12 जून 2023 ! लेकिन इमरान ख़ान की गिरफ़्तारी के बाद बड़े पैमाने पर फ़ौज विरोधी हिंसक विरोध प्रदर्शनों के बाद विश्लेषकों का कहना है कि मुल्क का राजनीतिक परिदृश्य अब बिल्कुल बदल चुका है.
हालिया घटनाक्रम ये है कि इमरान ख़ान के क़रीबी रहे जहांगीर तरीन के नेतृत्व में इश्तकाम-ए-पाकिस्तान (आईपीपी) पार्टी के गठन ने अलग किस्म की हलचल मचा दी है. तरीन बड़े उद्योगपति हैं और 2018 के चुनावों में पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ़ पार्टी के प्रमुख संगठनकर्ता और मुख्य फ़ाइनेंसर थे.
लेकिन इमरान ख़ान जब प्रधानमंत्री बने तो वो उनसे अलग हो गए. इमरान ख़ान से ख़फ़ा तरीन, पीटीआई की दूसरी पंक्ति के कुछ प्रमुख नेताओं को अपनी पार्टी में शामिल किया है.
इनमें से अधिकांश नेता वे हैं जो नौ मई की घटना के बाद इमरान की पार्टी से अलग हुए, जिनमें पूर्व सांसद और चर्चित कैबिनेट मंत्री भी हैं. भविष्य में पीटीआई के और नेताओं के आईपीपी में शामिल होने की अटकलें हैं.
कुछ राजनीतिक विश्लेषक आईपीपी को नई ‘किंग्स पार्टी’ बता रहे हैं. पाकिस्तानी राजनीति में ‘किंग्स पार्टी’ शब्द का इस्तेमाल एक ख़ास संदर्भ में किया जाता है.
अतीत में ऐसी पार्टियों का गठन फ़ौज के इशारे पर राजनेताओं, ख़ासकर चुनावी नेताओं, को इकट्ठा करके किया जाता है,
ऐसी पार्टियों का रुख़ सत्ता परस्त होता है और चुनाव से पहले इनका अस्थाई उभार होता है, लेकिन जब राजनीतिक मौसम बदल जाता है तो ये भी अपनी चमक खो देती हैं.
पीटीआई का तेजी से विघटन और एक नई राजनीतिक प्रोजेक्ट का उभार कोई नई बात नहीं है. मुल्क ने अतीत में जो देखा है, वही हूबहू हो रहा है.
साल 2002 में मुशर्रफ़ के तख़्तापलट के दौरान जब नवाज़ शरीफ़ और बेनज़ीर भुट्टो को निर्वासन में जाना पड़ा तो उस समय शरीफ़ के पीएमएल-एन और भुट्टो के पीपीपी को ख़त्म करने के लिए पीएमएल-क्यू और पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी पैट्रियाट को बनाया गया.
सवाल ये है कि क्या आईपीपी नई किंग पार्टी है? अगर ऐसा है तो आगे क्या होने वाला है? हमने पाकिस्तान की राजनीतिक में छह संभावनाओं पर स्पष्टता के लिए तीन अग्रणी राजनीतिक टिप्पणीकारों से बात की.
सोर्स :-“BBC न्यूज़ हिंदी”