दिनांक 15 फरवरी l व्हाइट हाउस ने भारत को क्वॉड की शक्ति और विकास का एक इंजन बताया है। साथ ही अमेरिका ने भारत को इंडो पैसिफिक रीजन में अपना प्रमुख सहयोगी भी बताया है। यह बयान मेलबर्न में 11 फरवरी को क्वॉड की हुई बैठक के बाद आया है। इस समिट में अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन और भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर भी शामिल हुए थे।
व्हाइट हाउस की प्रिंसिपल प्रेस सेक्रेटरी कारीन जीन-पियरे ने वॉशिंगटन में मीडिया से कहा कि हम मानते हैं कि भारत दक्षिण एशिया और हिंद महासागर में लीडर की भूमिका में हैं। भारत दक्षिण पूर्व एशिया में सक्रिय है। वह क्वॉड को आगे बढ़ाने वाली ताकत और रीजनल डेवलपमेंट के लिए एक इंजन है।
क्वॉड बैठक में रूस-यूक्रेन के बीच तनाव पर भी चर्चा
कारीन जीन-पियरे ने बताया कि मेलबर्न समिट में मंत्रियों ने इंडो-पैसिफिक रीजन में चीन की अस्थिर भूमिका और यूक्रेन-रूस के बीच उपजे विवाद पर चर्चा की गई। इस दौरान अमेरिकी विदेश मंत्री ब्लिंकन ने कहा कि रूस के कारण न केवल यूक्रेन, बल्कि दुनिया में सुरक्षा और समृद्धि का सालों से आधार रहे इंटरनेशनल रूल बेस्ड ऑर्डर को भी खतरा है।
कारीन ने बताया कि इस दौरान ब्लिंकन ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रूस से मिल रही चुनौतियों और यूरोपीय सहयोगियों का समर्थन करने की नीतियों पर भी चर्चा की।
भारत से जारी रहेगी स्ट्रैटेजिक पार्टनरशिप
उन्होंने आगे कहा कि अमेरिका के साथ भारत की स्ट्रैटेजिक पार्टनरशिप जारी रहेगी। इसका मकसद दक्षिण एशिया में स्थिरता को बढ़ावा देना, स्वास्थ्य, अंतरिक्ष, साइबर स्पेस जैसे नए क्षेत्रों में सहयोग करना, आर्थिक सहयोग को बढ़ाना और योगदान के लिए मिलकर काम करना होगा।
क्या है क्वॉड
क्वॉड का मतलब ‘क्वाड्रीलेटरल सिक्योरिटी डायलॉग’ है। भारत, जापान, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका इसके सदस्य हैं। क्वॉड का मकसद इंडो-पैसिफिक रीजन में शांति बनाए रखना है। 2007 में जापान के तत्कालीन प्रधानमंत्री शिंजो आबे की पहल पर इसे तैयार किया गया था। 2019 में पहली क्वॉड बैठक हुई थी। उधर, चीन इससे बौखलाया हुआ है, क्योंकि इस संगठन का मकसद दूसरे मुद्दों के साथ समुद्र में चीन की बढ़ती दादागिरी पर लगाम कसना भी है।
दरअसल, ऑस्ट्रेलिया अपनी जमीन, इंफ्रास्टक्चर और राजनीति में चीन की बढ़ती रुचि से परेशान है। भारत चीन की बढ़ती सैन्य और आर्थिक ताकत को चुनौती के रूप में देख रहा है। जापान, चीन की विस्तारवादी नीति से चिंतित है, वहीं अमेरिका फिर से चीन के इंडो-पेसिफिक रीजन में प्रभुत्व हासिल करने के लिए परेशान है।
Source :- दैनिक भास्कर