तो चलता है कि यह चरित्र अशोक कुमार के लिए नहीं, बल्कि अशोक कुमार उस चरित्र विशेष के लिए बने थे.

लेकिन अशोक कुमार यहीं नहीं ठहरे. अपने करियर के तीसरे दौर में वे और मंझे हुए अभिनेता के तौर पर सामने आते हैं. पूरी तरह से चरित्र अभिनेता के रूप में अशोक कुमार प्रयोगों की झड़ी लगा देते हैं.

इस दौर की फ़िल्मों की लिस्ट लंबी है. ‘दादी मां’, ‘आशीर्वाद’, ‘ज्वैल थीफ़’, ‘विक्टोरिया नंबर 203’, ‘भाई’, ‘सत्यकाम’, ‘टैक्सी ड्राइवर’, ‘पाक़ीजा’, ‘सफ़र’,’प्रेम नगर’, ‘मिली’, ‘आनंद’, ‘शौकीन’, ‘छोटी सी बात’, ‘आपके दीवाने’ जैसी दर्जनों फ़िल्में हैं, जहां आपको अशोक कुमार के अभिनय की रेंज का अंदाज़ा होता है. ऐसा लगता है कि उनके शरीर का हर अंग अभिनय करना चाह रहा हो. यह वह दौर था जब अशोक कुमार का एक टेक काफ़ी हो गया था, किसी भी सीन को करने के लिए उन्हें रीटेक की ज़रूरत नहीं होती थी.

  सोर्स :-“BBC  न्यूज़ हिंदी”                                  

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