• May 17, 2024 9:50 pm

Air Pollution Tips- बच्चों के लिए घातक साबित हो सकता है प्रदूषण, जानें कैसे करें बचाव?

1 नवम्बर 2021 | दिल्ली और आसपास के इलाकों में बढ़ता वायु प्रदूषण धीरे-धीरे लोगों को बीमार कर रहा है। प्रदूषण के बढ़ने से इसका असर लोगों की सेहत पर पड़ रहा है, खासतौर पर बच्चों की सेहत पर पड़ता नज़र आ रहा है। कुछ समय पहले हुए सर्वे में देखा गया कि शहरों में बढ़ते प्रदूषण की वजह से बच्चों को सांस संबंधी दिक्कतें आ रही हैं। बच्चों का शरीर काफी कमज़ोर होता है इसलिए उनकी खास केयर करनी पड़ती है।

खांसी और सांस संबंधी बीमारियों से जूझते बच्चे

गुरुग्राम के पारस हॉस्पिटल में सीनियर पल्मोनोलॉजिस्ट और पारस चेस्ट इंस्टीट्यूट के एचओडी डॉ. अरुणेश कुमार का कहना है, “सर्दियां शुरू होने के साथ ही दिल्ली की हवा की क्वॉलिटी हर साल की तरह एक बार फिर बिगड़ना शुरू हो गई है। हाल ही में हुए एक सर्वे में पाया गया है कि 75% बच्चे सांस फूलने से पीड़ित हैं। पहले भी हमने शिशुओं और बच्चों को वयस्कों की तुलना में बुरी हवा की क्वॉलिटी से पीड़ित देखा है। पिछले पांच सालों में नेबुलाइज़र, मीटर्ड डोज़ इनहेलेशन और ड्राई पाउडर इनहेलेशन जैसे इनहेलेशन थेरेपी के उपयोग में लगातार वृद्धि हुई है। बार-बार होने वाली खांसी और सांस संबंधी लक्षणों के कारण ज़्यादा से ज़्यादा बच्चों को इनहेलेशन थेरेपी दी जा रही है। कैंसर और हार्ट संबंधी समस्याओं सहित युवाओं पर प्रदूषण का बहुत ज्यादा और कभी-कभी लॉन्ग टर्म प्रभाव हो सकता है। गंभीर अस्थमा से पीड़ित लोग तीन-स्तरीय सर्जिकल या एन-95 मास्क का विकल्प चुन सकते हैं। लेकिन इसे नाक और मुंह के चारों ओर कसकर पहनना होगा। अगर इसे ढीला पहना जाए तो इसका कोई फायदा नहीं होगा।”

बच्चों के लिए विनाशकारी हो सकता है प्रदूषण

उजाला सिग्नस ग्रुप ऑफ हॉस्पिटल्स के डायरेक्टर और फाउंडर डॉ. शुचिन बजाज ने कहा, “हवा की क्वॉलिटी बहुत ख़राब हो चुकी है। यह हमारे नियंत्रण से बाहर हो चुकी है। सर्दियों की शुरुआत होने से यह स्थिति और भी भयानक हो जाती है। इस समय के आसपास होने वाले प्रदूषण को समाप्त होने में लगभग 4 महीने लगते हैं और इसका मतलब यह हुआ कि लोग लंबे समय तक इस हानिकारक हवा में सांस लेने को मजबूर होते हैं। हवा की ख़राब क्वालिटी का असर हर व्यक्ति पर पड़ता है, लेकिन इससे सबसे ज़्यादा बच्चे प्रभावित होते हैं। पर्यावरण एजेंटों और प्रदूषण को कम करने या डिटॉक्सीफाई करने की हर बच्चे की क्षमता अलग होती है। इसके अलावा बच्चों में एयरवे एपिथेलियम (वायुमार्ग उपकला) वयस्कों की तुलना में ज्यादा पारगम्य होता है, इससे उन्हें बीमारियां होने का ख़तरा ज्यादा हो जाता है। दिल्ली और गुरुग्राम जैसे सबसे ज़्यादा प्रदूषित शहरों में पले-बढ़े बच्चों के लिए इस ख़तरनाक हवा का प्रभाव उनके अविकसित फेफड़ों और रेस्पिरेटरी सिस्टम (श्वसन तंत्र) पर विनाशकारी हो सकता है। ऐसे में कोई हैरानी की बात नहीं होगी कि हमारा पल्मोनरी डिपार्टमेंट मरीज़ों से भर जाए।”

प्रदूषण से बच्चों कैसे बचाएं?

1. घर के दरवाज़े और खिड़कियां बंद रखें

खिड़कियों और दरवाज़ों से ज़हरीले प्रदूषक घर में प्रवेश कर जाते हैं, इसलिए इन्हें बंद रखें। इसके अलावा धूल में या घर की ज़्यादा साफ-सफाई का काम करने से भी बचें।

2. ह्यूमिडिफायर लगाएं

सांस से जुड़ी बीमारियों से परेशान लोगों को डॉक्टर घर में एयर प्यूरीफायर लगाने की सलाह देते हैं। प्यूरीफायर में कई तरह के फ़िल्टर होते हैं, जो अशुद्ध हवा को घर से बाहर निकालने में मदद करते हैं। इसके अलावा यह जीवाणुओं को भी घर से बाहर निकालकर अंदर की हवा को शुद्ध बनाता है।

3. बाहर कम से कम निकलें

इस दौरान छोटे बच्चों और बुज़ुर्गों को घर से बाहर कम से कम निकलना चाहिए। नवजात बच्चों को बाहर ले जाने से बचें और बड़े बच्चों को बिना मास्क के बाहर न जाने दें।

4. तेज़ सुगंध वाली चीज़ों से बच्चों को रखें दूर

परफ्यूम या पेंट जैसी चीज़ें हवा में हानिकारक कण छोड़ते हैं, जिसने नवजात बच्चों को दूर रखना बेहतर है। क्योंकि ये सांस के ज़रिए फेफड़ों के लिए टॉक्सिक साबित हो सकते हैं।

Source :- “जागरण

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